गोरखपुर, 15 सितम्बर। अगस्त और सितम्बर माह में जापानी इंसेफेलाइटिस के बढ़ते केस ने सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चिंतित कर दिया है। इस वर्ष विशेष टीकाकारण अभियान चलाए जाने के बावजूद 15 सितम्बर तक बीआरडी मेडिकल कालेज में जापानी इंसेफेलाइटिस के 83 केस रिपोर्ट हो चुके हैं। यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षों के मुकाबले कहीं से कम नहीं है जबकि इस महीने में अभी 15 दिन बाकी हैं।
सरकार और स्वास्थ विभाग द्वारा बार-बार दावा किया जा रहा था कि इस वर्ष जापानी इंसेफेलाइटिस के केस न्यूनतम हो गया है। इस कारण इस वर्ष 29 जून से 15 जुलाई तक 38 जिलों में विशेष टीकाकारण अभियान चलाकर 1-15 वर्ष के 92 लाख बच्चों को टीका जापानी इंसेफेलाइटिस का टीका लगाया जाना बताया जा रहा था।
2013 | 2014 | 2015 | 2016 | 2017 | |
JAN | 00 | 00 | 00 | 00 | 02 |
FEB | 00 | 00 | 00 | 00 | 01 |
MAR | 00 | 00 | 04 | 00 | 00 |
APR | 00 | 00 | 01 | 00 | 03 |
MAY | 00 | 00 | 02 | 00 | 02 |
JUN | 00 | 00 | 04 | 04 | 01 |
JULY | 07 | 00 | 06 | 03 | 06 |
AUG | 46 | 23 | 31 | 61 | 42 |
SEP | 46 | 52 | 47 | 51 | 26 |
Total | 99 | 75 | 95 | 119 | 83 |
वर्ष 2017 के आंकड़े 15 सितम्बर तक के हैं
जुलाई माह तक बीआरडी मेडिकल कालेज में जेई के सिर्फ 15 केस रिपोर्ट हुए थे। इससे सरकार के दावे में दम दिखाई दे रहा था कि जापानी इंसेफेलाइटिस के केस कम हुए हैं लेकिन अगस्त माह खत्म होते ही साबित हो गया कि जापानी इंसेफेलाइटिस का हमला अभी कम नहीं हुआ। बीआरडी मेडिकल कालेज में इंसेफेलाइटिस के 409 केस आए जिसमें 42 में जापानी इंसेफेलाइटिस की पुष्टि हुई। इसी तरह सितम्बर माह के पहले पखवारे में इंसेफेलाइटिस के 260 मरीज भर्ती हुए जिसमें जांच में 26 जेई पाजिटिव पाए गए। इस तरह वर्ष बीआरडी मेडिकल कालेज में जेई रोगियों की संख्या 83 हो गई है।
यदि पिछले पांच वर्ष के आंकड़ें देखें तो पता चलता है कि 2013 में 154, 2014 में 101, 2015 में 129 और 2016 में जापानी इंसेफेलाइटिस के 175 केस रिपोर्ट हुए थे। इस दृष्टि से इस वर्ष भी जेई के 83 केस रिपोर्ट होना चिंता का विषय है क्योंकि वर्ष खत्म होने पर अभी साढ़े तीन महीने हैं।
राहत की बात यह है कि इस वर्ष पिछले वर्षो के मुकाबले अभी तक जापानी इंसेफेलाइटिस से मौतें कम हैं।
नेशनल वेक्टर वार्न डिजीज कंटोल प्रोग्राम द्वारा 31 अगस्त तक जारी आंकड़े में यूपी में जेई के 128 केस रिपोर्ट होने की बात कही गई है जिसमें 4 की मौत हो गई। जबकि वर्ष 2013 में 281 केस और 47 मौतें, 2014 में 191 केस व 34 मौतें, 2015 में 351 केस व 42 मौतें और 2016 में 410 केस व 73 मौतें रिपोर्ट हुईं थीं।
क्या है जापानी इंसेफेलाइटिस
वर्ष 1978 में गोरखपुर में इस बीमारी की पहचान जापानी इंसेफेलाइटिस के रूप में हुई। जापानी इंसेफेलाइटिस का प्रकोप सबसे पहले 1912 में जापान में हुआ था। उसी समय इसके विषाणु की पहचान की गई और इससे होने वाले संक्रमण को जापानी इंसेफेलाइटिस का नाम दिया गया। जापानी इंसेफेलाइटिस का विषाणु क्यूलेक्स विश्नोई नाम के मच्छरों से मनुष्य में फैलता है। यह मच्छर धान के खेतों में, गंदे पानी वाले गड्ढों, तालाबों में पाया जाता है और यह पांच किलोमीटर की परिधि तक विषाणु फैला पाने में सक्षम होता है। यह विषाणु मच्छर से उसके लार्वा में भी पहुंच जाता है और इस तरह इसका जीवन चक्र चलता रहता है। मच्छर से यह विषाणु जानवरों, पक्षियों और मनुष्यों में पहुंचता है लेकिन सुअर के अलावा अन्य पशुओं में यह विषाणु अपनी संख्या नहीं बढ़ा पाते और वे इससे बीमार भी नहीं होते। इसी कारण इन्हें ब्लाकिंग होस्ट कहते हैं जबकि सुअर में यह विषाणु बहुत तेजी से बढ़ते हैं। इसी कारण सुअर को एम्पलीफायर होस्ट कहते हैं।
जापान में जापानी इंसेफेलाइटिस को वर्ष 1958 में ही टीकाकरण के जरिए काबू पा लिया गया। चीन, इंडोनेशिया में भी टीकाकरण, सुअर बाड़ों के बेहतर प्रबन्धन से जापानी इंसेफेलाइटिस पर काबू कर लिया गया लेकिन भारत में हर वर्ष सैकड़ों बच्चांे की मौत के बाद भी सरकार ने न तो टीकाकरण का निर्णय लिया और न ही इसके रोकथाम के लिए जरूरी उपाय किए जबकि देश में जापानी इंसेफेलाइटिस का पहला केस 1955 में ही तमिलनाडू के वेल्लोर में सामने आया था। आज जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्ड्रोम देश के 19 राज्यों के 171 जिलों में फैल गया है। इसमें से उत्तर प्रदेश, बिहार, असोम, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल के 60 जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2005 में जेई और एईएस से जब 1500 से अधिक मौतें हुई तो पहली बार इस बीमारी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर हाय तौबा मचा। तत्कालीन केन्द्र सरकार ने चीन से जापानी इंसेफेलाइटिस के टीके आयात करने और बच्चों को लगाने का निर्णय लिया।