गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज के निलंबित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफील खान ने कहा कि इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिए बने इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। गांव-गांव में झोला छाप डाक्टरों का मजबूत नेटवर्क है। उनके चंगुल में फंसने के कारण बच्चों की हालत और नाजुक हो जा रही है।
डॉ कफील रविवार को स्टॉर हॉस्पिटल में आयोजित पहले इंडियन प्रोफेशनल कांग्रेस के सेमिनार में बतौर विशेषज्ञ मौजूद रहे। सेमिनार का विषय ‘ इंसेफेलाइटिस नियंत्रण- चुनौतियां व उपाय ‘ रहा। इस दौरान डॉ. कफील ने कहा कि बच्चों को बुखार हो, झटका आए और वह बड़बड़ाने लगे तो फौरन विशेषज्ञ डॉक्टर से ही इलाज कराएं, झोलाछाप से नहीं।
इस मौके पर पत्रकार मनोज सिंह ने कहा कि इंसेफेलाइटिस उन्मूलन के लिए जमीन पर कम कागजों में ज्यादा प्रयास हो रहा है. सरकार अब तक हाई रिस्क वाले गांव में शुद्ध पेयजल और शौचालय मुहैया नहीं करा सकी. जबकि इस पर पिछले एक दशक से लगातार योजनाएं बन रहीं है। उन्होंने कहा कि चार दशक बाद भी इंसेफेलाइटिस उन्मूलन की सरकारी कार्ययोजना सही दिशा में नहीं है और सरकार के प्रयास बेहद कम प्रभाव डाल पा रहे हैं.
श्री सिंह ने कहा की इलाहबाद हाई कोर्ट ने एक दशक पहले पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत पर टिप्पणी की थी कि वहां हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात हैं और इंसेफेलाइटिस को नाथने के लिए सभी प्रयास फ़ौरन होने चाहिए. श्री सिंह ने उदाहरण देते हुए बताया कि 10 वर्ष बाद भी पीएमआर विभाग पूरी तरह कार्यशील नहीं है, एनआईवी की रीजनल यूनिट और सीआरसी की स्थापना के लिए अभी तक जमीन नहीं खोजी जा सकी है. सीएचसी और पीएचसी में चिकित्सकों की भारी कमी है और वहां पर बच्चों का इलाज संभव नहीं हो पा रहा है.
डॉ. सुरहिता करीम ने कहा कि मौत की यह बीमारी पूर्वांचल के लिए पहचान बनती जा रही है। इस दाग को खत्म करने के लिए सभी को आगे आना होगा। पैनल में शामिल अधिवक्ता केबी दूबे ने भी अपना विचार व्यक्त किया।
इस दौरान डॉ. सैयद जमाल, गोरखलाल श्रीवास्तव, अचिंत्य लाहिड़ी, डॉ. मधु गुलाटी, डा. रंजना बागची, डा. सुरेश श्रीवास्तव, महेश बालानी, एमपी कंदोई, रमिला जमाल, अदील अहमद खान, अमित त्रिवेदी,अनवर हुसैन मौजूद रहे। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजाहत करीम ने किया जबकि संचालन एआइपीसी के सचिव नुसरत अब्बासी ने किया।