जीएनएल स्पेशल

बिना डॉक्टर का एक अस्पताल

30 बेड वाले जंगल कौड़िया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का हाल
तीन महीने से कोई डाॅक्टर नहीं
20 अफसर अब तक कर चुके हैं निरीक्षण लेकिन व्यवस्था जस की तस
अस्पताल परिसर में पानी भी नहीं मिलेगा
गोरखपुर, 27 दिसम्बर। इंसेफेलाइटिस व अन्य रोगों से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत को देखते हुए प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी-सीएचसी) को मजबूत करने की बात सरकार रोज कर रही है लेकिन हालत यह है कि तमाम अस्पताल डाक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। कही-कहीं तो एक भी चिकित्सक नहीं हैं।

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ऐसा ही हाल जंगल कौड़िया के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) का हैं। यह सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पिछले तीन महीनों से बिना डाक्टर का है। पांच चिकित्सकों वाले इस अस्पताल में अब सिर्फ दो चिकित्सक बचे हैं लेकिन वे दोनेां भी अवकाश पर हैं। फार्मासिस्ट व स्टाफ नर्स सहित पांच चिकित्सा कर्मी यहां जरूर तैनात हैं लेकिन चिकित्सकों के अभाव में वे मरीजों की चिकित्सा करने में असहाय हैं।
यह अस्पताल 2014 में बनकर तैयार हुआ था वौर 2015 में स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर हो गया.

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जंगल कौड़िया ब्लाक के सामने से जाने वाले रास्ते पर करीब 500 मीटर की दूरी पर यह अस्पताल बना। अस्पताल बनने से क्षेत्र के लोगों में उम्मीद जगी कि जंगल कौड़िया पीएचसी पर मरीजों का बोझ कम होगा और उन्हें विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएं भी मिल सकेंगी लेकिन जल्द ही लोगों की उम्मीद टूट गई।

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30 बेड वाले इस अस्पताल में वर्ष 2015 में पांच चिकित्सकों की तैनाती की गई थी लेकिन एक वर्ष बाद अचनाक यहां से चिकित्सकों व चिकित्सा कर्मियों का तबादला करना शुरू कर दिया गया। दिसम्बर 2016 तक एक-एक कर सभी चिकित्सकों का तबादला कर दिया गया। यहां पर तैनात दो स्टाफ नर्सों में से एक को जंगल कौड़िया प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भेज दिया गया। यहां तैनात एक सर्जन हमेश नसबंदी ड्यूटी पर रहते हैं जिससे उनकी सेवाएं क्षेत्र के लोगों को नहीं मिल पातीं।

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इस वक्त यहां पर एक महिला चिकित्सक सहित दो डाॅक्टर तैनात हैं लेकिन दोनों अवकाश पर हैं। महिला चिकित्सका मातृत्व अवकाश पर हैं तो दूसरे डाॅक्टर भी छुट्टी पर हैं। अब अस्पताल में दो फार्मासिस्ट, एक वार्ड ब्वाय, एक टेक्नीशियन, एक डेंटल हाईजीन व एक स्टाफ नर्स तैनात हैं लेकिन ये चिकित्सा कर्मी चिकित्सकों के अभाव में मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं। यहां तैनात जूनियर फार्मासिस्ट को अक्सर वीआईपी ड्यटी पर भेज दिया जाता है।

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गोरखपुर न्यूज लाइन ने 20 दिसम्बर को जब इस अस्पताल का दौरा किया तो देखा कि यहां चिकित्सा कर्मी खाली हाथ बैठे हैं। अस्पताल परिसर में घास व खरपतवार उग गए हैं। चिकित्सा कर्मी अपने संसाधन से मजदूर लगाकर कर साफ-सफाई करा रहे हैं। चिकित्सा कर्मियों ने बताया कि अस्पताल के लिए न कोई सफाई कर्मी है न चौकीदार। ब्लाक पर नियुक्त सफाई कर्मी भी यहां सफाई करने नहीं आते जबकि इसके लिए कई बार अनुरोध किया जा चुका है। चौकीदार न रहने से सामान भी चोरी हो रहे हैं। यहां रखे जनरेटर के कई उपकरण कुछ दिन पहले चोरी चले गए।

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सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का आपरेशन थियेटर, वार्ड बेकार पड़े हैं। अस्पताल भवन की नियमित सफाई न होने से दीवारें, टायलेट आदि टूट-फूट रहे हैं। कर्मचारियों और चिकित्सकों के लिए बने आवास वीरान पड़े हैं। उनमें कोई रहने वाला नहीं है।

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सबसे बड़ी दिक्कत पेयजल की है। अस्पताल के लिए बना ओवर हेड टैंक अभी चालू नहीं हो सका है। इसलिए अस्पताल से लेकर आवासों तक में पानी उपलब्ध नहीं हैं। पूरे अस्पताल परिसर में एक भी इंडिया मार्का हैण्डपम्प भी नहीं लगाया गया है। एक देशी हैण्डपम्प है जिससे काम चलााया जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि अस्पताल के हालात से स्वास्थ्य विभाग अफसर अनजान हैं। स्वास्थ्य विभाग के अफसर और प्रशासनिक अधिकारी नियमित निरीक्षण पर आते रहते हैं और व्यवस्था ठीक होने का भरोसा दिलाते हैं लेकिन न तो अभी डाॅक्टर तैनात हुए और न पानी, सफाई व्यवस्था ठीक हुई। चिकित्सकों के यहां न टिकने का भी प्रमुख कारण सफाई व पानी की अनुपलब्धता मानी जा रही है।
दो वर्ष के भीतर 20 अफसरों ने अस्पताल का निरीक्षण किया लेकिन व्यवस्था जैसे थी वैसे ही है।
यह अस्पताल वीआईपी क्षेत्र में है। अस्पताल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र में आता है और गोरखपुर जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है। फिर भी इसका ठीक से संचालित नहीं होना हैरत में डालता है।
इस अस्पताल के ठीक से संचालित नहीं होने से जंगल कौड़िया स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर काफी बोझ है। वहां पर जननी सुरक्षा योजना के तहत सिर्फ तीन बेड हैं और इंसेफेलाइटिस रोगियों के लिए दो बेड आरक्षित हैं। इसके बाद अस्पताल में कोई बेड नहीं है। इस अस्पताल में प्रतिदिन 15 से 20 डिलीवरी हो रही है और महिलाओं के लिए बेड की कमी हो जा रही है। दूसरी तरफ 30 बेड के अस्पताल का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है।

 

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