देवरिया के बनकटा ब्लाक और गोपालगंज के भोरे व कटया ब्लाक के 150 से अधिक गांवों के लिए जीवन रेखा है यह नदी
देवरिया. यूपी के देवरिया और बिहार के गोपालगंज जिले के 150 से अधिक गांवों के लाखों लोगों की जीवनरेखा स्याही नदी सूख गई है। एक दशक से इस नदी में पानी नहीं है। इस कारण इसके तट पर बसे गांवों के लोगों को सिंचाई, पीने के पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। एक दशक से अधिक समय से नदी के जलविहीन होने से इस इलाके में भूमिगत जल स्तर नीचे चला गया है और लोगों को हैण्डपम्प और ट्यूबवेल को बहुत गहरे तक बोर कराना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों ने नदी की हालत के बारे में प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष धरना-प्रदर्शन कर कई बार ज्ञापन दिया लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई करना तो दूर इस समस्या के विषय में लोगों से बातचीत तक शुरू नहीं की है.
स्याही नदी को पुनजीर्वित करने के लिए लम्बे अर्से से संघर्ष कर रहे भाकपा माले नेता छोटेलाल कुशवाहा ने छह जनवरी को इस मुद्दे पर देवरिया जिले के बंगरा बाजार के समीप पड़री बाजार के एमजी पब्लिक स्कूल के प्रांगण में ‘ स्याही नदी बचाओ, जीवन- बचाओ महापंचायत ’ का आयोजन किया जिसमें सैकड़ों लोग जुटे। इस पंचायत में नदियों, जलाशयों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो राधे मोहन मिश्र, पत्रकार एवं जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डा. चतुरानन ओझा भी शामिल हुए और स्याही नदी को बचाने की लड़ाई में ग्रामीणों के साथ एकजुटता का विश्वास दिलाया.
स्याही नदी बिहार के गोपालगंज भोरे व कटया और सीवान जिले के मैरवा के अलावा देवरिया जिले के बनकटा क्षेत्र में बहती है. यह नदी, झरही नदी से जुड़ी है और झरही नदी, गंडक नदी से जुड़ी हुई है. स्याही नदी बिहार के भोरे ब्लाक के भोपतपुरा के पास झरही नदी से निकलती है और वहां से बनकटा ब्लाक के खेमीपुर गांव में प्रवेश करती है. यहाँ से स्याही बनकटा ब्लाक के गावों से गुजरती हुई जगदीश बनकटा गांव से आगे बिहार के मैरवां के नौका टोला पहुँचती है और फिर आगे बढ़ते हुए क्षेत्र के गांवों से गुजरते हुए बिहार के सीवान जिले के मैरवा रेलवे स्टेशन के पास पुनः झरही नदी से मिल जाती है. झरही नदी आगे जाकर रघुनाथ -दरौली मार्ग की क्रास करते हुए तियर मोड़ के पास घाघरा में मिलती है और घाघरा रेवल्गंज में गंगा नदी से मिल जाती है.
स्याही नदी के दोनों किनारों पर बिहार के भोरे ब्लाक का भोपतपुरा, नोनिया छापर, बगंहवा मिश्र, कुकुरभूंका, लक्ष्मीपुर, लामीपुर पश्चिम टोला, पंडितपुरा, खरगवां, बरौना, खरपकवा, रणवरिया, पिपरचाफा, बांधवा, घानाछापर, तिवारी चकिया, मूड़ाडीह, संसार बंशरिया, इमिलिया, बाराचाप, खास बनकटा, जगदारी बनकटा, मचबनकटा, घोरठ, नरेन्द्र डूमर, तिलकडूमर, सुल्तानपुर आदि गांव स्थित हैं.
इसी तरह यूपी के देवरिया जिले के बनकटा ब्लाक का कटहरिया, चकिया कोठी, करजनिया, खेमीपुर, भेड़वा, ब्रह्मपटृटी, सिसवनियां, नवादा, गुलहां, कड़सरवा बुजुर्ग, पड़रीबाजार, बड़हरिया, परसियां छितनी सिंह, नियरवा, बतरौली, सिकटिया, गजहड़वा, रससिया कोठी, सुन्दरपार, इन्द्ररवा, बनकटा, चित्रसेन,बनकटा जगदीश, चफवा कलां, नहरछपरा, दलन छपरा, ग्वाल, बेनीचक, खेमछपरा आदि गांव इस नदी के किनारे बसे हैं.
स्याही नदी बिहार के भोरे , कटया और देवरिया जिले के बनकटा ब्लाक के 150 से अधिक गांवों की लाइफ लाइन रही है. एक दशक से पहले इसमें भरपूर पानी हुआ करता था. इसमें मछलियों की भरमार थी. इस नदी का क्षेत्र गेहूं, चावल, गन्ना के अलावा हल्दी, मसाले व सब्जियों की खेती के लिए भी मशहूर है. बंगरा क्षेत्र में हल्दी की खेती बहुतायत में होती है.
छोटेलाल कुशवाहा ने बताया कि इस नदी में इतना पानी हुआ करता था कि वह फागुन के महीने में एक बार नदी पार करते समय डूबते-डूबते बचे थे लेकिन आज नदी एकदम से सूख गई है. बनकटा ब्लाक क्षेत्र में नदी में कहीं भी पानी नहीं है. यह हालात एक दशक से है। नदी के सूख जाने से लोगों को खेतों को सींचने के लिए पानी नहीं मिल रहा है. भूमिगत जल काफी नीचे चला गया है. पहले 15-20 फीट गहरे बोर करने पर हैंडपम्प से आसानी से पीने का पानी मिल जाता था अब 40 से 50 फीट नीचे बोर करना पड़ रहा है. इसके बावजूद गमिैयों में हैण्डपम्प भी सूख जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि किसान सिंचाई के लिए पहले से 30 फीट तक बोरिंग करने पर पानी पा जाते थे लेकिन अब 80 फीट नीचे तक बोरिंग करना पड़ रहा है. श्री कुशवाहा के अनुसार सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलने पर कई किसानों ने खेती छोड़ दी है. नदी के सूखने से सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों और मछली पकड़ने वाले मछुआरों पर पड़ा है.
बिहार के भोरे ब्लाक के निवासी भाकपा माले नेता सुभाष पटेल ने बताया कि इसी तरह का हाल भोरे ब्लाक क्षेत्र में नदी का है।. वहां भी नदी में पानी नहीं रहता है चाहे वह मई-जून का महीना हो या जुलाई -अगस्त का. उन्होंने बताया कि झरही नदी की हालत भी इसी तरह होती जा रही है. उसमें भी कई स्थानों पर पानी नहीं रहता है. इस नदी में बड़ी नहर का पानी भी कुछ स्थानों पर आता है. इसलिए झरही नदी में कुछ समय तक पानी रहता है अन्यथा यह भी सूखी रहती है.
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि कुछ स्थानों पर प्रभावशाली लोगों ने स्याही नदी के बहाव मार्ग को अवरूद्ध कर दिया है. कई स्थानों पर नदी के बहाव मार्ग पर कब्जा कर खेती की जा रही है तो कुछ स्थानों पर निर्माण भी कराया गया है. नदी के सूख जाने से उसके बहाव मार्ग व वेट लैंड पर कब्जा करने की प्रक्रिया तेज हुई है.
माले के जिला सचिव श्रीराम कुशवाहा ने कहा कि उन्होंने जब तरैनी गांव में महिलाओं को पीने के पानी के लिए कतार में खड़ा देखा तो हैरत में पड़ गए कि इस इलाके में पानी का संकट कैसे हो सकता है ? लोगों ने बताया कि स्याही नदी के सूखने और झरही नदी में पानी कम होते जाने से यह स्थिति पैदा हुई है.
ग्रामीणों ने स्याही नदी के बारे में प्रशासन को कई बार अवगत कराया. छह अगस्त 2018 को 250 से अधिक ग्रामीणों ने भाटपारानी तहसील में धरना-प्रदर्शन कर लिखित ज्ञापन उपलिाधिकारी को सौंपा था. इस ज्ञापन में कहा गया है कि 15 वर्षों से स्याही नदी का प्रवाह अवरूद्ध है जिससे तटवर्ती गांवों के किसान परेशान हैं. भूजल काफी नीचे चला गया है जिसके कारण किसानों के बोरिंग काम नहीं कर रहे हैं. चापाकल भी काम नहीं कर रहे हैं जिससे पानी का संकट खड़ा हो गया है. ज्ञापन में अधिकारियों से गांवों का दौरा कर सिंचाई व पीने के पानी के संकट का सामना कर रहे ग्रामीणों को राहत देने के लिए कदम उठाने और स्याही नदी को अविरल बनाने की मांग की गई थी.
इस ज्ञापन को दिए पांच महीने हो गए लेकिन प्रशासन ने इस बड़ी समस्या के हल के लिए कोई कदम नहीं उठाया है.
‘ स्याही नदी बचाओ, जीवन- बचाओ महापंचायत ’ में मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो राधे मोहन मिश्र ने ग्रामीणों द्वारा स्याही नदी को बचाने के लिए किए जा रहे संघर्ष की प्रशंसा की और कहा कि वह नदी की स्थिति के बारे में नेशनल ग्रीन टिब्यूनल के आदेश पर गठित मानीटरिंग कमेटी को प्रतिवेदन देंगे.
उन्होंने कहा कि हम किसी भी कीमत पर स्याही नदी के अस्तित्व को मिटने नहीं देंगे. यह नदी बिहार तथा उत्तर प्रदेश के लाखों लोगों के लिए वरदान है. इसके सूख जाने के चलते नदी के तटवर्ती गांवों में जल संकट गहरा गया है. इस नदी में पानी की उपलब्धता बनाये रखने के लिए हो रहे संघर्ष में मेरा सहयोग रहेगा. उन्होंने कहा कि पर्यावरण तथा जल संरक्षण के लिए नदियों का जीवित रहना आवश्यक है।
जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि नदियां हमारी संस्कृति तथा सभ्यता की पहचान है। स्याही नदी का सूखना चिंता का विषय है. नदी के सूखने के कारणों की तलाश कर इसे पुनर्जीवित करने के लिए आंदोलन को तेज किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकारें में गंगा को साफ और अविरल बनाने के नाम पर हजारों करोड़ खर्च कर रही है जिसका कोई फायदा आज तक दिख नहीं सका है. गंगा को साफ और अविरल बनाने के लिए जरूरी है कि गंगा बेसिन की नदियों को अविरल बनाया जाए. इसलिए स्याही नदी को बचाने की लड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है.
जनवादी लोकमंच के जिला प्रतिनिधि डॉ चतुरानन ओझा ने कहा कि स्याही नदी के प्रकरण पर प्रदेश सरकार को तत्काल कार्रवाई करना चाहिए. भाकपा माले राज्य कमिटी के सदस्य रामकिशोर वर्मा ने कहा कि स्याही नदी के तटवर्ती सैकड़ो गांवों में हैंडपंप तथा बोरिंग सूख गये है, जिससे पेयजल तथा सिंचाई का संकट पैदा हो गया है. शासन-प्रशासन और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि उदासीन बने हुए हैं. इस गंभीर समस्या को लेकर आंदोलन तेज किया जायेगा.
कवि मकसूद अहमद भोपतपुरी ने अपनी रचना ‘ सबको हंसती मुस्कुराती जिंदगानी चाहिएए हमको स्याही नदी में पानी चाहिए ’ प्रस्तुत कर अपनी बात रखी. महापंचायत को मुख्य रूप से भाकपा माले जिला सचिव कामरेड श्रीराम कुशवाहा, छोटेलाल कुशवाहा, सुबाष पटेल, अरुण कटारिया, डॉ रामनारायण सिंह, पूनम यादव, ,रामायण सिंह, प्रभुनाथ पासवान, विजय प्रताप सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता जाकिर हुसैन, दयानंद कुशवाहा, मनोज कुशवाहा, रामजन्म कुशवाहा आदि लोगों ने संबोधित किया. अध्यक्षता लालजी सिंह ने और संचालन मकसूद अहमद भोपतपुरी ने किया. इस मौके पर मोनू मिश्र, नन्द जी कुशवाहा, अरविन्द पटेल, हेमंत सिंह, डॉ सुल्तान, आस मुहम्मद, शिवनारायण कुशवाहा, रामायण यादव, राधाकृष्ण, रामप्रसाद कुशवाहा, भास्कर द्विवेदी, अर्जुन शर्मा, राजेंद्र भगत,शिवनाथ आदि मौजूद रहे.