अशफाक अहमद/फरहान अहमद
गोरखपुर, 16 फरवरी। बुनकरों ने बजट पर जो प्रतिक्रिया दी है वह तवज्जो के लायक है। बुनकारों का कहना है बीमारी बहुत थी दवा मिली ही नहीं और जब-जब दवा दी मर्ज में इजाफा होता गया।
उप्र सरकार ने वर्ष 2018-2019 के बजट में पॉवरलूम के बुनकरों को रियायती दरों पर बिजली देने का वादा करते हुए 150 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। एक अन्य योजना के मद में 50 करोड़ रुपया देने की व्यवस्था की है। बुनकर इसे नाकाफी बता रहे है।
पुश्तैनी बुनकरी से जुड़े नौरंगाबाद के मसीउल्लाह अंसारी ने कहा कि बुनकरों को सब्सीडी का पैसा बैंक खाते में देने का फैसला सही नहीं है। अब हम लोगों को भी गैस सब्सीडी की तरह आफिस का चक्कर काटना पडे़गा। बजट से निराशा हुई है। हजारों की संख्या में रोजी-रोटी की जद्दोजहद कर रहे बुनकरों की मुट्ठी फिर खाली ही रही।
गोरखनाथ के मौलाना ओबेदुर्रहमान नदवी ने कहा कि बजट से आम बुनकरों को कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत बुनकरों का बिजली कनेक्शन दूसरे के नाम पर है। किसको सब्सिडी का लाभ मिलेगा समझ से परे है। बजट से बुनकरों को बहुत आस थी जो अब निराशा में बदल गयी है।
नौरंगाबाद गोरखनाथ निवासी अल्ताफ हुसैन ने कहा बजट में हमारे लिए कुछ खास नहीं है। सरकार ने बुनकरों की जो योजनाएं बनाई है उसकी हक़ीक़त यह है कि योजनओं का लाभ गरीब बुनकर को नहीं मिलता है। महाजन ही इसका लाभ लेते है।
गोरखनाथ निवासी उमर अंसारी ने कहा कि आज भी हम जैसे गरीब बुनकरों को 8 घंटा काम करने के बाद 150 रु. मिलता है। सरकार से बहुत उम्मीदें थी लेकिन बजट से नाउम्मीदी हाथ लगी है।
बजट में बुनकर
1. उप्र हैण्डलूम, पॉवरलूम, सिल्क, टेक्सटाइल्स एंड गारमेंटिंग नीति -2017 हेतु 50 करोड़ की व्यवस्था
2. पॉवरलूम बुनकरों को रियायती दरों पर बिजली देने के लिए 150 करोड़ रुपये की व्यवस्था
गोरखपुर में हैं एक लाख बुनकर
प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर के चारो ओर स्थित मुहल्ले बुनकरों के हैं। गोरखपुर के 14 मुहल्ले-चक्सा हुसैन, जमुनहिया, अहमदनगर, नौरंगाबाद, जाहिदाबाद, पुराना गोरखपुर, हुमांयूपुर, रसूलपुर, दशहरी बाग, अजय नगर आदि बुनकर बाहुल्य हैं जिनकी आबादी करीब एक लाख है। ये मुहल्ले गोरखपुर शहरी और गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में आते हैं। अधिकतर बुनकर बस्तियां गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में हैं।
मंद होती जा रही खटर-पटर की आवाज
रसूलपूर, जाहिदाबाद नौरंगाबाद मुहल्ले में आज भी करघों की खटर पटर सुनाई देती है लेकिन यह आवाज धीरे-धीरे मंद होती जा रही है। वर्ष 1990 तक इस इलाके में 17 हजार हथकरघे थे लेकिन अब बमुश्किल 100 हथकरघे ही बचे हैं। 1990 के बाद से बुनकरों ने पावरलूम पर काम शुरू किया। गोरखपुर में साढ़े आठ हजार पावरलूम लगे। कोई ऐसा घर नहीं था जहां दो तीन हथकरघे या पावरलूम न हो लेकिन बुनकरों के पास आज कोई काम नहीं और हजारों करघे खामोश पड़े हैं।
एक समय था जब इन मुहल्लों में बंगाल और बिहार से बुनाई करने मजदूर आते थे और कलकत्ता से व्यापारी। बुनकरों के बनाए चादर, तौलिए, गमछे, लुंगी की बहुत मांग थी। यहां की शाल भी बहुत मशहूर थी जो सिर्फ ढाई रूपए में बिकती थी जिसे स्टेपल धागे से बुना जाता था।
इस शाल को खरीदने के लिए व्यापारी यहां महीनों डेरा डाले रहते थे लेकिन अब सब कुछ खत्म हो रहा है। बुनकर उद्योग आखिरी सांस ले रहा है।
1990 से सरकार ने बुनकरों के उत्पाद खरीदने बंद किए
बुनकरों की हालत 1990 से खराब होनी शुरू हुई जब कताई मिले बंद हो गई और यूपी स्टेट हैंडलूम कार्पोरेशन भी बंद हो गया। कार्पोरेशन से बुनकरों को न सिर्फ सस्ते धागे मिलते थे बल्कि उनका उत्पाद भी खरीद लिया जाता था। कताई मिलों और कार्पोरेशन के बंद होने से बुनकर पूरी तरह महाजनों पर निर्भर हो गए। महाजन उन्हें तौल का धागा देता है और बुनकर बुनाई कर उतने ही वजन का कपड़ा देता है। बदले में प्रति मीटर के हिसाब से बुनकर को मजदूरी मिलती है। वर्ष 1995 तक बुनकर को 4 रूपए प्रति मीटर मजदूरी मिलती थी जो अब घटकर 3.80 पैसे तक आ गई है।
आठ नवम्बर 2015 को नोटबंदी के बाद बुनकरों की हालत और खराब हो गई क्योंकि महाजनों ने उन्हें धागा देना और उनसे बुने कपड़े लेने बंद कर दिए। इससे बुनकरों का काम पूरी तरह ठप हो गया है। आखिरकार उन्होंने अपने पावरलूम बेचने शुरू कर दिए।
-बिजली सब्सिडी का फायदा कारखानेदार उठा रहे
बुनकरों के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार की तमाम योजनाएं व घोषणाएं हैं लेकिन वास्तविक सिर्फ एक ही मदद मिल रही है, वह है बिजली बिल पर सब्सीडी लेकिन इस मदद ने भी बुनकरों को फायदा कम बल्कि उनको नुकसान अधिक पहुंचाया है। एक दशक पहले प्रदेश सरकार ने प्रति लूम बिजली का बिल फिक्स कर दिया जो आज 144 रूपए महीना है लेकिन सरकार ने अधिकतर बिजली लोड की सीमा 120 किलोवाट तक कर दी। इसका फायदा बड़े महाजनों ने उठाया और उन्होंने 200 से 400 की संख्या में पावरलूम के कारखाने बना लिए और दो-दो शिफ्ट में काम करने लगे। अब उन्हें बुनकरों से बुने कपड़े लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती और बिजली सब्सिडी का पूरा फायदा वही उठा लेते हैं। ऐसे महाजनों की संख्या एक दर्जन ही है लेकिन वे एक लाख बुनकरों की रोजी-रोटी पर भारी हैं।
दूसरी तरफ कपड़ों की बाजार व महाजनों से मांग न होने के कारण बुनकरों के पास कोई काम ही नहीं बचा। पावरलूम बंद हो गए लेकिन हर महीने बिजली का बिल देना पड़ता है। इस चक्कर में अधिकरत बुनकरों पर हजारों का बिजली बिल बकाया हो गया जिसे उन्होंने लूम बेच कर पूरा किया। पावरलूम बेचने के बाद कईयों ने चाय, फल, सब्जी की दुकान खोल ली है तो कुछ मजदूरी भी करने लगे हैं। हर क्षेत्र में मजदूरी बढ़ी है लेकन बुनकरों की मजदूरी घटती जा रही है। उन्हें एक मीटर कपड़ा बुनने में सिर्फ 3.80 पैसे मिलते हैं। आज से दो दशक पहले उन्होंनेे 4.10 रूपए मिलते थे। एक बुनकर पूरे दिन-रात काम कर 40 मीटर से अधिक कपड़ा तैयार नहीं कर पाता है। इस तरह वह 150-160 रूपया ही कमा पाता है जबकि मनरेगा मजदूर को 300 रूपए मिलते हैं। नोटबंदी के बाद बुनकरों की हालत और खराब हो गई क्योंकि महाजनों ने उन्हें धागा देना और उनसे बुने कपड़े लेने बंद कर दिए हैं। इससे बुनकरों का काम पूरी तरह ठप हो गया है।