साहित्य - संस्कृति

गोरखपुर के सात साहित्यकारों को मिला उर्दू अकादमी पुरस्कार

 

सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। शहर के उर्दू साहित्य व साहित्यकारों के लिए शुक्रवार का दिन बहुत खास रहा। उप्र उर्दू अकादमी ने वर्ष 2016 व 2017 के लिए पुरस्कारों की घोषणा की जिसमें पहली बार गोरखपुर शहर के सात साहित्यकारों को पुरस्कार के लिए चुना गया।

अकादमी ने वर्ष 2016 के लिए नखास के रहने वाले डा. मोहम्मद शोएब को उर्दू साहित्य में असीम योगदान के लिए एक लाख रुपया, घोसीपुर के रहने वाले युवा साहित्यकार डा. अब्दुर्रहमान को ‘इकबालियात-ए-बाज़याफ़्त’ किताब के लिए बीस हजार रुपया व 26 वर्षीय बड़े काजीपुर के रहने वाले युवा साहित्यकार अशफाक अहमद उमर को ‘बादा-ए-मगरिब’ किताब के लिए दस हजार रुपया का पुरस्कार देने का ऐलान किया है।

अकादमी ने वर्ष 2017 के लिए उर्दू हस्तलिपि विद्वान मोहनलालपुर निवासी उस्मान गनी को पन्द्रह हजार रुपया, तिवारीपुर की रहने वाली डा. दरख्शां ताजवर को ‘अवराक-ए-जर्री’ के लिए बीस हजार रुपया, पिपरौली के रहने वाले रिटायर्ड डिप्टी कंट्रोलर डिफेंस एकाउंट अब्दुलहई पयाम अंसारी के गजल संग्रह ‘दवा-ए-दिल’ के लिए दस हजार रुपया व नियामतचक निवासी शायर नसीम सलेमपुरी द्वारा लिखित शेरो-शायरी की किताब ‘ ताहद्दे नज़र’ को दस हजार रुपया पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है।

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उस्मान गनी

उस्मान गनी के हुनर की मुद्दतों बाद हुई कद्र

मोहनलालपुर के रहने वाले 61 वर्षीय उस्मान गनी को किताबत (उर्दू हस्तलिपि एक्सपर्ट) के लिए उप्र उर्दू अकादमी ने 15000 रुपया देने की घोषणा की है। पहली बार उनके हुनर की कद्र हुई है। उन्हें अकादमी द्वारा माहवार ढ़ाई हजार रुपया वजीफा भी मिलती है। जो बेहद कम है। सात साल पहले वजीफे का फार्म निकला था, तो उन्होंने भर दिया। पहले एक हजार रुपया वजीफा मिलता था। उस्मान कहते है अब हाथ से किताब लिखने का दौर खत्म हो गया। यह एक खास हुनर हुआ करता था जब कम्पयूटर नहीं था। काफी गरीबी में यह काम शुरू किया था लेकिन शौक और हौसला बुलंद था। पूरी जिंदगी में कभी खुद की किताब तो नहीं लिखी लेकिन दूसरों द्वारा लिखी करीब 20-25 किताबे अपने हाथों से तैयार (किताबत) की। अब किताबत का दौर खत्म हो चुका है। खुशी है कि अकादमी ने मुझे नवाजा। शेर में कहते है कि ” हम कहां ऐसे कि सोचे कोई, आपने सोचा तो यह एहसान किया”। उस्मान गनी ने दस सालों तक उर्दू अखाबारों में काम किया। इस उम्र में घर पर रहकर कम्पयूटर पर किताबत करते है। अकादमी द्वारा सराहे जाने पर अच्छा महसूस कर रहे है। कहते है 40 सालों की मेहनत की अब कद्र हुई। उस्मान ने पूरी शिक्षा मदरसे से हासिल की है।

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पयाम अंसारी मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस में काम करते-करते बने शायर
पिपरौली बाजार के रहने वाले 76 वर्षीय अब्दुलहई पयाम अंसारी के गजल संग्रह ‘दवा-ए-दिल’ को उप्र अकादमी ने पुरस्कार के लिए चुना है। पयाम ने शौकिया शायरी 1981-82 से शुरू की। मिनिस्टरी ऑफ डिफेंस में डिप्टी कंट्रोलर ऑफ डिफेंस एकाउंट में काम करते-करते पयाम कब शायर बन गए पता ही नहीं चला। वर्ष 2002 में रिटायर्ड हुए और गजलों की किताब लिखने लगे। ‘दवा-ए-दिल’ वर्ष 2017 में लिखी। उससे पहले ‘शऊर-ए-तख़य्युल’, ‘शऊर-ए-एहसास’ और ‘ताजा हवा’ लिखी। ताजा हवा को वर्ष 2015 में उप्र उर्दू अकादमी व बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। ताजा हवा इनकी बहुत मारूफ किताब बन चुकी है।

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 अशफाक ने 26 साल की उम्र में लिखी चार किताबें

बड़े काजीपुर के रहने वाले 26 वर्षीय युवा साहित्यकार अशफाक अहमद उमर की किताब ‘बादा-ए-मगरिब’ को उप्र उर्दू अकादमी ने वर्ष 2016 के पुरस्कार के लिए चुना है। अशफाक को पुरस्कार स्वरूप दस हजार रुपया मिलेगा। अभी हाल ही में बिहार उर्दू अकादमी ने वर्ष 2016 के लिए भी उनकी किताब को पुरस्कृत किया था। अशफाक अहमद उमर की यह दूसरी पुस्तक है। यह पुस्तक ‘शबनम गोरखपुरी के मंजूम तर्जुमा’ पर आधारित है। इसमें पश्चिमी कवियों शेले, किट्स, कोलरीज आदि के कलाम काे मंजूम तर्जुमा कर के उर्दू  मे शामिल किया गया है। इस पुस्तक को लिखने में अशफाक का सहयोग फिरदौसिया खातून ने दिया है।
अशफाक की पहले भी कई पुस्तकें पुरस्कृत हो चुकी है। जिनमें ‘कुलियत-ए-शबनम गोरखपुरी’, ‘ज़ज़्बात-ए-मायल’ व ‘कहती है तुझको खल्क-ए-खुदा क्या’ प्रमुख है। अशफाक ने डीडीयू गोरखपुर  से परास्नातक व जेएनयू से पीएचडी किया। इस समय अशफाक ‘ड्रामा अनारकली’, ‘फिल्म मुगल-ए-आजम’ और ‘शारेहीन-ए-इकबाल’ के साथ शरह निगारी के उसूल और फन पर काम कर रहे हैं।

डा. दरख्शां ताजवर की हर किताब को मिला पुरस्कार

तिवारीपुर की रहने वाली डा. दरख्शां ताजवर की किताब ‘अवराक-ए-जर्री’ को उप्र उर्दू अकादमी ने वर्ष 2017 के पुरस्कार के लिए चुना है। वह गोरखपुर की जमीन को साहित्य के लिए उपजाऊ करार देती है और कहती कि – ‘ जरा नाम हो तो ये मिट्टी बहुत जरखेज (उपजाऊ) है साकी’। उन्होंने अलग-अलग विषयों पर करीब दस किताबें लिखी हैं और आधा दर्जन से अधिक किताबों के लिए उन्हें पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। उनकी किताब ‘1857 उर्दू माखज के आइने’ के लिए 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें सम्मानित किया था। आकाशवाणी गोरखपुर के लिए कई लेख और फीचर लिखने वाली डा. ताजवर की ज्यादातर किताबें इतिहास के आइने में लिखी गई हैं। ताजवर की किताबों में हिन्दुस्तान की जद्दोजहद में उर्दू शायरी का हिस्सा, आजादी पर एक नजर, तिलोक चंद महरूम की शायरी और जद्दोजहद आजादी-ए-हिंद, जंगे आजादी शख्सियत, सरगुजिश्ते देहली (जीवन लाल का रोजनमाचा हिंदी में), 1857 उर्दू माखज के आइने में आदि प्रमुख है। ताजवर उप्र उर्दू अकादमी द्वारा वर्ष 1991, 2004, 2014, 2015, 2017 और बिहार उर्दू अकादमी द्वारा 2007, 2013, 2015 में पुरस्कृत हो चुकी है।

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नसीम की पहली ही किताब पुरस्कृत
नियामतचक के रहने वाले नसीम सलेमपुरी की पहली किताब ‘ताहद्दे नजर’ को उप्र अकादमी ने पुरस्कार के लिए चुन लिया है। 128 पेज की शायरी की किताब नसीम ने 2017 में लिखी। नसीम इस किताब को विमोचन 25 मार्च को एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर में सायं 6 बजे करने जा रहे है। पुरस्कार मिलने पर कहते है कि किताब में जरुर कोई बात रही होगी तभी तो पुरस्कार मिला है। इससे मेरा मार्गदर्शन होगा और भी बेहतर करने का मार्ग प्रशस्त होगा। यह मूलत: सलेमपुर, देवरिया के रहने वाले है।

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गोविवि का गोल्ड मेडलिस्ट अब्दुर्रहमान बना साहित्यकार

घोसीपुर के रहने वाले डा. अब्दुर्रहमान की किताब ‘इकबालियात की बाजयाफ्त’ के लिए उप्र उर्दू अकादमी द्वारा बीस हजार रुपया का पुरस्कार मिला है। गोविवि में एमए उर्दू से कर गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद जेएनयू से पीएचडी किया। यह इनकी पहली किताब थी। इस समय यह लखनऊ में अमेरिकन इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया स्टडी (एआईआईएस) में विदेशी छात्रों को उर्दू भाषा पढ़ाते है, करीब वर्ष 2013 से। इस समय यह इकबाल के नजरियात पर एक किताब और लिख रहे है जो इस साल मंजरे आम पर आ जायेगी। पुरस्कार मिलने पर बेहद खुश है और कहते है कि काम की कद्र होने से उत्साह दुगना हो जाता है। यह हाफिज-ए-कुरआन भी है।

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उर्दू की खिदमात में रचे बसे डा. मोहम्मद शोएब

नखास के रहने वाले डा. मोहम्मद शोएब अच्छे शायर व लेखक है। उर्दू साहित्य में नुमाया रोल अदा करने (तहकीक व तनकीद) के एवज में उप्र उर्दू अकादमी ने इन्हें एक लाख रुपया का पुरस्कार देने के फैसला किया है। करीब 1975 से इनका अदबी सफर शुरू हुआ। काफी पत्रिकाओं शेरो-शायरी व लेख लिख चुके है। काफी काबिल लेखक है। गोविवि से एमए व राजस्थान विवि से पीएचडी करने वाले शोएब ने एक महत्वपूर्ण कारनामा अंजाम दिया ‘लखनऊ में उर्दू नसर पर रिसर्च’ का। जो किताबी शक्ल में है। इस पुरस्कार में उक्त किताब का अहम रोल है। ऐसी किताब न हिन्दुस्तान में लिखा गई न पाकिस्तान में। ऐसा इनका दावा है। पुरस्कार मिलने पर खुश है। उर्दू अदब में इनकी बेशुमार खिदमात है।

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