सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर, 18। गोरखपुर लोकसभा से बेटे को सपा का टिकट दिलाकर निर्बल इंडियन शोषित हमारा दल (निषाद पार्टी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय कुमार निषाद पूर्वांचल की सियासत में एक दमदार नेता के तौर पर तेजी से उभरे हैं। सपा से गठबंधन उनकी सियासी ताकत में और इजाफा होगा.
गोरखपुर निषादों की राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। गोरखपुर-बस्ती मेंडल के सात जिलों की 41 सीटों में से कई सीटों-पिपराइच, चौरीचौरा, गोरखपुर ग्रामीण, पनियरा, मेंहदावल, खलीलाबाद, बरहज आदि स्थानों पर निषाद चुनाव जिताने व हराने की स्थिति में हैं। यही कारण है कि निषादों को अपनी ओर करने के लिए सभी राजनीतिक दल जोर लगाते हैं लेकिन अभी तक इसमें सपा और बसपा को ही सफलता मिलती रही है।
डा. संजय कुमार निषाद गोरखपुर के रहने वाले हैं और निषाद पार्टी (स्थापना अगस्त 2016) व राष्ट्रीय निषाद एकता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वह तब चर्चा में आए जब उन्होंने निषाद वंशीय समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल कर आरक्षण देने की मांग को लेकर कसरवल में जाट आंदोलनकारियों की तर्ज पर रेल ट्रैक जाम कर दिया था। उनका प्रशासन से टकराव हुआ जिसमें पुलिस फायरिंग में एक नौजवान मारा गया। इसके बाद उनके सहित तीन दर्जन साथियों को जेल जाना पड़ा।
जेल से छूटने के बाद उन्होंने निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल नाम से पार्टी बनाई और पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया। पीस पार्टी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों में अच्छा समर्थन है।
डा. निषाद काफी समय से निषादों की विभिन्न उपजातियों की एकता के लिए कार्य करते रहे हैं। उनका कहना है कि निषाद वंशीय समुदाय की सभी पर्यायवाची जातियों को एक मानते हुए अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। देश के 14 राज्यों में निषाद वंशीय अनुसूचिज जाति में शामिल भी हैं।
उत्तर प्रदेश में निषाद वंश की सात पर्यायवाची जातियां-मंझवार, गौड़, तुरहा, खरोट, खरवार, बेलदार, कोली अनुसूचित जाति में शामिल हैं लेकिन अन्य उपजातियों को ओबीसी में रखा गया है। उनके अनुसार निषाद वंशीय समाज की सभी जातियां संवैधानिक रूप से अनुसूचित जाति में हैं, इस बात को सिर्फ परिभाषित करने की जरूरत है जो केन्द्र व प्रदेश में बैठी सरकार नहीं कर रही है। उनका कहना है कि प्रदेश में निषाद वंशीय 17 फीसदी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में डा. संजय निषाद ने चुनाव तो नहीं जीते लेकिल निषाद वोट खूब बटोरा।
निषाद सियासत
राजनीतिक दलों के आंकड़ों के मुताबिक मंडल में सर्वाधिक निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में है। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या तीन से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। पूर्वांचल की सियासी जमीन निषाद राजनीति के लिए काफी उर्वरा है। गोरखपुर मंडल की सभी 28 विधानसभा व छह संसदीय क्षेत्रों में निषाद बिरादरी की मजबूत दखल है। गोरखपुर मंडल में निषाद बिरादरी के मजबूत वोट बैंक को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों में दिग्गज चेहरे नजर आते है। जब कौड़ीराम विधान सभा क्षेत्र में गौरी देवी विधायक थीं और अपने पति रवींद्र सिंह के यश और अपनी उपस्थिति के बल पर अपराजेय मानी जाती थी। उन्हें कांग्रेस से निषाद बिरादरी के लालचंद निषाद ने पराजित किया और गोरखपुर के पहले निषाद विधायक बने का गौरव हासिल किया।
निषाद राजनीति का उभार जमुना निषाद के दखल के बाद माने जाना लगा। नब्बे के दशक में जमुना निषाद तब सुर्खियों में आए जब उनकी गिनती ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ के करीबी के रूप में होने लगी। हलांकि बदले राजनीतिक परिदृश्य में जमुना निषाद गोरक्षपीठ के विरोध में खड़े हो गए। निषाद बिरादरी में आए राजनीतिक चेतना के बल पर सपा के टिकट पर जमुना निषाद ने दो लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी।
निषादों के समर्थन के कारण जमुना निषाद की पूछ हर दल में होती रही. बसपा में आने के बाद वह विधायक भ बने और फिर मंत्री भी. बलात्कार पीडि़ता की पैरवी में ठाणे पहुंचे जमुना निषाद के काफिले से चली गोली से महराजगंज कोतवाली के सिपाही कृष्णानंद राय की मौत के बाद उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा. मार्ग दुर्घटना में असमय मौत से निषाद नेतृत्व में कुछ देर के लये शून्य पैदा हुआ लेकिन जल्द ही डा. संजय कुमार निषाद ने उसे भर दिया. उन्होंने संगठन के बल पर न सिर्फ निषादों को संगठित किया बल्कि पार्टी बनाकर और विधानसभा चुनाव में अच्छा-खासा वोट बटोरकर राजनितिक दलों को अपने साथ आने पर मजबूर भी कर दिया. सपा से गठबंधन इसी का परिणाम है.