गोरखपुर, 15 जनवरी. गोवंशीय पशुओं की मौत से चर्चामें आये मधवलिया गोसदन की स्थापना चार जनवरी 1957 के एक शासनादेश के जरिए हुई थी। 18 अप्रैल 1969 में वन विभाग द्वारा इसके लिए पशुपालन विभाग को 711 एकड़ भूमि आवंटित की गई। इसके बाद 24 जून 1970 को पशुपालन विभाग को 500 एकड़ भूमि हस्तान्तरित कर दी गई। शेष 211 एकड़ भूमि मुआयना के बाद देने की बात कही गई लेकिन वह भूमि आज तक नहीं मिली।
इसी 500 एकड़ में गोसदन की स्थापना हुई। वर्ष 1997 में मंडलायुक्त राजीव गुप्ता के कार्यकाल में इसका जीर्णोद्वार हुआ।
वर्तमान में गोसदन की 500 एकड़ भूमि में 170 एकड़ में खेती है। वन विभाग ने हाल में 100 एकड़ भूमि को वन विभाग ने तार लगाकर अपने कब्जे में ले लिया है। शेष भूमि पर बाड़े व कार्यालय बना है और चरागार है।
गोसदन का संचालन प्रबंध समिति करती है जिसके पदेन अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं। गोसदन की आय के लिए इसके 170 एकड़ भूमि स्थानीय किसानों को लीज पर दी गई है। किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से प्रति वर्ष पांच हजार रूपए और भूसा व पुआल देना होता है। गोसदन में पहले से 13 कर्मचारी काम कर रहे हैं। एक और कर्मचारी की पिछले महीने की गई हैं। इस तरह 14 कर्मचारी काम कर रहे हैं जिनके वेतन पर हर महीने करीब 45 हजार रूपया खर्च होता है।
खर्च के हिसाब से गोसदन की आय ज्यादा नहीं है। पिछले एक वर्ष में गोसदन की व्यवस्था को ठीक करने में 18 लाख रूपए खर्च किए गए हैं। इसमें सांसद निधि से पांच किलोवाट का सोलर प्लांट भी लगाया गया है। इसके अलावा गोसदन की आय से बाड़े का विस्तारीकरण, मरम्मत और रबर के गद्दे भी खरीदे गए हैं।
जितेन्द्र पाल सिंह के पहले गोसदन के प्रबंधक डा. विमल पांडेय थे। उनके कार्यकाल में भी गोसदन कई बार विवादों में आया था।