सिक्किम यात्रा-2
भारत का स्विट्ज़रलैंड कहे जाने वाले गंगटोक के स्थानीय पर्यटन स्थलों को देखने के क्रम में हमारे टैक्सी ड्राइवर जेपी ने सबसे पहले दूर स्थित हनुमान टोक को दिखाना मुनासिब समझा। यहां पर टूर पाइंट्स के हिसाब से तय होते हैं । आप कितने पॉइंट्स देखना चाहते हैं। हमने दस पाइंट्स देखने तय किये।
हनुमान टोक के बाद हम गणेश टोक गए।यह मंदिर छोटा ज़रूर है लेकिन साफ सुथरा है। थोड़ी ऊंचाई पर है जहां से शहर का नज़ारा आकर्षक दिखता है. मंदिर के सामने जलपान की दुकानें भो हैं. इसके अलावा कुछ युवतियों ने सिक्किम के पारंपरिक ड्रेस की दुकान भी लगा रखी हैं जिसे पहन कर आप फोटो खिंचवा सकते हैं। इसी के पास चिड़ियाघर भी है जो कि उस दिन बंद था. चिड़िया घर गेट के प्रवेश दुआर पर हमने कुछ फोटो खिंचवाकर इसे भी अपनी दर्शनीय सूची में डाल लिया. घूमने के क्रम में बकथाम वाटर फॉल भी गए. बताते है कि यह गंगटोक का इकलौता वाटरफॉल है. यहां पर कुछ महिलाएं रस्सी पर स्लाइडिंग के ज़रिए एक सीमित ऊंचाई से ऊपर से नीचे की और आते हुए इस जगह का पूरा लुत्फ उठा रही हैं. कुछ डरी हुई और सकपकाई हुई और कुछ पूरी दमदारी के साथ. एक चक्कर की फीस सौ रुपये थी. मुझ जैसे कमजोर दिल वाले दूर से देख कर खुश हो लिए.
इसके बाद ताशी व्यू पॉइन्ट गए. यहां का नज़ारा बेहद खूबसूरत है. यहां से मौसम साफ होने पर विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचन जंगा साफ दिखाई पड़ती है. यहां फ़ोटो के लिए अलग से एक गोलनुमा मचान बना हुआ है जहां फ़ोटो शोटो खिंचवाना आसान काम नहीं है. हमेशा भीड़ ही लगी रहती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां सुबह पांच बजे आना ज़्यादा फायदेमन्द है.
सुबह के वक्त कंचनजंगा साफ दिखाई पड़ती है. यहां पर भी एक होटल है जहां आप स्नैक्स और कॉफी का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां भी आप सिक्किम का पारंपरिक ड्रेस पहन कर आप फ़ोटो खिंचवा सकते हैं. बहुत सारे पर्यटक फ़ोटो खिंचवाते भी दिखे. यहाँ आपको का सिक्किम का बना हैंडीक्राफ्ट्स भी मिल जाएगा. यहां से गंगटोक का नज़ारा भी बहुत दिलकश है. इसके अलावा हम मोनेस्ट्री भी गए. स्थानीय पर्यटन स्थलों को देखने को लेकर मुझ में सबसे ज़्यादा उत्साह फूलों की प्रदर्शनी को लेकर था हालांकि मैंने दिल्ली का मुग़ल गार्डन देखा था जो कि काफी बड़ा है. फिर भी जब भी फूलों की बात आती है तो ‘ सिलसिला ‘ के गाने का वह सीन याद आ जाता है ” देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए “.
गंगटोक टहलते हुए दो फिल्मों की याद आयी एक तो ‘ सिलसिला ‘ और दूसरी अजय देवगन की ‘ शिवाय ‘। ‘ सिलसिला ‘ फ़िल्म जिसमें फूलों के बाग़ हैं और बर्फ की चादरों से ढके पहाड़. शायद सिलसिला फ़िल्म की शूटिंग भी स्विट्ज़रलैंड में हुई है. खैर मैं भारत के स्विट्ज़रलैंड में था. और दूसरी पिछले साल आई अजय देवगन की मूवी ‘ शिवाय ‘ जिसमें हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों को दिखाया गया है.
फूलों की प्रदर्शनी में बीस रुपये शुल्क लगते हैं. यहां तरह-तरह के खूबसूरत फूल हैं जो आंखों और दिल दोनों को सुकून देते हैं। मद्धिम आवाज़ में काड्रोफोनिक साउंड लगे हुए हैं जिसमें हिंदी फिल्मों के गाने बज रहे हैं जो माहौल को और भी खुशगवार बना देते हैं.
रोपवे मैंने दूर से ही देखा. उसमें जाने को लेकर कोई उत्सुकता नहीं थी. मैंने अपने ड्राइवर को वहां जाने से मना कर दिया. चूंकि नेपाल भ्रमण के दौरान मनोकामना मंदिर देखने के क्रम में मैं केबिल कार की सुरक्षित सवारी कर चुका था इस वजह से रोप वे को लेकर मुझ में कोई उत्साह नहीं था.
आखिर में हम तिब्बतलोजी देखने गए. यहां हमने बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्य प्राचीन अवशेष देखे. प्राचीन धर्म ग्रंथ भी यहां उपलब्ध थे. यहां तिब्बती भाषा,संस्कृति,और दर्शन की शिक्षा भी दी जाती है. संग्रहालय के अंदर फोटो शूट करने पर मनाही और जुर्माना भी है. इसकी दूसरी मंजिल पर एक विशाल लाइब्रेरी भी है जहां अमूमन कम लोग जाते हैं. रिसेप्शन पर मौजूद व्यक्ति से मैंने पूछा ऊपर भी कुछ देखने के लिए तब उसने लाइब्रेरी की जानकारी दी.
बताते हैं कि किसी शहर को समझना हो तो पैदल घूमना चाहिए. मैं इस शहर को पैदल घूम कर देखना और समझना चाहता था लेकिन समय की कमी की वजह से अपने इस अरमान को पूरा न कर पाया।