साहित्य - संस्कृति

‘ नहीं पसंद मेरे तंग ज़हन क़ातिल को, ये हर्फे शुक्र,ये खंजर पे मुस्कराना मेरा ’

बज़्म ए फिक्र ओ फन के तत्वावधान में लखनऊ में  मुशायरे का आयोजन

लखनऊ। बज़्म ए फिक्र ओ फन के तत्वाधान में एक शानदार मुशायरे का आयोजन अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान ,विभूति खंड गोमती नगर में शनिवार की रात में किया गया । मुशायरे में देश के जाने माने युवा शायरों और कवियों ने हिस्सा लिया और अपना कलाम पेश किया।अध्यक्षता मनीष शुक्ला ने और शानदार संचालन प्रखर मालवीय कान्हा ने किया।

वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मनीष शुक्ला ने अपने कलाम के ज़रिए श्रोताओं को बांधे रखा।उन्होंने बहुत ही आसान लफ़्ज़ों में बड़ी बात कही।

तुम अपनी बात कहना जानते हो
तुम्हें लफ़्ज़ों की आसानी मुबारक।

दिल्ली से तशरीफ़ लायी जानी मानी शायरा हुमा शाह ने अपने कलाम के ज़रिए तालीम और बेरोज़गारी पर नज़्म सुनाकर खूब वाह वाही लूटी।उन्होंने इसके अलावा ये शेर भी सुनाया।

नींद आना मुश्किल सही
जाग जाना आसान कहाँ

डॉ तारिक़ कमर ने अपने कलाम के ज़रिए खूब वाह वाही लूटी। उन्होंने पढ़ा।

अजीब रद्दे अमल था ,वो रोशनी के खिलाफ
जला जला के चरागों को खुद बुझाना मेरा
नहीं पसंद मेरे तंग ज़हन क़ातिल को
ये हर्फे शुक्र,ये खंजर पे मुस्कराना मेरा।

लखनऊ के युवा शायर क्षितिज कुमार ने अपने कलाम के ज़रिए चुनौतियों से जूझने का पैगाम दिया।
उन्होंने ये शेर पढ़ा।

कोशिशों से हारी है ,मुश्किलें कैसी भी
कितने भी सघन वन हों,रास्ते निकले हैं।

राजस्थान से तशरीफ़ लाये विपुल कुमार ने यह शेर सुनाकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।

पानियों को पानियों से खौफ था
वरना इन आँखो से दरिया देखते।

मेरठ से तशरीफ़ लाये मशहूर शायर अज़हर इक़बाल ने अपना कलाम कुछ यूं पेश किया।

अचानक मर गया किरदार कोई
अधूरा रह गया किस्सा हमारा।

प्रखर मालवीय कान्हा ने पढ़ा

ऐसा मसरूफ था आंखों की हिफाज़त में
तेरा होना भी मेरे यार नहीं मैं देख सका।

स्वप्निल तिवारी,मुम्बई ने जब यह शेर सुनाया तो लोग खुशी से झूम उठे।

ये तुमने कैसे बनाकर हमें किया है गुम
खुशी से झूम उठेगा ,जिसे मिलेंगे हम।

पूना से तशरीफ़ लायीं पूजा भाटिया ने भी अपने कलाम से लोगों को अपनी और खींचा।

परिंदा कोई है न घोंसला है
ये पेड़ कब तक हरा रहेगा
मुझे मेरे बाद ढूढ़ना तुम
तुम्हारा दिल भी लगा रहेगा।

उपरोक्त के अलावा शहज़ादा कलीम और तरकश प्रदीप के अलावा अन्य कई कवियों/शायरों ने भी अपने कलाम के ज़रिए खूब वाह वाही लूटी। संयोजक ज़मीर खान ने आये हुए शायरों ,अतिथियों और श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। श्री खान ने कहा कि मेरे पिता मरहूम गुलफाम खान ने यह तंज़ीम बनाई थी। साहिर लुधियानवी,नौशाद और रविन्द्र जैन जैसी बड़ी शख्सियतें इस तंज़ीम से जुड़े थे।मुख्य अतिथि के रूप में प्रताप गढ़ के सांसद हरवंश सिंह मौजूद रहे। इसके अलावा मूसा खान,अहमद फरीद अब्बासी,ज़िया मालिक,काज़ी राशिद,ग़ज़ल गायक प्रदीप अली,शमीम अख्तर,आदि की उपस्थित उल्लेखनीय रही।

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