नेपाल में यूं तो घूमने के लिए बहुत सी खूबसूरत जगहें हैं जहां देशी-विदेशी पर्यटक बड़ी तादाद में घूमने के लिए आते हैं. नेपाल का प्राकृतिक सौंदर्य यहां आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है. ऐसी ही एक जगह है अर्घाखाँची.
इस पहाड़ी ज़िले में घूमने फिरने की कई जगहों में एक है सूपा देउराली मंदिर. यह पूरा क्षेत्र ही खूबसूरत पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है. हरियाली से सजे पहाड़ , नीला आसमान और ठंडी हवाएं यहाँ आने वालों को तरो ताज़ा कर देती हैं.
लुम्बिनी अंचल का अर्घार्खाँची जिला अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा धार्मिक महत्व और आस्था के केंद्र सूपा देउराली मंदिर की वजह से भी खास महत्व रखता है.
इस जिले के पूर्व में पाल्पा, पश्चिम में प्यूठान और दांग, दक्षिण में रूपनदेही, कपिलवस्तु, उत्तर में गुल्मी ज़िला स्थित है. यूपी के जिला सिद्धार्थनगर के बढ़नी बॉर्डर से करीब सौ किमी की दूरी पर संधिखर्क -गोरीसिंघे राजमार्ग पर स्थित धार्मिक महत्व का यह मंदिर करीब 4500 फिट की ऊंचाई पर है. महाभारत पर्वत श्रृंखला के ऊंचे ऊंचे पर्वतों के मध्य स्थित यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य शैली का शानदार नमूना है.
सूपा देउराली चूंकि पर्यटकीय और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, इस वजह से यहां पर्यटकों की ज़्यादा भीड़ रहती है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि उनकी मनोकामना यहां आने पर पूरी होती है. नव विवाहित जोड़े अपने सफल वैवाहिक जीवन हेतु दर्शन के लिए आते हैं.
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 2040 में शाहवंशीय हरि के शासन काल में हुई थी. इस शक्तिपीठ की स्थापना को लेकर तरह तरह की किंवदंतियां हैं जिसमें एक का सम्बंध भारत से भी है हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है. यह सिर्फ जनश्रुतियों और चर्चाओं पर ही आधारित है.
नेपाल जब 24 राज्यों में बंटा था उसी में एक राज्य था खांचीकोट. कहा जाता है कि इस राज्य की राजकुमारी का विवाह यूपी के बलरामपुर में हुआ था. विवाह के बाद वापस आते वक़्त रास्ते में दुल्हन को यह बात सुनाई पड़ी कि उसका विवाह झूठ बोलकर धोखे से हुआ है. वर्तमान में स्थित मंदिर से करीब 50 मीटर की दूरी पर दुल्हन के शरीर से लहू टपकने लगा. सूपा देउराली आने पर डोली में दुल्हन को मृत पाया गया. उसके बाद राज्य में विभिन्न प्रकार की बीमारी फैल गयी. बाद में एक ब्राह्मण ने यहां पर आकर पूजा-पाठ की . इस दौरान यहां एक दैवीय शक्ति उत्पन्न हुई और काले बकरे के बच्चे की बलि के बाद पूजा अर्चना की शुरुआत हुई.
यह परंपरा अभी भी कायम है. इस मंदिर में वैसे तो प्रति दिन ही लोगों का तांता लगा रहता है लेकिन एकादशी, कृष्णा जन्माष्टमी ,रामनवमी,ऋषि पंचमी, शिव रात्रि ,श्री पंचमी आदि पर्वों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती आदि जिलों के से लोग यहां दर्शनार्थ आते हैं. नेपाल के बुटवल, पाल्पा, दांग, प्यूठान, सल्यान, कपिलवस्तु ,भैरहवाँ,आदि जिलों से लोग दर्शनार्थ के अलावा छात्र शैक्षणिक भ्रमण के लिए भी आते हैं.
एक अनुमान में मुताबिक धार्मिक पर्वों के मौके पर करीब पचास हज़ार से भी ज़्यादा श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर परिसर में नव दुर्गा, महाकाली , महालक्ष्मी, शिव जी,गणेश आदि की मूर्ति स्थापना की गई है.
कृष्णा नगर से गोरूसिंघे करीब 45 किमी है यह मैदानी इलाका है. यहां तक का सफर तो बहुत ही आराम दायक है. गोरूसिंघे -संधि खर्क राजमार्ग पर सूपा देउराली 47 किमी की यात्रा चढ़ाई की तरफ बढ़ती है. गोरूसिंघे से भी सवारी साधन उपलब्ध है. चूंकि हम लोग अपने निजी साधन से थे और हमारे ड्राइवर अकील कई बार इस रास्ते पर यात्राएं कर चुके हैं, इस वजह से कोई खास परेशानी नहीं हुई. रास्ता जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है. अगर आप अपने निजी साधन से इस रूट पर यात्र करना चाहते हैं तो आपका ड्राइवर एक्सपर्ट होना चाहिए जिसे पहाड़ों पर गाड़ी चलाने का विशेष अनुभव हो.
सुबह के वक्त निकले हम सब करीब 12 बजे दोपहर सूपा देउराली पहुंच गए . ठंडी हवाएं सिहरन पैदा कर रही थीं. मंदिर के चारों और का नज़ारा बहुत खूबसूरत और रोमांच पैदा करने वाला था. नव विवाहित जोड़े दिखे जो आशीर्वाद के लिए आये थे. मंदिर के सामने श्रद्धालू फ़ोटो खिंचवाते भी दिखे. आस-पास पूजा सामग्री की दुकाने हैं, फ़ोटो स्टूडियो है और कुछ होटल भी. यहां करीब एक घंटे गुज़ारने के बाद यहां से करीब सात किमी दूर हम सब जा पहुंचे नर पानी . नरपानी और सूपा देउराली के बीच का लोकेशन भी बहुत शानदार है. यहां थोड़ी देर गाड़ी रोक कर फोटोग्राफी की.
नरपानी में थोड़ा स्पेस है. आसपास होटल है. चारों तरफ पहाड़ों का खूबसूरत नजारा तो है ही, देवदार वृक्ष के खुबसूरत जंगल भी है. श्रदालुओं के लिए विश्रामालय ,शौचालय,और प्रतीक्षालय भी बनाये गए हैं. पास ही में श्रदालुओं की एक टुकड़ी भोजन बनाने में व्यस्त है. यहां हम सब लोग घर से बनाकर ले गए भोजन करते हैं और एक होटल में चाय पीते हैं. अब जब ऐसे खूबसूरत नज़ारें हों तो भला सेल्फी ,फ़ोटो सोटो से कैसे बचा जासकता है. जम कर मस्ती होती है. करीब दो घंटे से ज़्यादा समय बिताने के बाद हम वापस लौटते हैं. फिर एक बार सूपा देउराली आते हैं. अब करीब शाम के चार बजे हैं और श्रद्धालुओं की तादाद कम होगयी है. परिवार के लोग और बच्चे छोटी मोटी खरीदारी करते हैं और मैं वहां मौजूद लोगों से जानकारी इकट्ठा करने और वीडियो बनाने में मसरूफ हो जाता हूँ.
कुछ ही देर बाद यहां से हम सब वापस लौटते हैं. अब उत्साह ठंडा पड़ चुका है.शरीर निढाल और थका हुआ. सफर में महिलायें और बच्चे हों और रास्ता इतना ” ज़िग ज़ैग “तो जाहिर सी बात है चक्कर आना सर भारी होना,उल्टी होना सामान्य सी बात होगी. एक जगह रुक कर हम सब फ्रेश होते हैं और चाय की चिस्की थकान को कुछ कम करदेती है.
यहां मुलाक़ात होती है थानेश्वर बेलवासे जी से जो समीक्षा कॉटेज एंड रेस्टुरेंट के मालिक हैं. इस जगह का नाम गोरथुम है. इनका होटल अभी नया-नया है. चहल पहल बिल्कुल नहीं है. बेलवासे जी बताते हैं यहां के लोग कृषि पर निर्भर हैं . कुछ लोग जीविकोपार्जन के लिए भारत भी जाते है. वो खुद भारत में कुछ वर्षों तक रह चुके हैं.
यहां से फ्रेश होने के बाद देर शाम कृष्ण नगर पहुंच जाते हैं. अगर आप भारत के सीमाई ज़िले से नेपाल की प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के स्थान का भ्रमण करने की सोच रहे हैं तो महज एक दिन में सूपा देउराली मंदिर का दर्शन और भ्रमण आप के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है. नेपाल के कृष्णनागर-बढ़नी से सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है.