रामकोला (कुशीनगर), 11 फरवरी। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला की अध्यक्ष एवं बीकानेर विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो चंद्रकला पाडिया ने कहा है कि स्त्रियों को अपनी पूरी क्षमता के विकास का अधिकार है। लड़की-लड़का की पढाई, भरण-पोषण में भेदभाव बहुत बड़ा अन्याय व पाप् है। लड़कियों को खूब पढ़ने, लिखने,गाने, नाचने, खेलने की आज़ादी मिलनी चाहिए और हम सभी को इस स्थिति का निर्माण करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
प्रो पाडिया आज शिवदुलारी देवी दलडपट शाही महिला महाविद्यालय अहिरौली, कुसम्ही (रामकोला) के वार्षिक समारोह में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहीं थीं। ‘ स्त्री शिक्षा की चुनौतियां ‘ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्त्री जीवन के लिए सबसे जरूरी है आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा से आत्मविश्वास आता है और आत्मविश्वास से साहस। यह स्त्री के लिए बहुत जरूरी है।
उन्होंने जेंडर इंडेक्स में भारत का दुनिया के 192 देशों में 130वां स्थान होने का जिक्र करते हुए कहा कि ट्रेडिशनल थाट में स्त्री को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है लेकिन व्यवहार में स्त्रियों की दशा सोचनीय है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारा माइंडसेट है जो संकीर्ण और संकुचित है। प्रो पाडिया ने कहा कि तमाम कानूनों के बन जाने के बावजूद लड़कियों का ड्राप आउट रेट बहुत अधिक है। स्त्रियों के श्रम की आज भी कोई गिनती नहीं है। दिन -रात खेतों में कार्य करने के बावजूद स्त्रियों की पहचान किसान और मजदूर की नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है कि हमारा ज्ञान पुरुष केंद्रित है। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि सिर्फ स्नेह मात्र से उनकी भूमिका ख़त्म नहीं हो जाती। दहेज़ की गठरी देकर बेटी को नाव में बिठा देने पर तूफ़ान आने पर बेटी डूब जायेगी। दहेज़ की गठरी थमाने के बजाय उसे शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बना कर तैरना सिखा दिया तो वह हर तूफ़ान का सामना कर लेगी।
उन्होंने लड़कियों से कहा कि वे अपनी पूरी क्षमता के विकास का अवसर न गँवाए।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व्यंग्य लेखक एवं पूर्व रेलवे अधिकारी रणविजय सिंह ने कहा कि नारी शिक्षा में सबसे बड़ी बाधा रूढ़ियाँ हैं। शिक्षा का मकसद व्यक्तित्व का सर्वागिण विकास है। उन्होंने कहा कि समाज की सोच बदल रही है और महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं।
अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अनंत मिश्र ने कहा कि शिक्षा केवल किताबों में नहीं होती। समाज का सामान्य लोग हमें हमेशा शिक्षित करते हैं। उन्होंने खुद का उदहारण देते हुए कहा कि पढ़े लिखे पिता से ज्यादा शिक्षा उनको अनपढ़ माँ से मिली। शिक्षा का मतलब यह है कि हम ज्ञान और अज्ञान को समझ सकें और मनुष्यता का पक्ष ले सकें।
इसके पहले महाविद्यालय की छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। करिश्मा की टीम ने स्वागत गीत, रीता और रीना ने देशभक्ति गीत, अमृता सिंह ने लावणी नृत्य प्रस्तुत किया। छात्राओं ने लघु नाटक भी प्रस्तुत किया। संचालन मांडवी सिंह ने और धन्यवाद ज्ञापन राधे गोविन्द शाही ने किया। बीएचयू के हिंदी के प्रोफ़ेसर एवं महाविद्यालय के संस्थापक प्रो सदानंद शाही ने अतिथियों का स्वागत किया और महाविद्यालय की स्थापना और उसके उद्देश्य के बारे में बताया। महाविद्यालय की प्रबन्धक डॉ जान्हवी सिंह ने मुख्य अतिथि प्रो चंद्रकला पाडिया का परिचय प्रस्तुत करते हुए उनके आगमन को छात्राओं के लिए प्रेरणादायी बताया। इस मौके पर रामकोला के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।