एक्सीडेंट में घायल दलित मजदूर महिला एक महीने से गोरखपुर से लखनऊ तक भटकती रही, नहीं मिला योजना का लाभ, दो लाख खर्च हो गए, जमीन रेहन पर गई, एक अस्पताल ने 20 हजार नहीं देने पर निकाला, दूसरे ने एडमिट ही नहीं किया, दो सरकारी अस्पतालों में भर्ती ही नहीं हो पाई
गोरखपुर. एक महीने पहले शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना (प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना) की सफलता का ढोल अभी से पीटा जाने लगा है लेकिन इसको लेकर जतायी जा रही आशंकाएं सही साबित होने लगी है. सरकारी से लेकर निजी अस्पताल मनमानी कर रहे हैं और शिकायतों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो रही है. इस योजना के लागू होने के ठीक पांच दिन बाद एक्सीडेंट में घायल दलित मजदूर महिला इलाज के लिए चार सरकारी अस्पताल और इस योजना के तहत सूचीबद्ध पांच निजी अस्पतालों में इलाज के लिए गई लेकिन उसे कहीं निश्शुल्क इलाज नसीब नहीं हुआ. लखनउ के दो बड़े सरकारी अस्पताल में उसे एडमिशन ही नहीं मिला तो तीन निजी अस्पतालों ने उसे आयुष्मान योजना का लाभ देने से इंकार कर दिया.
योजना के तहत सूचीबद्ध गोरखपुर के एक अस्पताल ने तो वेंटीलेंटर का 20 हजार रूपया नहीं देने पर गंभीर हालत में रात में ही अस्पताल से बाहर निकाल दिया. अब महिला का इलाज एक प्राइवेट अस्पताल में हो रहा है जो इस योजना के तहत अधिकृत नहीं है. महिला की हालत में सुधार है लेकिन उनके परिवारीजनों को चिंता है कि वे अस्पताल को बिल कैसे चुकाएंगें क्योंकि एक महीने विभिन्न अस्पतालों में इलाज में दो लाख से अधिक खर्च हो चुका है और उसकी 25 डिस्मिल जमीन रेहन पर रखी जा चुकी है.
यह घटना बहुप्रचारित आयुष्मान भारत योजना की विफलता की एक बड़ा उदाहरण तो बन ही रहा है, पूरी चिकित्सा व्यवस्था की विफलता व गरीबों के प्रति क्रूर व्यवहार को भी दर्शा रहा है.
40 वर्षीय विकलांग दलित कृष्ण कुमार गोरखपुर जिले के कैम्पियरगंज के सूरस टोला कलान गांव के रहने वाले हैं. वह खेतिहर मजदूर हैं. उनके पास सिर्फ 25 डिस्मिल खेत है. वह लोगों से अधिया पर जमीन लेकर खेती करते थी और पांच सदस्यीय परिवार की जीविका चलाते थे. घर में पत्नी सुधा 35 और तीन बेटे विकास 17, सत्यम 14 और शिवम 10 हैं. वर्ष 2001 में मजदूरी करते हुए थ्रेसर से उनका दाहिना हाथ कट गया और वे विकलांग हो गए. इसके बाद उनके लिए खेती करना और मजदूरी करना मुश्किल हो गया. घर का सारा बोझ उनकी उनकी पत्नी सुधा पर आ गया. सुधा मजदूरी कर घर को संभाल रही थी.
सुधा का 30 सितम्बर को गोरखपुर के डांगीपार में एक्सीडेंट हो गया. एक्सीडेंट में उन्हें सिर, चेहरे, रीढ़ की हड्डी सहित पूरे शरीर में गंभीर चोटें आईं. नाक की हड्डी टूट गई. उन्हें गोरखपुर के जिला अस्पताल ले जाया गया। वहां से उन्हें बीआरडी मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया। वह वक्त कृष्ण कुमार अपने गांव पर थे। वह जब तक गोरखपुर पहुंचते, उनकी पत्नी को जिला अस्पताल से रेफर किए जाने पर निजी अस्पताल रचित अस्पताल ले जाया गया। कृष्ण कुमार आधार और राशन कार्ड लेकर अस्पताल पहुंचे। तक तक उनकी पत्नी को भर्ती कराया जा चुका था।
कृष्ण कुमार ने आयुष्मान योजना के बारे में सुन रखा था। उन्हें अस्पताल के स्टाफ को आयुष्मान योजना के तहत इलाज करने को कहा। यह अस्पताल योजना के तहत सूचीबद्ध अस्पताल है। अस्पताल ने कहा कि मरीज भर्ती हो गया है,इसलिए इस योजना के तहत उसका इलाज नहीं हो सकता। अस्पताल द्वारा कहा गया कि यदि वह निश्शुल्क इलाज कराना है तो बीआरडी मेडिकल कालेज जे जाए।
कृष्ण कुमार एक अक्टूबर को सुधा को बीआरडी मेडिकल कालेज ले गए। वहां उनसे कहा गया कि यहां कोई न्यूरोलाजिस्ट नहीं है, इसलिए इलाज संभव नहीं है। वह केजीएमयू लखनउ जाए। लखनउ ले जाने के लिए कृष्ण कुमार को एम्बुलेंस भी नहीं मिली। वह सात हजार रूपए में एम्बुलेंस से सुधा को लेकर रात एक बजे केजीएमयू पहुुंचे। वह एक घंटे तक सुधा को भर्ती कराने की कोशिश करते रहे लेकिन सफल नहीं हो पाए। वहां उन्हें बताया गया कि बेड खाली नहीं है। किसी ने सलाह दी कि राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट लेकर जाएं। कृष्ण् कुमार वहां पहुंचे। वहां भी बेड उपलब्ध न होने की बात कही गई। इस बीच सुधा की हालत बिगड़ती गई। सुबह के चार बज गए थे लेकिन सुधा को इलाज नसीब नहीं हो सका था। एम्बुलंेस चालक कहने लगा कि अब वह देर तक नहीं रूक सकता। उसी ने कृष्ण को निराला नगर स्थित इंडिया हास्पिटल ले जाने की सलाह दी। कृष्ण कुमार के पास कोई विकल्प नहीं
था। वह वहां पहुंचे तो सुधा को भर्ती कर लिया गया. उन्हें बताया कि एक्सीडेंट में सुधा को सिर में चोट लगी है जिससे नस दब गई है.
सुधा का यहां आठ दिन तक इलाज चला। इलाज के नाम पर उनसे 87 हजार पांच सौ रूपए नगद जमा कराए गए और 39 हजार दवा के लिए लिए गए। कृष्ण कुमार के पास सभी पैसे खत्म हो गए। उन्होंने रिश्तेदारों-परिचितों से पैसे मंगाए लेकिन वह भी खत्म हो गए। तब उन्होंने अपनी 25 डिस्मिल जमीन के बदले एक व्यक्ति से डेढ़ लाख रूपए यह कह कर लिए कि वह जमीन उसके नाम से बैनाम कर देंगे। सुधा अभी पूरी तरह ठीक भी नहीं हुई थी और 1.36 लाख रूपए खर्च हो चुके थे। अस्पताल का 41 हजार रूपया और भी चढ़ गया था। कृष्ण कुमार ने अस्पताल प्रबंधन से कहा कि उसके पास अब पैसे नहीं है। उसे मरीज को घर ले जाने दिया जाय। बकाया बिल वह बाद में चुका देगा। बहुत मिन्नत के बाद किसी तरह अस्पताल प्रबंधन माना और वह 10 अक्टूबर को घर आए। वह गोरखपुर स्थित अपने ससुराल में पत्नी को रखकर देखभाल करने लगे।
इसी बीच सुधा को खांसी और सांस लेने में दिक्कत होने लगी। यह समस्या बढ़ने लगी तो कृष्ण कुमार अपने भांजे राम सजीवन के साथ 27 अक्टूबर को बरगदवां क्षेत्र में स्थित गोरखपुर हास्पिटल गए और चिकत्सक को सुधा के इलाज के कागजात दिखाए। उन्हें आयुष्मान भारत योजना का लाभार्थी होने का हवाला देते हुए मरीज को भर्ती करने और इलाज करने का अनुरोध किया। अगले दिन यानि 28 अक्टूबर को गोरखपुर हास्पिटल ने एम्बुलेंस भेजकर सुधा बुलाया और भर्ती कर लिया.
दोपहर को कृष्ण कुमार को बताया कि सुधा के इलाज में 3700 रूपया खर्च हुआ है और इसका पेमेंट आयुष्मान योजना के तहत हो गया है। शाम छह बजे अस्पताल के स्टाफ ने कृष्ण कुमार से कहा कि सुधा की स्थिति गंभीर है और उसे वेंटीलेंटर पर रखा जाना जरूरी है. इसके लिए वह 20 हजार रूपए जमा कर दे. स्टाफ ने यह भी कहा कि वेंटीलेंटर का खर्च आयुष्मान योजना में शामिल नहीं है. इसके साथ ही अस्पताल स्टाफ ने कृष्ण कुमार से दो पेपर पर हस्ताक्षकर कराए। एक पेपर में यह लिखा था कि वह मरीज को डिस्चार्ज करा रहा है। दूसरे पेपर में मरीज को वेंटीलेटर पर भर्ती किए जाने का हवाला दिया गया था औरा कहा गया था कि मरीज को कुछ होने पर जिम्मेदारी अस्पताल को नहीं होगी। कृष्ण कुमार को अस्पताल प्रशासन पर भरोसा हो गया और उसने दस्तखत कर दिए लेकिन उसके भांजे राजसजीवन को अस्पताल स्टाफ की इस हरकत पर संदेह हुआ। उसने आयुष्मान भारत योजना के हेल्पलाइन नम्बर 14555 पर फोन किया और पूरी बात बताते हुए सहायता मांगी. हेल्प लाइन द्वारा बताया गया कि आयुष्मान योजना में वेंटीलेंटर की सुविधा के लिए अलग से धन नहीं मांगा जा सकता. हेल्प लाइन द्वारा इस सम्बंध में गोरखपुर हास्पिटल के प्रबंधक को ईमेल से अवगत भी करा दिया गया.
हेल्पलाइन से ईमेल आने के बाद अस्पताल प्रबंधन नाराज हो गया और उसने रात नौ बजे सुधा को वेंटीलेंटर से हटाकर डिस्चार्ज कर दिया. उस वक्त सुधा की हालत बहुध खराब थी और वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी. अस्पताल की ओर उसे अम्बू बैग दिया गया और परिजनों से कहा गया कि वे इसी की जरिए सुधा को आक्सीजन दे. अस्पताल ने एम्बुलेंस मंगाकर उसमें सुधा को लिटा दिया और परिवारीजनों के विरोध के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने सुधा को अस्पताल से बाहर कर दिया.
परेशान परिजन सुधा को लेकर गोरखनाथ क्षेत्र के ही एक और निजी अस्पताल ‘ आनंदलोक ’ में ले गए. यह अस्पताल भी आयुष्मान योजना के तहत अधिकृत है। यहां पर 500 रूपए की पर्ची बनाई गई और कृष्ण कुमार से 20 हजार रूपया जमा करने को कहा गया। कृष्ण कुमार ने आयुष्मान भारत योजना का लाभार्थी बताया तो अस्पताल ने इलाज से इंकार कर दिया। कृष्ण कुमार ने 15 हजार रूपए जमा करने को कहा लेकिन अस्पताल स्टाफ 20 हजार से कम जमा करने पर राजी नहीं हुआ। तब कृष्ण एम्बुलेंस से सुधा को बीआरडी मेडिकल कालेल ले जाने लगे लेकिन रास्ते में ही एम्बुलेंस चालक ने कहा कि वहां वेंटीलेटर नहीं मिल पाएगा। उसने राप्तीनगर के एक निजी अस्पताल में ले लाने की सलाह दी।
उधर सुधा की हालत बिगड़ती जा रही थी. परिजनों ने उसी रात उसे राप्ती नगर क्षेत्र में स्थित एक अन्य प्राइवेट अस्पताल राणा नर्सिंग होम में भर्ती कर दिया. वह मरीज को वेंटीलेंटर पर रखकर इलाज शुरू हुआ. सक्शन कर सुधा के कफ, बलगम निकाला गया. उसे खून भी चढ़ाया गया. अब उसकी हालत में सुधार है. यहां भी अब तक इलाज में 42 हजार खर्च हो चुका है। कृष्ण 36 हजार रूपया दे चुके हैं लेकिन अब उनके पास एक पैसे भी नहीं हैं।
‘अब मेरे पास पैसे नहीं है, परिवार सहित आत्महत्या कर लूँगा ’
कृष्ण कुमार ने रोते हुए गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि उसने सीएमओ, डीएम, मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है। आयुष्मान योजना में गोरखपुर में 30 से अधिक निजी अस्पताल सूचीबद्ध हैं। कई बड़े सरकारी अस्पताल है। क्या कोई अस्पताल उसकी पत्नी का इलाज नहीं कर सकता ? ऐसे मे इस योजना का क्या मतलब ? पांच लाख का बीमा कवर होने के बावजूद उसका दो लाख से अधिक खर्च हो गया। एक लाख रूपए की अभी भी देनदारी है। जमीन भी हाथ से जाती रही। पत्नी की जान अभी भी खतरे में है। एक्सीडेंट के बाद से ठीक से इलाज नहीं होने से उसकी पत्नी का एक हाथ और पैर काम नहीं कर पा रहा है। अंगुलिया हिल नहीं रही हैं। यदि पत्नी ठीक नहीं हुई तो उसका पूरा परिवार भुखमरी का शिकार हो जाएगा क्योंकि उसके विकलांग होने के बाद पूरा घर वहीं संभाल रही थीं। वह कड़ा परिश्रम करती थीं। अब अस्पताल उससे पैसा मांगेगा तो वह नहीं दे पाएंगे और पत्नी को लेकर घर चले जाएंगे। पत्नी की जान गई तो वह बच्चों सहित आत्महत्या कर लेंगे।
जांच जारी लेकिन कृष्ण को कोई राहत नहीं
इस घटना की शिकायत कृष्ण कुमार और रामसजीवन ने सोमवार को सीएमओ से की। सीएमओ ने एडीशनल सीएमओ एनके पांडेय को इसकी जांच सौंपी. श्री पांडेय ने राणा हास्पिटल जाकर सुधा को देखा और उनके परिजनों का बयान दर्ज किया. वह गोरखपुर हॉस्पिटल भी गए और बयान दर्ज किया. अस्पताल के संचालक के बाहर रहने के कारण उनका बयान दर्ज नहीं हो पाया है. अस्पताल प्रबंधन कहना है कि सुधा की हालत गंभीर होने पर रेफर किया गया था। मरीज के परिजनों से पैसे नहीं मांगे गए थे।
रामसजीवन ने गोरखपुर न्यूज लाइन को बताया कि घटना के चार दिन बाद भी उन्हें जांच के निष्कर्ष का नहीं पता. हमारी चिंता यह है कि सुधा के इलाज के खर्च का कैसे इंतजाम करें. अधिकारियों की ओर से काई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला है. इस अस्पताल का बिल अब तक 40 हजार हो चुका है. कृष्ण कुमार के पास अब कुछ बचा नहीं है. हम चाहते हैं कि आयुष्मान योजना में अधिकृत होने के बावजूद सुधा का इलाज नहीं करने, स्थिति गंभीर होने के बावजूद उसे अस्पताल से बाहर कर देने और एक दूसरे अस्पताल द्वारा उसे भर्ती नहीं किए जाने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही हो, उसे इलाज में हुए खर्च की भरपाई की जाए और ऐसी व्यवस्था की जाए कि किसी और गरीब को यह सब न भुगतना पड़े.
गोरखपुर जिले में तीन दर्जन निजी अस्पताल आयुष्मान भारत योजना में सूचीबद्ध हैं
गोरखपुर जिले में तीन दर्जन निजी अस्पताल इस योजना के तहत सूचीबद्ध हैं. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना लिस्ट में सम्मिलित परिवार के सदस्य किसी भी सूचिबद्ध अस्पताल में प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का इलाज करा सकते हैं. नवीनतम सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (एसईसीसी) के हिसाब से गांवों के ऐसे 8.03 करोड़ और शहरों के 2.33 परिवारों को शामिल किया गया है. सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत प्रत्येक परिवार को सालाना पांच लाख रुपये की कवरेज देने की व्यवस्था है.
रेडक्रास सोसइटी फंड से इजाज में हुए खर्च की भरपाई करने के बारे में कर रहे हैं विचार : सीएमओ
इस सम्बन्ध में सीएमओ डा. श्रीकांत तिवारी ने गोरखपुर न्यूज लाइन से कहा कि गोरखपुर हास्पिटल के संचालक अपनी पत्नी के इलाज के सिलसिले में बाहर हैं. इसलिए जांच टीम उनका बयान दर्ज नहीं कर सकी है. आज वह वापस आ रहे हैं तो जांच टीम उनका बयान लेगी. इस अस्पताल पर मुख्यतः दो आरोप है कि उसने इलाल के लिए 20 हजार रूपए मांगे और दूसरा कि उसने मरीज को अस्पताल से बाहर निकाल दिया. इन दोनों विंदुओं पर जांच पूरी होने के बाद कार्रवाई की जाएगी. यह पूछे जाने पर कि मरीज के इलाज में खर्च हुए धन की क्या भरपाई की जाएगी, उन्होंने कहा कि अभी जिस अस्पताल में सुधा का इलाज हो रहा है वह आयुष्मान भारत योजना के तहत सूचीबद्ध नहीं है. वह के इलाज के खर्च योजना के तहत नहीं हो पाएगा. हम रेडक्रास सोसइटी फंड से इजाज में हुए खर्च की भरपाई के बारे में सोच रहे हैं। स्वास्थ्य अधिकारी कृष्ण कुमार के सम्पर्क में हैं। हम सुधा के इलाज पर निगाह रखे हुए हैं.