गोवंशीय पशुओं की मौत की खबर सार्वजनिक होने पर मरे पशुओं को गड्ढा खोद दफनाया गया
गोरखपुर /महराजगंज 14 जनवरी। महराजगंज जिले के मधवलिया गो सदन में गायों की मौत के मामले ने तूल पकड़ लिया है। गायों की मौत की खबर आने के बाद आनन-फानन में प्रशासन ने पोस्टमार्टम कराने के बाद मरी गायों को जेसीबी मशीन से गड्ढे खुदवा कर दफन करा दिया। प्रशासन अब यह कह रहा है कि गोसदन की एक भी गाय या बछड़े की मौत नहीं हुई है बल्कि गोरखपुर, देवरिया व अन्य स्थानों से भेजे गए 23 छुट्टा गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है जो पहले से बीमार और कमजोर थे।
महराजगंज जिले के निचलौल तहसील में मधवलिया गोसदन है। गो सदन के पास 500 एकड़ भूमि है। इसमें से 170 एकड भूमि को वार्षिक लीज पर देकर उसमे खेती करायी जाती है और उससे होनी वाली आय से ही गोसदन की व्यवस्था का संचालन होता है। इसके बावजूद गो सदन की दुव्र्यवस्था की खबरें जब-तब आती रही हैं।
13 जनवरी को सबसे पहले अमर उजाला अखबार ने मधवलिया गो सदन में एक सप्ताह में 29 गायों की मौत होने की खबर प्रकाशित की। इसके बाद एक न्यूज पोर्टल ‘ डायनामाइट न्यूज ’ ने भी इस खबर को चलाया। इस पोर्टल ने 40 से 100 गायों की मौत बतायी।
इसके बाद प्रशासन सक्रिय हुआ और उसने गोसदन में जहां-तहां मरे पड़े गोवंशीय पशुओं के शव को जेसीबी से गड्ढे खुदवाकर दफन करा दिया। इस सम्बन्ध में खबरे कई अखबारों के महराजगंज संस्करण में प्रकाशित हुई है।
यहां ध्यान देने की बात है गो रक्षा की बात करने वाली योगी सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहजिले के पड़ोसी जिले में दुव्र्यवस्था के चलते बड़ी संख्या में गायों की मौत की खबर को अखबारों ने प्रमुखता ने नहीं छापा। छापा भी तो इसे महराजगंज जिले के संस्करण तक ही सीमित रखा।
गोरखपुर न्यूज लाइन ने जब इस घटना की विस्तृत पड़ताल की तो पता चला कि एक जनवरी से 14 जनवरी के बीच गोसदन में 23 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है। 11 जनवरी को 6 गोवंशीय पशुओं और 12 जनवरी को एक गाय की मौत हुई। 12 जनवरी को दो बाडों में सात गोवंशीय पशु मरे दिखाई दिए। तीन गाये अचेतावस्था में जमीन पर गिरी पडी थी। गोसदन के कर्मचारी मरी गायों के शव हटाने और अचेत गायों का उपचार कराने का कोई प्रयास नहीं कर रहे थे। जब उन्होंने पत्रकारों को तस्वीर लेते देखा तब वे सक्रिय हुए गायों को चारा-पानी देने लगे। कर्मचारियों ने डाॅक्टर और सुपरवाईजर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। कर्मचारियों ने यह जरूर बताया कि उन्हें समय से मजदूरी नहीं मिल रही है।
पशुओं के बाड़े के कुछ दूर ही गिद्धों का झुण्ड दिखा। वहीं पास में एक गड्ढे में एक साथ एक दर्जन गोवंशीय पशुओं के शव पड़े थे जिन्हें गिद्ध नोंच रहे थे।
कुछ देर बाद गोसदन के सुपरवाइजर कमेलश मिश्र वहां पहुंचे लेकिन गोसदन में गायों की संख्या और गोवंशीय पशुओं की मौत के कारणों के बारे में वह कुछ बता न सके।
ग्रामीणों व कर्मचारियों ने बातचीत में बताया कि गोसदन में पशुओं के इलाज के किए अक्सर चन्द्रभान नामक व्यक्ति आता है। नये वर्ष में कोई भी पशु चिकित्सक यहां नहीं आया। गोसदन कर्मियों ने कहा कि अगर इलाज की बेहतर व्यवस्था होती तो कुछ गायों को बचाया जा सकता था। यह भी बताया गया कि काफी दिनों से गायों-बछड़ों को खाने के लिए महज भूसा ही दिया जा रहा है। हरा चारा, बरान या खरी नहीं दी जा रही थी। समुचित आहार नहीं मिलने से गोवंशीय पशु कमजोर होते गए। गोसदन की गायें तो जंगल किनारे चरने भी चली जाती है लेकिन यहां आए छुट्टा पशु खुद से चरने चरागाह नही जाते। उन्हें चरागाह ले जाने का भी प्रयास नहीं किया गया।
शनिवार को गोवंशीय पशुओं की मौत की खबर के बाद शनिवार को सीडीओ सिंहासन प्रेम व एसडीएम देवेश गुप्ता गोसदन आए। उसके बाद मरे पशुओं का पोस्टमार्टम कराया गया। पशु चिकित्सा अधिकारी अवध बिहारी ने दो पशुओं के पोस्टमार्टम करने के बाद उनके पेट में पालीथीन मिलने की बात बतायी।
मधवलिया गो सदन में इस समय 436 गाय, बछडे़ व सांड हैं। गो सदन की क्षमता 250 पशुओं को रखने की है और इस समय यहां 267 गाय-बछड़े हैं। इसके लिए टिन शेड के चार बाड़े बने हुए हैं। गो सदन में सिर्फ देशी गाय व बछडे़ रखे जाते हैं लेकिन इधर गोरखपुर नगर निगम द्वारा बड़ी संख्या में गोरखपुर से छुट्टा गाय, बछडे व सांड़ पकड़ कर यहां भेज दिए। देवरिया व अन्य स्थानों से भी गोवंशीय पशुओं को यहां भेजा गया। इस तरह सभी गोवंशीय पशुओं की संख्या 436 तक पहुंच गई। गो सदन में पहले से गायों-बछड़ो के चारे के जो इंतजाम थे वह नाकाफी हो गए। उपर से कड़ाके की ठंड ने पशुओं की हालत और खराब कर दी।
एसडीएम और गो सदन के प्रबंधक का दावा-गोसदन के एक भी गाय की मौत नहीं, दूसरे जिले से आए छुट्टा गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है
निचलौल के एसडीएम देवेश गुप्ता और गोसदन के प्रबंधक जितेन्द्र पाल सिंह ने गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि 11 जनवरी की रात चार बछड़े व दो बैल तथा 13 की रात एक बूढ़ी गाय की मौत हुई। इनमें से कोई गोसदन का नहीं थे। ये गोवंशीय पशु गोरखपुर,देवरिया आदि स्थानों से भेजे गए थे। ये जर्सी नस्ल के थे। इनका पोस्टमार्टम कराया गया तो उनके पेट से पालीथिन की थैलियां बरामद हुईं। इनकी मौत का कारण इनकी आंतों में पालीथिन की थैलियों का भर जाना है। एसडीएम और गो सदन के प्रबंधक ने दावा किया कि गोसदन में चारे की कोई कमी नहीं है और ठंड से बचाव के पूरे इंतजाम हैं।
एसडीएम ने कहा कि वह 13 जनवरी को गोसदन गए थे। उन्होंने वहां दो ट्रक भूसा और 40 ट्राली पुआल मौजूद था। ठंड से बचाव के लिए तिरपाल भी था। एक और तिरपाल का इंतजाम किया गया। जब उनसे पूछा गया कि कितने गोवंशीय पशुओं की मौत हुई तो उन्होंने कहा कि 11 से 14 जनवरी के बीच 7 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है। इसके पहले इक्का-दुक्का गोवंशीय पशुओं की मौत हुई होगी लेकिन उनकी संख्या के बारे में वह नहीं बता सकते।
गो सदन के प्रबंधक जितेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि उनकी नियुक्ति 29 सितम्बर को हुई थी लेकिन उन्हें 3 दिसम्बर को चार्ज मिला। तभी से वह गोसदन की व्यवस्था को दुरूस्त करने में लगे हैं। उनका कहना था कि 11 की रात दो बैल और 4 बछड़ों की मौत हुई थी। कर्मचारियों ने उन्हें काफी देर से अगले दिन इसकी जानकारी दी। इसके पहले मीडिया को खबर दी गई। जब वह पहुंचे तो उन्होंने चिकित्सकों को बुलाकर सभी मरे गोवंशीय पशुओं का पोस्टमार्टम कराया। पोस्टमार्टम में पशुओं की पेट से पालीथिन की थैलियां बरामद हुईं। ये गोवंशीय पशु हाल में गोरखपुर व देवरिया से भेजे गए थे। इस महीने गोरखपुर नगर निगम द्वारा बड़ी संख्या में छुट्टा गोवंशीय पशु पकड़ कर यहां भेजे गए। ये छुट्टा पशु चारा, भूसा कम खाते हैं क्योंकि उन्हें शहरों में फेंके गए खाद्यान्न, फल खाने की आदत पड़ चुकी होती है। पालीथिन सहित खाद्यान्न निगल जाने से वे बीमार भी थे। इसी कारण उनकी मौत हुई है। गोसदन की एक भी गाय या बछड़े की मौत नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि 100 या 29 की संख्या में पशुओं की मौत गलत है। एक जनवरी से 14 जनवरी तक कुल 23 गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है। ये सभी गोवंशीय पशु गोसदन के नहीं थे। इन्हें गोरखपुर व देवरिया से पकड़ कर भेजा गया था। उन्होंने स्वीकार किया कि छुट्टा पशुओं को पकड़कर गोसदन भेजने से यहां की व्यवस्था पर दबाव पड़ा है लेकिन चारे की कोई कमी नहीं है। बाड़े पूरी तरह दुरूस्त हैं जिससे पशुओं को ठंड लगने का कोई सवाल नहीं है।
उन्होंने पशु सदन क्षेत्र में पशुओं के कंकाल बिखरे होने के बारे में बताया कि यह काफी समय पहले मरे पशुओं के कंकाल है। चूंकि नई व्यवस्था में मरे पशुओं के चमड़े व हड्डियां नहीं बेची जाती हैं, इसलिए वे गोसदन परिक्षेत्र में पड़े हुए थे।