सुमन कुमार सिंह
आरा (बिहार) 7 सितम्बर. कन्नड़ की चर्चित महिला पत्रकार और संपादक गौरी लंकेश के हत्यारों की अविलंब गिरफ्तारी की मांग को लेकर आज स्थानीय करमनटोला स्थित शहीद-ए-आजम भगतसिंह की प्रतिमा के पास से शहर के साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों, छात्र-शिक्षकों, बुद्धिजीवियों, अधिवक्ताओं, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने प्रतिवाद मार्च निकाला, जो आरा रेलवे स्टेशन में पहुंचकर एक सभा में तब्दील हो गया। सभा में नागरिक-बुद्धिजीवियों ने कहा कि गौरी लंकेश की हत्या अंधविश्वास विरोधी अभियान के नेतृत्वकारी डाॅ. नरेंद्र दाभोलकर, जनवाद और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के लिए संघर्ष करने वाले कामरेड गोविंद पनसारे और कन्नड़ के विख्यात विद्वान प्रो. एम.एम. कलबुर्गी की हत्या की कड़ी में ही अगली हत्या है। पिछली तीनों विद्वानों की हत्याओें के आरोपी फरार हैं, एक मामले में एक को पकड़ा भी गया था, तो उसे जमानत मिल चुकी है। इसकी पूरी संभावना है कि केंद्र में सांप्रदायिक फासीवादी विचारधारा की सरकार बनने के बाद से इन हत्याओं को अंजाम देने वालों को संरक्षण मिल रहा है। अगर इनके खिलाफ कार्रवाई होती तो आज शायद हत्यारों को गौरी लंकेश की हत्या करने की हिम्मत न होती।
प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए जनवादी लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष प्रो. नीरज सिंह ने कहा कि यह मार्च भगतसिंह की प्रतिमा के पास से इस संकल्प के साथ निकला है कि हम शोषण, अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लोकतंत्र, समानता और आजादी के मूल्यों की लड़ाई को जारी रखेंगे। गौरी लंकेश इन्हीं मूल्यों के लिए लड़ रही थीं। वह हमारी आवाज थीं, हमारी साथी थीं। हम से एक भी आवाज जब तक जिंदा रहेगी, तब तक लड़ाई जारी रहेगी।
प्रलेस के राज्य महासचिव आलोचक प्रो. रवींद्रनाथ राय ने कहा कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हाल के वर्षों में दी गई चौथी बड़ी शहादत है। हत्यारों को भूलना नहीं चाहिए, कि इन सभी लोगों को हजारों अनुयायी हैं। हत्यारे व्यक्ति की हत्या करके विचारों की हत्या नहीं कर सकते।
प्रो. दूधनाथ चौधरी ने कहा कि पूरे देश में फासीवादियों के इस कायराना कुकृत्य का तीव्र विरोध हो रहा है। केंद्र की सरकार एक तानाशाह की सरकार है। इसे जनता के बुनियादी अधिकारों की कोई परवाह नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार- हर बुनियादी सवाल की वह अनदेखी कर रही है। गौरी लंकेश इस सरकार की तानाशाही का पर्दाफाश करती थीं, इसलिए ही उनकी हत्या की गई।
कवि अरुण शीतांश ने कहा कि गौरी लंकेश की हत्या के लिए कांगे्रस की सरकार भी जिम्मेदार है। दरअसल दोनों सरकारें मिली हुई हैं। दोनों को सिर्फ चुनाव की चिंता है।
आॅल बिहार प्रोग्रेसिव एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता अमित कुमार बंटी ने कहा कि लेखकों-पत्रकारों की हत्या के लिए मोदी सीधे जिम्मेवार हैं। उन्हीं के इशारे पर हत्यारे लेखक-पत्रकार-बुद्धिजीवियों की हत्या कर रहे हैं। लेकिन जर्मनी में हिटलर अंततः नहीं चला, तो भारत में भी हिटलर नहीं चलेगा, यह आरएसएस को समझ लेना चाहिए।
माले नेता राजू यादव ने कहा कि संघी सरकारों के आने के बाद बुद्धिजीवियों के साथ-साथ किसानों, नौजवानों, आदिवासियों, गरीबों, बच्चों- सबकी हत्याएं हो रही हैं। देश में बड़े पैमाने पर कत्लेआम हो रहा है और सत्ता इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है। वह हत्यारों की तरफदारी कर रही है, क्योंकि वे जनता के ध्यान बुनियादी सवालों से हटाने में सत्ता की मदद कर रहे हैं।
जसम के सुनील चौधरी ने कहा कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर जश्न मनाने और उन्हें गालियां देने वालों ने यह पहचान जाहिर कर दी है कि संघ की जहरीली विचारधारा ही इसके लिए जिम्मेवार है और हत्यारे उसी विचारधारा के हैं। इनके ट्वीटर एकाउंट को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फाॅॅॅलो करते हैं और मोदी सरकार की मंत्रियों के साथ उनकी तस्वीरें वहां मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि जनता एकजुट होकर हत्यारों की मंडली को जरूर परास्त करेगी।
प्रतिवाद सभा का संचालन जसम के राज्य सचिव सुधीर सुमन और आरा नगर, भाकपा-माले के सचिव दिलराज प्रीतम ने किया।
इस मौके पर सुधीर सुमन ने गौरी लंकेश की पत्रिका के अंतिम संपादकीय को पढ़के सुनाया, जिसमें कई ऐसी फर्जी खबरों और तस्वीरों का जिक्र है, जिनके आधार पर भाजपा-संघ के कार्यकर्ताओं और मंत्रियों ने सांप्रदायिक उन्माद भड़काने की कोशिश की। सुधीर सुमन ने जनता से अपील की, कि वह सांप्रदायिक हिंसा और उन्माद भड़काने वाले फर्जी खबरों के झांसे में न आए, बल्कि सही तथ्य को जानें और फर्जी और झूठा खबर फैलाने वालों का विरोध करे।
उन्होंने कहा कि गौरी लंकेश जनता के दुश्मन को बखूबी जानती थीं। उसके खिलाफ एकजुटता जरूरी समझती थीं। समतामूलक समाज के निर्माण के लिए वे साझा संघर्ष की जरूरत पर जोर देती थीं। इस मुल्क में तानाशाही, गैर-संवैधानिक, गैर-लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ साझा संघर्ष ही गौरी लंकेश के प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इस मौके पर कवि ओमप्रकाश मिश्र, सुमन कुमार सिंह, रविशंकर सिंह, आशुतोष कुमार पांडेय, आनंद पांडेय, शायर कुर्बान आतिश, इम्तयाज अहमद दानिश, चित्रकार राकेश दिवाकर, पत्रकार प्रशांत कुमार बंटी, शमशाद प्रेम, जनमित्र के विजय मेहता, माले जिला सचिव जवाहरलाल सिंह, युवा माले नेता मनोज मंजिल, अजित कुशवाहा, आइसा नेता आइसा राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन, बैजनाथ सिंह, वार्ड पार्षद सत्यदेव, एक्टू के नेता यदुनंदन चौधरी, बालमुकुंद चौधरी, शिक्षक नेता अखिलेश, दीनानाथ सिंह, राजेंद्र यादव, राजनाथ राम, अभय कुशवाहा, सुरेश पासवान, धनंजय कुमार आदि भी मौजूद थे।
प्रतिवाद मार्च में लोगों ने हाथों में तख्तियां उठा रखी थीं, जिनमें गौरी लंकेश के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग केे साथ फैज अहमद फैज, अवतार सिंह पाश, गोरख पांडेय और सुरेश कांटक आदि की काव्य-पंक्तियां लिखी हुई थीं