पटना की सांस्कृतिक संस्था ‘ कोरस ‘ ने प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति की चर्चित कहानी पर आधारित नाटक ‘ कुच्ची का कानून ’ का मंचन किया
गोरखपुर. प्रेमचंद पार्क स्थित मुक्ताकाशी मंच पर आज शाम पटना से आयी सांस्कृतिक संस्था ‘ कोरस ‘ ने प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति की चर्चित कहानी ‘ कुच्ची का कानून ’ का मंचन किया.
यह आयोजन प्रेमचन्द साहित्य संस्थान और अलख कला समूह ने किया था। नाटक को देखने के लिए बड़ी संख्या में दर्शक जुटे. नाटक के मंचन के बाद वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने नाटक की निर्देशक एवं कोरस की सचिव समता राय को स्मृति चिन्ह प्रदान किया.
‘ कुच्ची का कानून ‘ गांव के गहरे अंधकूप से एक स्त्री के बाहर निकलने की कहानी है जिसे कुच्ची नाम की विधवा अपनी कोख पर अपने अधिकार की अभूतपूर्व घोषणा के साथ प्रशस्त करती है. यह ससुराल की भूसंपत्ति में एक स्त्री के बराबर की हिस्सेदारी का दावा करने की भी कहानी है. कुच्ची भरी पंचायत में सवाल करती है -मेरी कोख पर मेरा हक कब बनेगा ?
वह कहती है – ‘ मेरी गोद भरने से, मुझे सहारा मिलने से गांव की नाक कैसे कट जायेगी बाबा ? क्या मेरे भूखे सोने से गांव के पेट में कभी दर्द हुआ ? जेठ की धमकी से डर कर जब हम तीनों प्रणी रात भर बारी-बारी घर के भीतर पहरेदारी करते हैं तो क्या गांव की नींद टूटती है ? जब यह बहाने बनाकर मुझे और मेरे ससुर को गरियाता-धमकाता है तो क्या गांव उसे रोकने आता है ? जब मेरी भूख पूरे गांव की भूख नहीं बनती। मेरा डर पूरे गांव का डर नहीं बनता, मेरा दुःख-दर्द पूरे गांव का दुःख-दर्द नहीं बनता तो मेरे किये हुये किसी काम से पूरे गांव की नाक कैसे कट जायेगी ?
यह कहानी बेहद चर्चित हुई है. वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने इस कहानी के बारे में कहा है कि एक भी ऐसा समकालीन रचनाकार नहीं है जिसके पास ‘ कुच्ची ’ जैसा सशक्त चरित्र हो। चरित्र-निर्माण की यह क्षमता शिवमूर्ति को बड़ा कथाकार बनाती है.
कहानी का नाट्य-रूपांतरण और निर्देशन ‘ कोरस ‘की सचिव समता राय ने किया था. उन्होंने ‘ कुच्ची ‘ की मुख्य भूमिका भी निभाई.
बनवारी / सूत्रधार की भूमिका में रवि कुमार, सास/ सूत्रधार में मात्सी शरण. ससुर/ सूत्रधार में नीतीश कुमार, बलई काका की भूमिका में अरुण शादवाल, धन्नू काका/ सूत्रधार की भूमिका में मो. आसिफ, लछिमन चौधरी की भुमिका में उज्जवल कुमार, सुधरा ठकुराइन में रिया, चतुरा काकी में नीलू, सुलाक्षिनी की भूमिका में संगीता और मनोरमा की भूमिका में रुनझुन ने अपनी अभिनय क्षमता से दर्शकों को प्रभावित किया. गांव वालों की भूमिका में अविनाश और खुशबू थे. वस्त्र विन्यास मात्सी शरण, मंच व्यवस्था रवि कुमार की थी, नाटक की प्रापर्टी नितीश कुमार ने तैयार की. ध्वनि संयोजन रुनझुन ने किया. मंच से परे बैजनाथ मिश्र, बेचन पटेल और उनके साथियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इस नाटक का मंचन करने वाली संस्था ‘ कोरस ’ खास तौर पर महिला प्रश्नों पर काम करने वाली पटना की सांस्कृतिक टीम है। कोरस की स्थापना 1992 में प्रख्यात लेखक एवं संस्कृति कर्मी डॉ महेश्वर ने की थी. उस समय यह सिर्फ लड़कियों की गायन टीम थी. उनके निधन के बाद कोरस का काम ठप हो गया। आठ मार्च 2016 को इसकी पुनः शुरुआत की गई.
इसके बाद से ‘ कोरस ‘ लगातार सक्रिय है. कोरस ने मंचीय नाटक के साथ -साथ नुक्कड़ नाटक व गीतों की प्रस्तुति, सेमिनार, वर्कशॉप, कविता-पाठ के आयोजन किए हैं. संस्था ने ‘ कत्लगाह ‘ नाम की एक शार्ट फिल्म भी बनाई है. संस्था द्वारा 1-3 जून को पटना में नाट्य समारोह का भी आयोजन किया जा रहा है.
‘ कुच्ची का कानून ’ का मंचन 23 और 24 अप्रैल को मउ में और 25 को आजमगढ़ में भी होगा.