मशहूर फिल्मों के साउंड इंजीनियर संजय चतुर्वेदी से बातचीत
सिद्धार्थनगर जिले के हैं संजय चतुर्वेदी
फिल्मी दुनिया की चकाचौध किसे नहीं अच्छी लगती। बड़ेे -बड़ेे फिल्मी सितारों को करीब से देखने की लालसा, उनसे बात करने की और उनके साथ काम करने की लालसा लोगों में होती है, लेकिन उनके बीच पहुंचना इतना आसान नहीं है। खासकर उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले के एक गांव में रहने वाले लड़कों के लिए। लेकिन कहते है न कि प्रतिभा संसाधन की मोहताज नही होती। यदि इरादे मजबूत हो तो बड़े सपने को भी पूरा किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ सिद्धार्थनगर के रहने वाले संजय चतुर्वेदी के साथ हुआ। बचपन से उन्हें कुछ अलग काम करने का मन था। इसलिए फिल्म में काम करना और एक्ट्रेस-एक्टर से ज्यादा कही फिल्म बनाने की विधा उन्हें ज्यादा प्रभावित किया करती थी। पर कहा फिल्मी दुनिया और कहा सिद्धार्थनगर। लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और आज उनकी गिनती बॉलीवुड के जाने-माने साउंड इंजीनियर में होती है। उन्होंने हनीमून ट्रैवल्ज, तारे ज़मीन पर , ओम शांति ओम, डेल्ही 6, रॉक ऑन, शंघाई , जिंदगी न मिलेगी दोबारा, मिर्च, काई पो चे, गेम, काइट्स, सात उच्चके, ढि़शुम, नूर , ए जेंटलमैन जैसी जानी-मानी फिल्मों में काम किया है.
पिछले दिनों संजय एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने के लिए सिद्धार्थनगर आये थे। स्वतंत्र पत्रकार प्रीती सिंह ने उनसे उनके कैरियर पर विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न- फिल्मों में कॅरियर बनाने का ख्याल कैसे आया ? सिद्धार्थनगर में उस समय ऐसा कोई माहौल भी नही था।
उत्तर- जब मैं शिवपति डिग्री कालेज में बीएसी में पढ़ रहा था तो सोचता रहता था कि आगे मुझे क्या करना है। उस दौरान जब मैं फिल्म देखता तो मुझे बड़ा सैटिस्फैक्शन मिलता था। फिल्म देखने के दौरान मेरे दिमाग मे चलता रहता था कि इस फिल्म में मैं ये कर सकता हूं, वो कर सकता हूं। दोस्तों से भी बातें बोलता और बताता की मेरा फिल्म में काम करने की मन है, मैं उन लोगों से अकसर कहा करता था कि हीरो के अलावा भी बहुत काम करने के लिए है फिल्मों में। खैर किसी तरह 2000 में ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर सोचने लगा कि अब कैसे करूं। फिल्मों में मैं क्या कर सकता हूं ये मैं लगातार सर्च कर रहा था। ऐसे ही मुझे पता चला कि पुणे जैसा एक और जगह है सत्यजीत राय फिल्म एंड टीवी इंस्टिट्यूट कलकत्ता में जहां सिनेमा की विस्तृत पढ़ाईं होती है, फिर क्या पहुंच गया वहां। 2006 में मैंने सिनेमा में मास्टर डिग्री ली और काम की तलाश या ये कहे कि खुद की तलाश में मुम्बई पहुंच गया और फिर शुरु हुआ मेरे सिनेमा का सफर।
प्रश्न- मुम्बई पहुंचने के बाद का सफर कैसा रहा?
उत्तर- सबकी तरह मैं भी कहूंगा शुरुवाती दौर बहुत कठिन था। इंडस्ट्री में मेरा कोई जानने वाला नहीं था। चूंकि मेरे पास साउंड इंजीनियरिंग की डिग्री थी तो अन्य लोगों की तरह मुझे उतना संघर्ष नहीं करना पड़ा। शुरुआत अस्टिेंट के तौर पर हुई। मेरी पहली फि़ल्म हनीमून ट्रैवल्ज थी। उसके बाद काम का सिलसिला शुरु हुआ जो अब तक जारी है। तारे ज़मीनपर , ओम शांति ओम, डेल्ही 6, रॉक ऑन, शंघाई , जिदंगी न मिलेगी दोबारा, मिर्च, काई पो चे, गेम, काइट्स, सात उच्चके, ढि़शुम, नूर , ए जेंटलमन, में मैंने काम किया है। मेरी आने वाली फिल्म है अमिताभ बच्चन की 102 नॉट आउट। इसके अलावा अक्षय कुमार की एक फिल्म में काम कर रहा हूं। उसका नाम है केसरी। इतनी फिल्में करने के बाद ये बदलाव आया है कि अब काम खुद चलकर आने लगा है। इंडस्ट्री में लोग मेरे काम को जानने लगे हैं।
प्रश्न : सिनेमा में कॅरियर बनाना कितना कठिन है?
उत्तर : देखिए, बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। जितना कठिन परिश्रम उतनी बड़ी सफलता। फिल्मों में भी ऐसा ही है। जिसके ऊपर जितनी जिम्मेदारी है उसको उसी हिसाब से पैसे और शोहरत मिलता है। फिल्म के हीरो पर पूरी फिल्म चलाने का बोझ है, इसलिए उनकी फीस भी करोड़ों में हैं। पर्दें के पीछे रहने वालों पर सिर्फ फिल्म बनाने की जिम्मेदारी होती है, इसलिए उनकी फीस उस हिसाब से होती है। लेकिन बाकी प्रोफेशन से ज्यादा मेहनत है।
प्रश्न : ‘शंघाई ‘ फिल्म के लिए आपको दो अवार्ड मिले थे। उस समय कैसा लगा ?
उत्तर : अवार्ड, आपके काम को जस्टीफाई करता है। ये महसूस होता है कि हम अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ है। हर फिल्म में बेस्ट करने की कोशिश करता हूं। मुझे ‘शंघाई ‘ फिल्म के लिए अप्सरा और सांउड इंजीनियर एसोसिएशन ऑफ इंडिया की तरफ से बेस्ट साउंड इंजीनियर का अवार्ड मिला था। मंच पर अवार्ड लेते समय की खुशी को बता नहीं सकता। मेरे सामने फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज बैठे थे। बचपन से उन लोगों को देखने की इच्छा थी। आज उनके साथ काम कर रहा हूं।
प्रश्न : ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए सिनेमा में कॅरियर बनाना आसान है?
उत्तर : ये सही है कि एक गांव से निकल कर सपनों की नगरी में कॅरियर बनाना आसान नहीं है और तब जब वहां आपका कोई जानने वाला नहीं है। लेकिन मैं फिर कहता हूं कि जितनी मेहनत करेंगे आपको उतनी ही सफलता मिलेगी। आज पहले की अपेक्षा स्थिति ज्यादा आसान है। गांवों में टीवी, इंटरनेट की सुविधा है। हर चीज की जानकारी मिनटों में आपको मिल जाती है। ऑनलाइन एडमिशन फॉर्म भरने से लेकर फीस तक आप जमा कर लेते हैं। ऑनलाइन आपको पता चल जाता है कि कहाँ पर अच्छी ट्रेनिंग ली जा सकती है। हमारे समय में एक फार्म लेने के लिए कॉलेज जाना पड़ता था। सब कुछ मौके पर पहुंच कर ही होता था। आज ऐसा नहीं है। इसलिए कोशिश करें, सफलता तो मिलेगी ही। लेकिन फि़ल्म में काम करने के लिए उसकी ट्रेनिंग लेनी बहुत ज़रूरी है। आप को नालेज होना ज़रूरी है।हां एक बात कहना चाहता हूं कि जिसके पास धैर्य बहुत ज्यादा हो तभी सिनेमा में कॅरियर बनाने की सोंचे।
प्रश्न : अंतिम सवाल, फिल्मी दुनिया के बारे में कहा जाता है कि वहां शोषण बहुत है, मानवता नहीं है। बहुत सारी बातें कही जाती है। क्या सच में ऐसा है?
उत्तर : देखिए, फिल्म इंडस्ट्री के बारे में जितनी निगेटिव बातें की जाती है ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ बुरे लोगों की हरकतों की वजह से पूरी इंडस्ट्री पर उंगली उठाना गलत है। फिल्म इंडस्ट्री में बहुत पढ़ें लिखे लोग है और बाहर से भी लोग आ रहे है। इंडस्ट्री हर किसी को अपना टैलेंट दिखाने की मौका देती है। बस एक ही चीज आपको सक्सेस दिला सकती है वो है ख़ुद आप का टैलेंट। फिल्म में सक्सेस पाने के लिए आपको ख़ुद पे भरोसा करना बहुत जरूरी है। और लगे रहना भी उतना ही जरूरी है।