कविता पाठ और सांस्क1तिक कार्यक्रम के साथ मनायी अम्बेडकर जंयती
दलित साहित्य-संस्कृति मंच ने बुद्ध विहार में किया आयोजन
गोरखपुर, 2 मई। बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर’’ के 126वीं जयंती/ अम्बेडकर माह के समापन के अवसर पर दलित साहित्य-संस्कृति मंच ने ’’कवि गोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम’’ का आयोजन बुद्ध विहार (राप्तीनगर) में किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि षायर एवं पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य अभियंता बी आर विप्लवी, ने कहा कि आज का कार्यक्रम बाबा साहब के मिशन को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। साहित्य और कला हमारी सांस्कृतिक चेतना को आगे बढ़ाती हैं। कार्यक्रम में बच्चों, युवाओं और महिलाओं की भागीदारी से ही हमारा समाज समतामूलक हो सकता है। बाबा साहब ने कहा कि किसी भी समाज की उन्नति उस समाज की महिलाओं की उन्नति से ही संभव है। अतः हमें उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करनी होगी। उन्होंने अपनी गजल और शेर पढ़े-
घर फूंकने वालों को सजा कौन दिलाये
यह मुल्क ही जब लोग जलाने में लगे हैं।।
ओढ़े हैं विप्लवी कुल जाति धर्म नाम
इंसान की षिनाख्त की मुष्किल घड़ी हुई।।
राम राज्य आने को है, सहमी-सहमी हैं सीतायें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बौद्ध चिंतक एवं कवि परदेशी बौद्ध ने कहा कि दलित साहित्य शोषण से मुक्ति का साहित्य है। सदियों से शोषण एवं अन्याय के विरूद्ध दलित साहित्य आग है, विद्रोह है। उन्होंने अपनी कई कवितायें पढ़ी।
कार्यक्रम का प्रारम्भ बुद्ध वंदना एवं त्रिशरण पाठ से हुआ। मंच के सचिव सुरेश चन्द ने बांसुरी के सुरीले स्वरों एवं तानों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन्होंने राग यमन की बंदिश तीनताल में मध्य एवं दु्रत लय में जोड़ तथा झाला के साथ खूबसूरती से प्रस्तुत किया। पुनः दादरा ताल में पहाड़ी धुन सुना कर लोगों को तालियां बजाने के लिये मजबूर कर दिया। इन्होंने समापन पूर्वी लोक धुन पर आधारित भीमगीत ’’हे बलमुआ मोरे, बाबा भीम के फुलवा द चढ़ाइ’’ गाकर प्रस्तुत किया। तबला पर संगत भानु प्रताप भारती ने किया।
इसके बाद गायक राजकुमार ’पगला’ ने अपनी जादुई आवाज में जन चेतना के ’भीमगीत’ प्रस्तुत कर किया।
कार्यक्रम में बालकवि अभिषेक ने अपनी कविता ’’हमें समुद्र की गहराई में डूब कर जाना है, मोती की तलाश में ’’,युवा कवि दिनेश कुमार भारती ने ’’बाबा भीम के सपनों को सजोना है’’ प्रस्तुत करके युवा पीढ़ी का आगाज किया।
कवि रामचन्द्र प्रसाद त्यागी ने अपनी कविता पढ़ी- ’’अजब सी उनझनें हैं, कशमकश अजीब है, जीवन के लम्बे पथ में, ना मंजिल करीब है।’’
कवि बनवारी सिंह आजाद ने अपनी कविता से साम्प्रदायिकता और जाति प्रथा पर कड़ा प्रहार किया-
’’जिन्हें मंदिर -मस्जिद में पलते हुये देखा है
बड़ी गहरी चाल चलते हुये देखा है। ’’
अपनी दोहों के लिये प्रसिद्ध डा. संजय आर्य ने कई दोहे सुनाए
’’नहीं, नहीं कोई नहीं, आयेगा अवतार
तुम हो अपनी नाव के खुद ही खेवनहार। ’’
कवि सुरेश चन्द ने अपनी चर्चित कविता ’’नेपाल’’ का वाचन कर दलित संवेदना को साकार किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने ’’न्याय और इंसाफ की, अधिकार की बातें करो, न रूके ग़र जु़ल्म तो संहार की बातें करो’’, सुनाकर लोगों को उद्वेलित कर दिया।
इसके अलावा राजेश कुमार बौद्ध, एडवोकेट धु्रवराम बौद्ध, महेन्द्र कुमार गौतम, विनय कुमार ’अजी़ज़’, चन्द्रशेखर, एडवोकेट उदय चन्द राज इत्यादि ने अपनी रचनाएं पढ़ीं।
इस मौके पर देवरिया के जिला विद्यालय निरीक्षक शिवचन्द राम, भारतीय जीवन बीमा निगम के पूर्व मंडल प्रबंधक हरिलाल, दलित चिंतक डा. अलख निरंजन, गीता देवी, श्रीमती शशि कला, रामवृक्ष, इमामुद्दीन, बंगाली प्रसाद, मनोज कुमार मिश्र, पुनिल कुमार, किशोर प्रसाद, गोरख प्रसाद, हवलदार प्रसाद, राजेश कुमार, दयाराम जैसवार,, राम दुलारे प्रसाद, सुरेन्द्र प्रसाद, ओम प्रकाश भारती, अजित कुमार, जय नारायण साह, गौरी नाथ जिज्ञासु, सच्चिदानंद, हरिद्वार, कौशल किशोर, जयराम बौद्ध, रमेश चन्द्र, दीनानाथ भारती, रामदुलारे, सुजीत, इंजीनियर रामनरेश, विनोद कुमारआदि उपस्थित रहे। आभार ज्ञापन शिक्षक एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण कुमार ने किया।