जनपद

सूफी संत के नाम पर बसा है शाह मारूफ मोहल्ला, 26 जनवरी को है उर्स-ए-पाक

गोरखपुर। शाहमारूफ को शहर के पुराने मोहल्ले में शुमार किया जाता है। इसकी शोहरत एक बाजार के रूप में ज्यादा है। रमजान माह के आखिरी दस दिनों में यहां लगने वाला ईद का बाजार इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है। उस इस समय इसे लोग शहर का अमीनाबाद कहते हैं।

यहां ईद-उल-अजहा पर्व के दौरान कुर्बानी के जानवरों का बाजार भी सजता है। इस बाजार में जरुरत की तमाम चीजें थोक व फूटकर दामों में बिकती हैं। यहां की तंग गलियां भी अपने हुस्न में कमाल की हैं। कई मशहूर इलाके में यहां से गुजर कर ही पहुंचा जा सकता है। यहां कई तारीखी मजारें और मस्जिदें हैं। यहां मुसाफिरों के ठहरने के लिए अलहेरा मुस्लिम मुसाफिर खाना भी है।

जहां तक इस मोहल्ले के नाम का ताल्लुक है तो वह एक सूफी संत हजरत सैयद शाह मारूफ अलैहिर्रहमां के नाम पर पड़ा। सूफी वहीदुल हसन की किताब ‘मसायख-ए-गोरखपुर’ के पेज नं. 33, 34 व 35 पर हजरत सैयद शाह मारूफ अलैहिर्रहमां का जिक्र है। वह लिखते हैं कि इस शहर के मशहूर रईसों में रईस बुजुर्ग हजरत सैयद शाह मारूफ अलैहिर्रहमां भी गुजरे हैं। इनका खानदान अरब से आया था।

इनके पिता हजरत सैयद शाह अब्दुर्रहमान मुगल बादशाह मुअज्जम शाह के शासनकाल में गोरखपुर तशरीफ लाए और यहीं बस गए। आज तक आपकी औलादों का सिलसिला जारी है। आपकी 33वीं पीढ़ी चल रही है। मोहल्ले का नाम उनकी शख्सियत की वजह से मशहूर है। उनकी कई चीजें आज भी आपके खानदान में खिरका, रुमाल, पगड़ी, जुब्बा वगैरह के रुप में मौजूद हैं।

उनका  मजार मोहल्ला शाहमारूफ में है। हर साल उर्स-ए-पाक भी होता है। आपका उर्स-ए-पाक आने वाली 26 जनवरी को मनाया जायेगा। आपके खानदान की एक शाख मोहल्ला अलीनगर में भी आबाद है। हजरत सैयद शाह मारूफ के खानदान के बारे में मियां साहब सैयद अहमद अली शाह ने अपनी किताब ‘महबूबुत तवारीख’ में लिखा है।

सूफी संत हजरत सैयद शाह मारूफ के खानदान के एडवोकेट नजमुल हक मारूफी बताते हैं कि हजरत सैयद शाह मारूफ बहुत मशहूर शख्सियत थे। जब आपका इंतकाल हो गया तो उर्स-ए-पाक के दौरान मेला लगता था। धीरे-धीरे उस मेले ने स्थायी बाजार का रूप ले लिया। सैकड़ों सालों से यह मोहल्ला व बाजार आबाद है।

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