अभी पिछले महीने, अगस्त में, यती भाई मेदांता,गुडगांव में भर्ती थे। लिवर खराब था। ट्रांसप्लांट होना था। मैं गुड़गांव आ रहा था तो गोलघर में उनके घर से पता आदि ले कर आया। वे सेक्टर 38 में, मेदांता अस्पताल के पीछे पोटेंशियल गेस्ट हाऊस में थे। उनकी देखरेख के लिए भाभी भी साथ थीं। मैं 17 अगस्त को सपरिवार पहुंचा। कमरे के बाहर से ही सीधे बिस्तर पर दिख गए। यकायक पहचान ही नहीं पाया। बहुत दुबले हो गए थे।करीब एक घंटे तक हमलोग बैठे रहे। भाभी ने अमरूद काट कर खिलाया। तभी भाई सती जी (वकील साहब) भी पत्नी सहित आ गए। पारिवारिक माहौल में देर तक बातें होती रहीं।
एक महीने के लिए गोरखपुर आने की योजना थी। आए भी और फिर 18 सितम्बर को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल वापस भी गए। यही उनकी अंतिम यात्रा रही। कल 20 सितम्बर की शाम अस्पताल में ही उनका निधन हो गया। शाम करीब सात बजे मैं मेट्रो द्वारा नोएडा से वापस आ रहा था। फेसबुक पर सुधीर की पोस्ट देखी तो कलेजा धक्क हो गया ! सिकन्दरपुर पहुंच कर फोन किया। भाभी का फोन उठा नहीं तो गोरखपुर में शिव बाबू को लगाया। उन्होंने ही इस खबर की पुष्टि की। बताया कि अब तो लोग उन्हें लेकर वापस निकल चुके हैं। दिल्ली में अनुपम से भी बात हुई। उन्होंने भी कन्फर्म किया। मेरा दुर्भाग्य कि यहीं गुड़गांव में रह कर भी अंतिम दर्शन नहीं कर सका।
जैसा मुझे पता था कि 20 को ही उन्हें दुबारा एडमिट होना था।सोचा था कि 21 को वे खाली रहेंगे तभी जाऊंगा। पर ऐसा हो जाएगा , इतनी जल्दी ,मेरे लिए तो ये सर्वथा अकल्पनीय था।
आज जब यती भाई नहीं हैं, उनकी तमाम यादें हैं। कहां से शुरू करूं ? विश्वविद्यालय में तमाम बड़े बड़े नेताओं से परिचय के बावजूद लाइब्रेरी, एडी बिल्डिंग, परीक्षा विभाग , सायकिल स्टैंड, कैंटीन, मनोविज्ञान विभाग-जहां भी कोई काम अटका ,यती भाई साथ खड़े मिले।
गोलघर में बॉबीज़ के उत्तर जहां पहले एक पेट्रोल पंप हुआ करता था वहीँ यती भाई का घर था।वे बाबू अष्टभुजा प्रसाद वर्मा , गोरखपुर के प्रथम विधायक, के सुपुत्र थे। मूलनिवासी ये वर्तमान महराजगंज जिले के खुशहालनगर के थे। परिवार की खेतीबारी अभी भी वहां है। मगर यती भाई का वहां आना जाना कम ही होता था। सामाजिक ज़िम्मेदारियाँ तो जैसे हमेशा ओढ़ कर रखते थे। चित्रगुप्त मंदिर बख्शीपुर , चित्रगुप्त समिति, गोरखपुर से लेकर जिले भर के तमाम सामाजिक शैक्षिक संस्थाओं में अनवरत सक्रियता बनी रही। सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं नेताओं से निकट आत्मीय संबंध बना हुआ था। गोलघर के अपने ही कैम्पस में दुर्गा पूजा के भव्य पांडाल का नियमित रूप से हर वर्ष आयोजन करते थे।
यती भाई से मेरा पहला परिचय गुड्डू (संजय श्रीवास्तव जी) के घर हुआ। गोलघर में आज जहां प्रेसीडेंट होटल है, वहीं हम लोगों का बैडमिंटन कोर्ट था। बगल में होटल मैरीना वाली जगह गुड्डू का एक कमरा था जहां घंटों तक कैरम बोर्ड चलता। चचा फतेह बहादुर, मदन चरन, नवीन शुक्ला, भरत लाल, मामा, दीपू भइया , शरद गौड़, सुशील शर्मा आदि के साथ हम लोगों का एक क्लब बना। नाम था जे जे क्लब -जय जम्बोर क्लब। वहीं यती भाई से मुलाकात हुई । बाद में मेरे अनन्य मित्र राकेश रंजन वर्मा जो बैंक में मेरे बैचमेट थे , के कारण यती भाई से अधिक निकटता हुई।
राकेश जी यती भाई के छोटे चचेरे भाई थे।उनसे भाईचारगी का एक ऐसा रिश्ता बना जिसे आज करीब 43 वर्षों बाद भी जस का तस यादों में संजोये हुए हूँ।
बैंक की नौकरी में आया तो व्यस्तता बढ़ गई। बाहर की पोस्टिंग मिली तो शहर जैसे छूट ही गया। नौकरी के अंतिम चरण में जब गोरखपुर आया तब एक बार फिर मित्रों से पुराने छूटे हुए तार जुड़े। यती भाई की कुटिया में सर्वश्री जितेंद्र राय, श्याम जी त्रिपाठी,दिनेश श्रीवास्तव, शिव कुमार जी, शीतल पांडे, दिनेश शाही,फतेह बहादुर सिंह, वीरेंद्र नायक, विश्वकर्मा द्विवेदी, मुमताज़ खान आदि तमाम लोग मिले। ऊपर अभी कुटिया लिखा मैनें, तो वाकई वह यती भाई की कुटिया ही थी।गोलघर में मोबाइल सिम बिक्री और रिचार्ज का यह सबसे बड़ा सेंटर एक टिनशेड में ही है। दस पन्द्रह लोग कुर्सियों पर बराबर जमे रहते। बतकही और चाय के दौर के बीच सिम का बिजनेस भी पूरी तन्मयता से चलता ही रहता। बहस जोरदार चलती तो सड़क से आते जाते लोग देखने भी लगते। शासन, प्रशासन, राजनीति, खेल किसी भी विषय पर बात शुरू हुई तो वाकई विधानसभा जैसा ही दृश्य होता। इसीलिए इसे ‘ गोलघर की विधानसभा’ भी कहा जाता।
एक बार मुझे मोबाइल में कुछ समस्या आई। मंगलम टावर में फ़्रेंचाइज़ी पर गया। वहां मुझे उल्टासीधा पढ़ा कर वापस कर दिया गया। मैं मुंह लटकाए हुए आकर ‘ अपनी विधानसभा ’ में बैठ गया।थोड़ी देर बाद यती भाई ने पूछा,
” का हो, कऊनों समस्या ?”
मैंने बताया तो वे तुरंत मुझे लेकर मंगलम टावर आ धमके। फ़्रेंचाइज़ी के सभी कर्मियों के हाथ पांव फूल गए। मिनटों में मेरी समस्या निस्तारित हो गई। जाते जाते बोले, “कस्टमर केयर कस्टमरों की सुविधा के लिए है उन्हें कष्ट से मारने के लिए नहीं।”
अभी पिछले साल मेरा सैमसंग का एक महंगा मोबाइल दिल्ली में मेट्रो स्टेशन पर चोरी हो गया। जब लौटा , लगे पूछने – कहां रखे थे, कैसे गायब हुआ , कितने का था? बाद में अपना एक मोबाइल मेरे हाथ में रख कर बोले ,
” इसे जमीन पर गिरा दो।”
मैं हैरान ! बोले,
“अरे मैं कह रहा हूँ न , नीचे गिरा दो इसे !”
मैंने उसे जमीन पर ऊपर से छोड़ दिया।मोबाइल गिरा और ढक्कन अलग, बैटरी अलग,सिम अलग। उन्होंने उसके बिखरे हुए अंजर पंजर बटोरे और सेट करके मोबाइल ऑन किया।एकदम टनाटन चलने लगा।
” देखा, अइसने सस्तऊवा मोबाइल रक्खो। गिर जाए तो टूटेगा नहीं, गायब हो तो कऊनों अफसोस नहीं ।” ग़ज़ब का डिस्प्ले था।
कल रात फेसबुक पर एक पोस्ट उनकी फोटो के साथ डाली थी। तमाम लोग अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हैं। किसी ने लिखा वे वीरेंद्र शाही के PRO थे। बिल्कुल नहीं। शाही भी उनके मित्र ही थे जैसे अन्य मित्र । किसी भी गुट, दल, जाति या वर्ग से ऊपर थे यती भाई। दोस्त थे और दोस्ती निभाते थे।
आज गोरखपुर शोकमग्न है, ‘ गोरखपुर की विधानसभा ’ का अंतिम सत्रावसान हो गया !
मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। वर्मा परिवार और इष्टमित्रों को ईश्वर यह दारुण दुख सहन करने की क्षमता प्रदान करे।