‘ लोकरंग -10 ‘ में बिरजिया आदिवासी समुदाय का सरहुल, करमा, महादेव नृत्य की प्रस्तुति
जोगिया (कुशीनगर) 13 अप्रैल। दुनिया को सबसे पहले लोहा देने वाली आदिम आरिवासी समूहों में से एक बिरजिया आदिवासी समुदाय के कलाकारों ने 12 अप्रैल की रात लोकरंग में अपना पारम्परिक नृत्य और गीत प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुत में बिरजिया आदिवासी समूह के गीत, संगीत और जीवन जीवंत हुआ।
झारखंड का बिरजिया आदिवासी अब बहुत कम संख्या में हैं। उनकी आबादी छह से सात हजार है। आदिवासी साहित्य के विशेषज्ञ एके पंकज ने बिरजिया आदिवासी समूह का परिचय देते हुए कहा कि ये दुनिया के सबसे पुराने जगह के निवासी हैं। इन्होंने सबसे पहले दुनिया को लोहा दिया जिससे स्टील बना लेकिन इसकी कीमत उन्हें विस्थापन के रूप में चुकानी पड़ी। एके पंकज ने बताया कि बिरजिया आदिवासी समूह को झारखंड के कुछ स्थानों पर असुर तो छत्तीसगढ़ में अगरिया कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास को जानना है तो आदिवासी लोकगीतों में उसे ढूंढना चाहिए।
जोगिया में कार्यक्रम देने वाले बिरजिया आदिवासी समुदाय के कलाकार लातेहार, नेतरहाट के पास महुआडाबर गांव के थे और उनकी टीम का नाम बिरजिया सांस्कृतिक दल है। उन्होंने अपने कार्यक्रम की शुरूआत विवाह गीत-नृत्य से शुरू किया और इसके बाद उन्होंने सरहुल नृत्य प्रस्तुत किया। सरहुल झारखंड के आदिवासी समुदाय में बड़ा फेस्टिवल है। यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन आयोजित होता है। सरहुल का शाब्दिक अर्थ है-शाल की पूजा। शाल के पेड़ में जब नए फूल आते हैं। इस नृत्य-गीत में कलाकारों ने प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जिसने ईष्र्या-द्वेष से परे सामूहिकता में रहना और जीना सिखाया।
सरहुल के बाद करमा नृत्य प्रस्तुत करते हुए कलाकारों ने इसमें अपने इतिहास व संघर्ष का बयान किया कि कैसे वे सरगुजा से झारखंड आए और कैसे उन्होंने लोहा खोजा और दुनिया को लोहा दिया। महादेव नृत्य के साथ बिरजिया समुदाय की प्रस्तुति समाप्त हुई और इस तरह उन्होंने आधे घंटे में जोगिया में जुटे हजारों ग्रामीणों और सैकड़ों लेखकों, संस्कृति कर्मियों, लोक कलाकारों को बकौल एके पंकज धरती के सबसे पुराने इलाके के गीत-संगीत और जीवन से परिचित कराया।