गोरखपुर, 4 सितम्बर। बीआरडी मेडिकल कालेज में बच्चों की मौत के बीच ‘ बरम बाबा ’ की भक्ति भी बढ़ती जा रही है। अपने बच्चों की जीवन की चिंता में लोग बरम बाबा को खड़ाऊँ और लंगोट चढ़ा रहे हैं और उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि वह उनके बच्चों की जान बचाएं।
‘ बरम बाबा ’ बीआरडी मेडिकल कालेज के 100 बेड वाले इंसेफेलाइटिस वार्ड और 54 बेड वाले वार्ड संख्या 12 के बीच बने रैन बसेरे के आंगन में स्थित हैं. यह रैनबसेरा वर्ष 2012 में सांसद मोहन सिंह की सांसद निधि से बना. इसके आस-पास रोगियों के परिजनों के लिए तीन भोजनालय चलते हैं. एक सामुदायिक रसोई घर भी है.
इसके आंगन में पीपल का बड़ा से पेड़ हुआ करता था जो अब नहीं है. उसकी जगह लोगों ने पीपल, पाकड़ का पौधा रोप कर चबूतरा बना दिया। अब यही ‘ बरम बाबा ’ हैं.
पीपल और पाकड़ के पेड़ कैसे ‘ बरम बाबा ’ बने और उन्हें खड़ाऊँ और लंगोट चढ़ाने की परम्परा कब शुरू हुई, यह सब रहस्य के पर्दे में हैं। इसके बारे में ठीक-ठाक किसी को नहीं पता. आंगन में कैंटीन चलाने वाले बताते हैं कि दो वर्ष पहले किसी ने बरम बाबा को लंगोट और खड़ाऊँ चढाते हुए पूजा की और देखते-देखते यह बहुत लोकप्रिय हो गया. आज की तारीख में रोज 25-30 लोग बरम बाबा को लंगोट-खड़ाउ चढ़ाकर अपने बच्चे की सलामती की मन्नत मांगते हैं.
मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग में जुलाई, अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर के महीनों में बाल रोगियों की तादाद बहुत बढ़ जाती है. एक समय में यहां पर 340-350 मरीज भर्ती रहते हैं. इनमें नवजात शिशु, इंसेफेलाइटिस के रोगी व अन्य बीमारियों से ग्रस्त बच्चे होते हैं. अधिकतर बच्चे गंभीर अवस्था में यहां भर्ती होते हैं जिनकी सलामती के लिए परिजन प्रार्थना करते रहते हैं.
‘ बरम बाबा ’ के लिए खड़ाऊँ और लंगोट की मांग ने मेडिकल कालेज के बाहर दुकान भी सजा दी है. मेडिकल कालेज के गेट पर नगर निगम के रैनबसेरा के पास दुर्गा मंदिर है. वहीँ बासुदेव चौधरी गुमटी में बरम बाबा की पूजा-अर्चना के लिए पूजन सामग्री बेचते हैं. बीआरडी मेडिकल कालेज के 1969 में स्थापित होने के 11 वर्ष बाद बासुदेव 1980 में मेडिकल कालेज आए थे. यहीं पर उन्होंने ढाबा खोला. दुर्गा मंदिर की साफ-सफाई और पूजा-पाठ भी करने लगे. अब दुर्गा मंदिर के पास हनुमान मंदिर भी स्थापित हो गया है.
ढाबा अब बासुदेव चौधरी का बेटा चलता है. बासुदेव अब पुजारी बन चुके हैं.
बासुदेव चौधरी बरम बाबा के चढावे का सभी सामान 125 रूपए में बेचते हैं. इसमें खड़ाऊँ , लंगोट, अगरबत्ती, कपूर सभी होता है. बासुदेव बताते हैं कि एक दिन में 25-30 लोग पूजा की सामग्री खरीदने आते हैं. उनके अनुसार इन महीनों में बरम बाबा के भक्तों की संख्या बढ़ जाती है. जाड़ा शुरू होते ही संख्या कम होने लगती हैं। वह स्वीकार करते हैं कि दो वर्ष से बरम बाबा की भक्ति बढ़ी है.
बड़ी संख्या में बच्चों की मौत ने लोगों को ‘ बरम बाबा ’ के प्रति आस्था बढ़ा दी है हालांकि खड़ाऊँ और लंगोट चढ़ाने से भी बच्चों की मौत में कमी नहीं आ रही है.