रामायण पर ‘ सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौगोलिक, आर्थिक, भाषिक एवं विधिक ’ विमर्श होगा
गोरखपुर, 9 अगस्त। दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय का इतिहास विभाग 12 और 13 अगस्त को रामायण पर राष्ट्रीय सम्मेलन ‘ रम्या रामायणी कथा ’ का आयोजन कर रहा है। यह आयोजन आरएसएस के संगठन भारतीय इतिहास संकलन समिति और भारतीय पुराण अध्ययन संस्थान के साथ मिलकर किया जा रहा है।
इस सम्मेलन में रामायण पर ‘ सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौगोलिक, आर्थिक, भाषिक एवं विधिक ’ विमर्श किया जाएगा।
सम्मेलन के अवधारणा पत्र में कहा गया है कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के इतिहास में बाल्मीकि को अद्भुत शिखर सम्मान दिया गया है। बाल्मीकि ने वैदिक संस्कत से भिन्न लौकिक संस्कृत में पहला प्रबन्ध काव्य रामायण लिखकर आदि कवि होने का गौरव पाया। रामायण में वर्णित रामकथा हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनकर हमारे साहित्य, दर्शन, चिन्तन, विचार, कला, नृत्य आदि सभी विधाओं एवं रचनाओं को न केवल प्रभावित किया है प्रत्युत उसका मूल स्रोत है। ‘
सम्मेलन में ‘ रामायण की ऐतिहासिकता ’, ‘ संस्कृत में रामायण-साहित्य एवं परम्परा ’ , ‘ महाभारत: रामोपाख्यान ’, ‘ पुराण: रामोपाख्यान, ‘ भारतीय भाषाओं में रामकथा, ‘ लोक साहित्य में रामकथा ’, ‘ भक्ति साहित्य में रामकथा ’, ‘ लोककला में रामकथा ’, ‘ लोकसंगीत में रामकथा ’, ‘ रामायण में भारतीय नारी ’, ‘ राष्ट्रीय स्मृति में रामायण ’, ‘ बृहत्तर भारत में रामकथा की व्याप्ति ’, ‘ रामायण एवं पुरातत्व ’, ‘ रामायण साहित्य एवं शोध का सर्वेक्षण ’, ‘ रामायण की पाण्डुलिपियां ’, ‘ आधुनिक भारत में रामायण का जनजीवन पर प्रभाव ’ पर शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं।