गोरखपुर। हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां अलैहिर्रहमां जनसामान्य में बाले मियां के नाम से जाने जाते है। बाले मियां का प्रसिद्ध मेला बहरामपुर स्थित आस्ताने पर 26 मई से शुरु हो जाएगा जो एक माह तक चलेगा। पूर्वांचल की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल माने जाने वाले इस मेले में भारी तादाद में हिन्दू-मुस्लिम अकीदतमंदों की सहभागिता रहती है।
लगन की रस्म रविवार को अकीदत के साथ पूरी की गयी। सुबह से ही आस्ताने पर अकीदतमंदों का तांता लगा रहा। फज्र की नमाज के बाद गुस्ल शरीफ की रस्म व कुरआन ख्वानी हुई। दोपहर के वक्त अकीदममंदो के द्वारा लगन की रस्म अदा की गयी। अकीदतमंद नरकटिया, नकहा, बसंतपुर सहित विभिन्न मोहल्लों से जुलूस की शक्ल में चादर के साथ आस्ताने पर पहुंचे। चादर व गागर आस्ताने पर पेश किया गया। लोगों ने बाले मियां के वसीले से अल्लाह से दुआ मांगी। हर साल लगन की रस्म पलंग पीढ़ी के रूप में मनायी जाती है। बहरामपुर में हर साल जेठ के महीने में मेला लगता है। जहां पर आस-पास के क्षेत्रों के अलावा दूर दराज से भारी संख्या में अकीदतमंद आते है। मेला 26 जून तक चलेगा।
लगन के बारे में एक वाकया
सैकड़ों साल पहले गाजी मियां की शोहरत दूर-दूर तक पहुंची तो उस जमाने में रूधौली जिला बाराबंकी की रहने वाली बीबी साहिबा जोहरा जो पैदाइशी अंधी थीं। आप की उम्र बारह साल की थी। एक दिन आपके वालिद सैयद जमालुद्दीन ने घर में गाजी मियां की करामातों का जिक्र किया। बोले जो हाजतमंद बहराइच जाता है अल्लाह के फज्ल से गाजी मियां के वसीले से दिली मुराद पा जाता है। उन्होंने दुआ की ऐ वली को शहीद को दर्जा अता करने वाले अल्लाह, गाजी मियां के तुफैल मेरी लड़की को आंख वाला कर दे तो मैं गाजी मियां के मजार शरीफ पर हाजिरी दूंगा।
इधर जोहरा बीबी ने भी अहद किया कि अगर मेरे आंख रौशन हो जायेगी। तो मजार शरीफ पर हाजिरी दूंगी। आप मोहब्बत-ए-गाजी मियां में ऐसी गुम हुई की दिन रात गाजी मियां का नाम आपकी जुबान पर जारी रहता। जब मोहब्बत ने इश्क की मंजिल को पा लिया तो एक रात ख्वाब में देखा दरवाजे पर कोई घुड़सवार आया है। उसने पानी मांगा जोहरा बीबी पानी लेकर दरवाजे पर पहुंची और गिलास सवार की तरफ बढ़ाती हैं। आवाज आयी मेरी तरफ देखो। बस उसी वक्त आखें रौशन हो गयी। बहराइच जाने की बात करती है। यहां पर मजार की चौहद्दी तामीर करवाती हैं। जब यहां आती है तो फिर यहीं की होकर रह जाती है। यहीं पर रह कर आपका इंतकाल 19 साल की उम्र में हुआ। यहीं पर आपका मजार हैं। जेठ माह में जोहरा बीबी साहिबा का इंतकाल हो गया और साल गुजरते रहे और फिर एक दिन ऐसा आया कि इस दिन को लोगों ने लगन के नाम से मशहूर कर दिया।