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शायर डा. जावेद अतहर का इंतकाल, उर्दू अदब में ग़म

गोरखपुर। शायर डा. जावेद अतहर (66) का बुधवार देर रात लखनऊ के पीजीआई में इंतकाल (निधन) हो गया। उनका पार्थिव शरीर गुरूवार की सुबह करीब 7:30 बजे इलाहीबाग स्थित उनके निवास स्थान पर लाया गया। इलाहीबाग स्थित आगा मस्जिद के पास करीब 1:45 पर उनकी नमाजे जनाजा पढ़ी गयी और बहरामपुर स्थित बाले के मैदान कब्रिस्तान में तदफीन (अंतिम संस्कार) हुई। डा. जावेद के तीन बेटे व एक बेटी है।

उनके इंतकाल (निधन) से शहर के उर्दू अदब में ग़म का माहौल है।  शायर व ‘अदबी लहरें’ संगठन के जनरल सेक्रेट्ररी सैयद आसिम रऊफ कहते है कि डा. जावेद की शायरी व गजलों में एक सादगी व अपनापन था। जिसे हर खासो आम आसानी से समझ सकता था। उनके शायरी व गजलों की जब़ान सादा थी। आपने करीब 40 साल के अदबी सफर में काफी काम किया।

उन्होंने बताया कि डा. जावेद पेशे से डाक्टर थे। इलाहीबाग के रहने वाल डा. अतहर हुसैन के यहां 14 अक्टूबर 1952 को आपका जन्म हुआ। आपकी तालीम डीएवी इंटर कालेज व गोविवि में हुई। आपके पिता डा. अतहर हुसैन डाक्टर थे। डा. जावेद भी पिता के साथ उनके दवाखाने में सक्रिय रहे। डा. जावेद आखिरी समय तक बहुतों के दुख दर्द का इलाज करते रहे। शहर में नये रंग में शेर कहने वालों में डा. जावेद अपनी अलग पहचान रखते थे। वह शायरी केवल अपनी सोच के मुताबिक करते थे। आपने एक संस्था ‘अदबी संगमील’ भी कायम की थी। भोपाल से प्रकाशित ‘रिसाला-ए- इंसानियत’ में आपके शेरों व गजलों का संग्रह प्रकाशित हुआ था। जिसको काफी शोहरत हासिल हुई।

अभी आप चंद दिन पहले एमएसआई इंटर कालेज बक्शीपुर में शायरी की एक किताब ‘ताहद्दे नजर’ के विमोचन में तशरीफ ले गए थे। बस उसी दिन के बाद से आपकी तबियत खराब हुई तो फिर आराम नहीं मिला। बुधवार की देर रात करीब सवा बारह बजे आंखिरी सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही उनके निवास स्थान पर साहित्यकारों व शुभचिंतकों का तांता लग गया। उन्होंने कहा कि शहर के उर्दू अदब में उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता। वह अपने शेरों व गजलों के जरिए सभी के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।

शायर आलम कुरैशी ने कहा कि डा. जावेद अच्छे शायर होने के साथ बेहतरीन इंसान भी थे। उनके जाने से शहर के उर्दू अदब को काफी सदमा लगा है। वह शहर की अदबी बैठकों की जान थे।

डा. जावेद अतहर के कुछ कलाम

लफ़्ज कागज के फूल पर आकर।
बैठ जाते है तितलियों की तरह।
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पांव मंजिल पे हो चले खामोश।
खूब हलचल थी पहले छालों में।
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जुबां हम्द के नशे में डूबकर बोली।
प्यामे हक हमें हर हाल में सुनाना है।
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फिर उदासी की ओढ़ ली चादर।
क्या करे गम का मारा दुनिया में।
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शब को गवाह मान के तारीकियों ने फिर।
अच्छे दिनों की आस में रौशन दीया रखेँ।
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हम कहां जाएं छोड़कर तुझको ?
जिंदगी आ तुझे प्यार करें।
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सफर में सोचना पड़ता है अक्सर।
बहुत कुछ भूलना पड़ता है अक्सर।

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