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एआईआरएफ के अधिवेशन में छाया रहा निजीकरण व श्रम कानूनों में बदलाव का मुद्दा

सरकार से पुछा सवाल- जब सांसदों को पेंशन जारी तो कर्मचारियों की पेंशन क्यों छीनी
देश भर से आए प्रतिनिधियों ने संगठन और संघर्ष की रणनीति के प्रस्तावों को दी मंजूरी
गोरखपुर , 16 नवम्बर। संसद अपना कार्यकाल भले न पूरा करे पर सांसद की पेंशन जारी रहती है तो नौकरी से रिटायर होने के बाद कर्मचारियों की पेंशन सुविधा क्यों बंद की गयी। एआईआरएफ के 93 वें अधिवेशन के दूसरे दिन गुरुवार को सांगठनिक सत्र में यह सवाल देश भर से आए रेलकर्मियों ने सरकार से किया। साथ ही चेतावनी भी दी कि पुरानी पेंशन योजना बहाल करने के लिए उनका संघर्ष फैसलाकुन चलेगा।
अधिवेशन में लगभग सभी वक्ताओं ने रेलवे के निजीकरण और काफी संघर्ष के बाद मिले श्रम अधिकारों के खात्में की कोशिशों पर भी चिंता व्यक्त की। वक्ताओं ने कहा कि सरकार यह न भूले कि मौजूदा श्रम कानून ब्रिटिश हुकूमत से लड़कर हासिल किए गए थे। इसके लिए सैकड़ों मजदूरों ने शहादत दी थी। ये हमारी विरासत हैं। इन्हें खत्म करने की कोशिश भारी पड़ेगी। साथ ही उपस्थित कर्मियों को आगाह किया कि सरलीकरण करने के नाम पर श्रम कानूनों के खात्मे की साजिश को समझे और हर स्तर पर इसका विरोध करें।
सत्र के आरंभ में संगठन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्र ने केन्द्रीय संगठन की साल भर की गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि इस समय हमारे सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा है। उन्होंने कहा की भारतीय रेल में हमारा इतिहास सौ साल से ऊपर का है। एक तरफ सरकार श्रम विरोधी कानूनों से हमारी कार्य परिस्थितियां कठिन कर रही है दूसरी तरफ सत्ता पोषित नकली श्रम संगठनों को मजबूत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2019 के पहले हमे अपनी सांगठनिक तैयारी इतनी सुदृढ कर लेनी है कि सारे हमले मुंह के बल धराशायी हो जाएं। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि संगठन में युवाओं और महिलाओं का नया नेतृत्व तैयार हो रहा है जो काफी तेज और समझदार है।
संगठन के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव मुकेश माथुर ने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि रेलवे को कारपोरेट के हाथ में सौंपने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। यह जनता की सम्पत्ति है और जनता की रहेगी। हमने अपने सीने पर रेल चलाकर भारतीय रेलवे को सजाया संवारा है। यह देश की सेवा के लिए है और बनी रहेगी। इसे पूंजीपतियों के मुनाफे का कारोबार नहीं बनने देंगे।
हिंद मजदूर सभा की एशिया पैसिफिक रीजन की महासचिव व एआईआरएफ की महिला नेता चंपा वर्मा ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को मंदी में ढकेल दिया है। रोज भूख से मौतें हो रही हैं। तीन लाख से ज्यादा किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। हम बेशक गैर राजनीतिक संगठन है लेकिन इन प्रश्नों पर चुप नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि सत्ता की हर साजिश से सावधान रहे वह हमे बिखेर देना चाहती है। हम बिखरेंगे नहीं, अपनी एकजुटता से उनकी हर श्रमिक विरोधी नीति का विरोध करेंगे।
महामंत्री की रिपोर्ट पर देर शाम तक चर्चा हुई जिसे आंशिक संशोधनों के साथ प्रतिनिधियों ने मंजूरी दे दी। दोपहर में स्थानीय मीडिया के पत्रकारों व छायाकारों को सम्मानित भी किया गया। इस दौरान मंच पर मौजूद राष्ट्रीय संगठन के पदाधिकारियों जया अग्रवाल, आरडी यादव, मुकेश गालव, राजा श्रीधर, एन. कन्हैया, जी आर भोषले, नरमू के महामंत्री के एल गुप्त, डीएन चौबे ने अधिवेशन को संबोधित किया। सत्र का संचालन विदाई कमेटी के अध्यक्ष राखाल दास गुप्ता ने किया। अधिवेशन की मंच व्यवस्था का नरमू के अध्यक्ष बसंत चतुर्वेदी, विनय श्रीवास्तव संयुक्त मंत्री ने अपने साथियों के साथ किया। मीडिया व्यवस्था का संचालन नवीन मिश्र ने किया।

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