गोरखपुर, 29 अगस्त। नरेन्द्र मोदी सरकार में तानशाही प्रवृत्ति है। ठीक वैसी जैसी इंदिरा गांधी सरकार में थी। मोदी सरकार एक तरफ वह गरीबों के लिए लोक लुभावन नारे दे रही है तो दूसरी तरफ लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर रही है। अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगा रही है और लोकतांत्रिक विरोध के हर आवाज को कुचल रही है। सभी जांच एजेंसियों को विपक्षी दलों के नेताओं के पीछे लगा दिया गया है। यह सरकार का दोहरापन है। जिस दिन इस सरकार को लगेगा कि वह जनता का विश्वास खो चुकी है, देश पर आपातकाल थोप देगी लेकिन मोदी सरकार को समझना चाहिए कि 70 वर्ष में देश की लोकतांत्रिक संस्थाए इतनी मजबूत हो गई हैं और जनता सजग कि अब किसी सरकार में दम नहीं है कि वह देश पर इमर्जेंसी थोप सके। लोेगों को सजग जनता बने रहना जरूरी है। हम लोग सरकार को कभी ब्लाइंड सपोर्ट नहीं करें। सरकार को हर वक्त परखने की कोशिश करें तभी हम अपनी आजादी बचा पाऐंगे।
यह बातें वरिष्ठ पत्रकार एवं जेआईएमएमसी के डायरेक्टर नलिनी रंजन मोहंती ने 25 अगस्त को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पूर्व एमएलसी नागेन्द्र नाथ सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित ‘ सत्तर का भारत: एक विश्लेषण एवं आकलन ’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में कही। यह आयोजन नागेन्द्र सिंह स्मृति न्यास द्वारा किया गया था। श्री मोहंती ने आजादी के बाद से अब तक देश की विकास यात्रा और प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल का विस्तार से विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि आज भारत के विकास की यात्रा देखें तो मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है, पर कैपिटा इनकम बढ़ा है, परचेज पावर बढ़ा है। इस दृष्टि से देश आगे गया है लेकिन बहुत से लोगों का मानन है कि देश जितना प्रगति कर सकता था, उतना प्रगति नहीं कर पाया। लोग चीन से भारत की विकास यात्रा की तुलना करते हैं। दोनों देशों में लगभग एक समय से अपनी विकास यात्रा शुरू की लेकिन चीनी आज हमसे कृषि, उद्योग सहित सभी क्षेत्रों में बहुत आगे है। यह सही है कि चीनी में कम्युनिष्ट तानाशाही है और भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में बहुत सारी परेशानियां होती हैं। चीनी विकास के नाम पर एक शहर को रातोरात खाली करा सकता है लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग खास कर आरएसएस और भाजपा देश के अपेक्षित विकास नहीं होने का कारण देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की नीतियों को जिम्मेदार ठहराती है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बात को अक्सर कहते हैं। आज कुछ अर्थशास़्त्री और राजनीतिक मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यदि मिक्सड इकनामी की जगह आपेन मार्केट की नीति लिया होता तो देश का विकास उस वक्त साढ़े तीन प्रतिशत से बहुत अधिक होता लेकिन नेहरू ने एकदम सही कदम उठाया था। उस वक्त मिक्सड इकनामिक्स का कोई विकल्प नहीं था। ओपेन मार्केट संभव नहीं था। भारत के उद्योगपति इस स्थिति में नहीं थे कि वे क्रिटिकल उद्योग में निवेश कर सकें। खुद उद्योगपतियों ने बाम्बे प्लान में सरकार से कहा कि बड़े उद्योगों के लिए सरकार को पहल करनी पडेगी। इसलिए नेहरू ने पब्लिक सेक्टर को क्रियेट किया और साथ में प्राइवेट सेक्टर को सर्पोट किया। भारत ने 3.5 फीसदी ग्रोथ रेट पायी। उस समय के तीन मशहूर पोलिटिकल इकनामिस्ट ने ‘ इंडिया टूडे ’ नाम की किताब लिखी जिसमें कहा कि 3.5 फीसदी ग्रोथ मैक्सिमम था। ब्रिटेन और अमेरिका औद्योगिक क्रांति से निकल रहे थे, वह भी 3.5 फीसदी ग्रोथ ही पा सके थे। इस स्थिति में नेहरूवियन इकनामी को विश्लेषित करने की जरूरत है।
श्री मोहंती ने कहा कि नेहरू ने इंडस्टी की ग्रोथ की लेकिन कृषि पर ध्यान नहीं दिया। उनके समय में उच्च शिक्षा को महत्व मिला लेकिन प्राथमिक शिक्षा की स्थिति बहुत खराब रही। प्राइमरी हेल्थ केयर पर कोई काम नहीं हुआ। विश्व शांति के पक्के हिमायती होने के कारण उन्होंने रक्षा में निवेश नहीं किया जिसके कारण चीन से युद्ध में हमें पराजित होना पड़ा। लेकिन स्वाधीन भारत के पास जितने कम संसाधन थे, उसमें इससे बेहतर नहीं किया जा सकता था। नेहरू की प्राथमिकता सांइंस, बिजली उत्पादन, उच्च शिक्षा, औद्योगिकीकरण था। यह सपना गलत नहीं था। यह सही है कि नेहरू गांधी की स्वावलम्बन नीति से पूरी तरह से हट गए थे लेकिन जो लोग कहते हैं कि यदि गांधी की नीतियों के अनुसार भारत चला होता तो आज स्थिति दूसरी होती, विरोधाभास के शिकार हैं। वे एक तरफ मैक्सिम ग्रोथ रेट की बात करते हैं और दूसरी तरह गांधी की स्वावलम्बन की नीति की जिसमें ग्रोथ रेट की कोई संकल्पना हीं नहीं है। यह दोनों एक साथ कैसे हो सकता था। नेहरू की सबसे बड़ी देन देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना और उसे मजबूत करना था।
उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति की, बैंकों का राष्टीयकरण किया और गरीबों के लिए काम करने का नारा दिया। उन्होंने देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया लेकिन उनके राज में कोटा परमिट का बोलबाला हो गया। इसके कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला। नेहरू के ठीक उलट उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट करने का काम किया। विपक्षी नेताओं की आवाज को कुचलने का प्रयास किया और अंत में आपातकाल भी लागू किया। यदि उन्हें ठीक से पता होता कि चुनाव में वह दोबारा जीत कर नहीं आ रही हैं तो वह शायद आपातकाल हटाती ही नहीं।
उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद सही मायनों में खुली अर्थव्यवस्था की शुरूआत हुई जिसे राजीव गांधी, नरसम्हिा राव, अटल विहारी बाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकार ने आगे बढ़ाया। यह सही वक्त था जब देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के अनुकूल खोला जाता। इससे देश की विकास दर नौ फीसदी तक पहुंची। आज एनडीए और यूपीए में इस विकास दर का श्रेय लेने की होड़ रहती है लेकिन सही तथ्य है कि सरकारों से ज्यादा योगदान उस समय की विश्व अर्थव्यवस्था में हो रही तेज छलांग थी नही ंतो फिर एकाएक विकास दर गिरने क्यों लगती। श्री मोहंती ने राइट टू फूड और राइट टू इन्फार्मेशन को यूपीए सरकार द्वारा इस देश को दी गई महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।
उन्होंने कहा कि 2014 में नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व में बड़े बहुतम की सरकार आयी। इस सरकार के साढे तीन वर्ष के कार्यकाल को देखें तो यह ठीक इंदिरा गांधी की सरकार की तरह काम करती नजर आ रही है। उद्योगपतियों के हित में जमीन अधिग्रहण कानून बदलने के लिए चार बार अध्यादेश लाया गया। जब विरोध हुआ तो सरकार डर गई। इसके बाद नरेन्द्र मोदी ने गरीब, आम जनता के बारे में बात करनी शुरू की। किसानों के बारे में भी बात की। उनकी आय बढ़ाने की बात की। गरीबों का बैंक एकाउंट, डायरेक्ट सब्सीडी जैसे कदमों से इंदिरा गांधी जैसी गरीबों का मसीहा बनने की कोशिश की लेकिन इसके साथ ही साथ यह सरकार लोगों के अधिकरों पर हमला भी कर रही है। मोदी सरकार मानती है कि आम जनता का कोई स्वाधीन अधिकार नहीं होना चाहिए। सरकार उनके हित में काम कर रही है इसलिए वह सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट नहीं करे। इस सरकार ने लोगों की निजता के अधिकार हो हड़पने की कोशिश की। एटार्नी जनरल ने सरकार का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि आम जनता का प्राइवेसी का कोई अधिकार नहीं है। यह फंडामेंटल राइट नहीं सिर्फ सिम्पल लीगल राइट है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह प्राइवेसी हमारा मौलिक अधिकार है और कोई सरकार सरकार इसे कुचल नहीं सकती है। उन्होंने कहा कि ठीक इंदिरा गांधी सरकार की तरह देश की सभी इन्वेस्टिगेटिंग एजेन्सियों को राजनीतिक दुश्मनों पर लगा दिया गया है। क्या बीजेपी का कोई ऐसा नेता नहीं है जिस पर इन्वेस्टीगेशन नहीं होना चाहिए ? क्या सभी विपक्षी नेता ही भ्रष्ट हैं और भाजपा नेता पाक-साफ ? ललित मोदी प्रकरण में वसुन्धरा राजे सरकार, व्यापमं में शिवराज सरकार, छत्तीसगढ़ में वन मंत्री के जमीन घोटाले, पनामा पेपर्स खुलासे में आखिर कोई जांच या कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। पनामा पेपर्स में जिनके नाम सामने आए हैं वे सरकार के कई अभियानों के ब्रांड अम्बेसडर बने हुए हैं। यह दोहरापन इंदिरा गांधी सरकार में था और मोदी सरकार में भी है। इसी दोहरापन के चलते हमाको डर लगता है कि यहां जिस दिन इस सरकार को यह लगे कि जनान्दोलन शुरू होगा और वह हिल जाएगी तो इमर्जेन्सी इम्पोज करेगी लेकिन मोदी सरकार को जानना चाहिए कि देश के 70 साल में डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूशन मजबूत हुआ है और आम जनता सजग कि किसी का बूता नहीं है कि इमर्जेन्सी थोप सके।
आजादी के बाद से अब तक गांव, किसान और गरीब के साथ विश्वासघात हुआ है-अजीत कुमार झा
कार्यक्रम में बोलते हुए इंडिया टूडे ग्रुप के एडिटर रिसर्च अजीत कुमार झा ने कहा कि देश आज ऐसे जगह खड़ा है जहां से वह विकास की दौड़ में बड़ी छलांग लगा सकता है लेकिन गलत निर्णयों से काफी पीछे भी जा सकता है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से ही गांव, किसान और गरीब के साथ विश्वासघात होता आ रहा है। नेहरू से लगायत अब तक किसी भी सरकार ने गांवों, गरीबों और किसानों के लिए काम नहीं किया। यही कारण है कि आज साढ़े तीन लाख किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हुए हैं। उन्होंने कहा कि देश में कुछ राज्य खासकर कोस्टल राज्य समृद्ध हुए हैं तो उत्तर भारत के राज्य वैसे के वैसे गरीब हैं। इन राज्यों के बीच विकास की खाई बढ़ी है। ठीक इसी तरह इन गरीब और बीमारू राज्यों के भीतर समृद्धि और गरीबी के अलग-अलग छोर हैं। आजादी के वक्त पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच विकास में काफी फर्क था। आज फर्म कम होने के बजाय और बढ़ता गया है।
उन्होंने इंडिया टूडे द्वारा कराए गए कई सर्वे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लोग भ्रष्टाचार, गरीबी और बेरोजगारी को देश की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। एक तरफ ग्रोथ रेट बढ़ रहा है लेकिन युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा था। जाबलेस ग्रोथ किस काम का है। शिक्षा के प्रसार से लड़के-लड़कियां खूब पढ़ रहे हैं लेकिन सरकार उन्हें रोजगार नहीं दे पा रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार का नौजवान रोजगार की तलाश में विदेश पलायन कर रहा है।
किसानों की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कृषि विकास दर अपने निम्नतम स्थिति में पहुंच गई है। इस कृषि विकास दर से किसानों की आमदनी कैसे दोगुनी होगी ? इसके लिए जरूरी है कि गांधी जी बातों पर अमल किया जाए और गांव, किसान और गरीब के लिए काम किया जाए। उन्होंने पूर्वांचल के पिछड़े रह जाने के लिए सोशलिस्ट आंदोलन की कमजोरी को इंगित किया।
कार्यक्रम को रिटायर आईएएस अफसर चन्द्र प्रकाश सिंह, गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो प्रभाशंकर पांडेय ने भी सम्बोधित किया। इसके पहले राजेश सिंह ने सभी का स्वागत किया।
इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार एवं रंगकर्मी डा मुमताज खान, डा अच्युतानंद तिवारी, कैलाश पति त्रिपाठी, राम सबल पटेल, एसएन अली, प्रो अशोक चैधरी, फतेहबहादुर सिंह और तनवीर अहमद को सम्मानित किया गया। ई. शम्स अनवर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।