गोरखपुर। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डा. संदीप पांडेय लोकसभा चुनाव में गंगा के लिए जान दे रहे साधुओं की कहानी बताने निकल पड़े हैं। वह जगह-जगह जाकर लोगों के बीच पर्चा बांटकर, नुक्कड़ सभाएं, बैठक व पत्रकार वार्ता कर गंगा को अविरल व निर्मल बहने देने, गंगा में अवैध खनन रोकने और गंगा पर बांधों के निर्माण को रोकने के लिए साधुओं के अनशन और साधुओं के अनशन के प्रति सत्तारूढ मोदी सरकार की अनदेखी की बात बता रहे हैं। वह सवाल उठा रहे हैं कि भाजपा के राज में गंगा को बचाने के लिए साधू अनशन कर अपनी जान देने को मजबूर क्यों हैं ? हिन्दुत्व और मां गंगा के नाम पर वोट मांगने वाली मोदी सरकार गंगा को बचाने के लिए अनशन कर रहे साधुओं को मरने के लिए क्यों छोड़ दिया है ?
लखनउ, कानपुर, पटना में पर्चा बांटने, सभा करने के बाद 4 अप्रैल को डा. संदीप पांडेय महराजगंज और गोरखपुर में थे। महराजगंज में उन्होंने इस मुद्दे पर आईटीएम कालेज में संवाद किया, पत्रकार वार्ता को सम्बोधित किया। शाम को वह गोरखपुर में प्रेमचंद पार्क में शहर के बुद्धिजीवियों, छात्रों-युवाओं से संवाद किया और इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने का आह्वान किया।
इन कार्यक्रमों में डा. संदीप पांडेय ने कहा कि 2011 में नौजवान साधू स्वामी निगमानंद की हरिद्वार में गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन करते हुए 115वें दिन जान चली गई। जिस आश्रम से वे जुड़े थे, मातृ सदन, ने आरोप लगाया कि खनन माफिया ने सरकार के साथ मिलकर अस्पताल में उन्हें जहर देकर मार डाला। 1998 में स्वामी निगमानंद के साथ अवैध खनन के खिलाफ पहला अनशन कर चुके स्वामी गोकुलानंद की 2003 में नैनीताल में खनन माफिया ने हत्या करवा दी। 2014 में वाराणसी में बाबा नागनाथ गंगा के संरक्षण हेतु अनशन करते हुए 114वें दिन चल बसे। पिछले वर्ष स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की, जो पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल के नाम जाने जाते थे और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संस्थापक सदस्य-सचिव रहे चुके थे, अपने छठे अनशन के 112वें दिन 11 अक्टूबर को मृत्यु हो गई।
उन्होंने कहा कि 24 जून, 2018 से गंगा के संरक्षण हेतु अनशन पर बैठे संत गोपाल दास 6 दिसम्बर से देहरादून से गायब हैं। स्वामी सानंद के जाने के बाद उनके संकल्प को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से 26 वर्षीय केरल निवासी ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद 24 अक्टूबर, 2018 से मातृ सदन के उसी स्थान पर जहां स्वामी सानंद ने अनशन किया था बैठे हैं। आज उनके अनशन के 163 दिन हो चुके हैं। ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के बाद मातृ सदन के ही स्वामी पुनयानंद अभी से अन्न त्याग अनशन पर जाने की तैयारी में बैठे हैं.
डॉ पाण्डेय ने कहा कि ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद अपने गुरु स्वामी शिवानंद के साथ अनशन के दौरान प्रयागराज के अर्द्ध कुम्भ में भी करीब बीस दिन रहे किंतु वहां भी आकर किसी सरकारी नुमाइंदे ने उनसे बात नहीं की. उत्तर प्रदेश के मंत्रीमण्डल की बैठक वहां हुई, मुख्य मंत्री समेत कई शासक दल के प्रमुख नेता वहां आए किंतु किसी को ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद से मिलने की फुर्सत नहीं मिली.
उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि यदि टिहरी, हरिद्वार, बिजनौर, नरोरा में बने बांधों से पानी न छोड़ा गया होता तो अर्द्ध कुम्भ में प्रयागराज में स्नान भर का भी पानी नहीं मिलता. 15 जनवरी से 4 मार्च, 2019 अर्द्ध कुम्भ की अवधि में कृत्रिम तरीके से गंगा का पानी साफ भी कर दिया गया किंतु यह गंगा की जैव विविधता, यानी जीव-जंतुओं, के बगैर था। अतः यह अस्थाई व्यवस्था ही थी। सवाल यह है कि सरकार राजनीतिक कारणों से प्रचार पाने के लिए जो काम कर सकती है वह स्थाई रूप से गंगा या लोगों के हित में क्यों नहीं कर सकती ? वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जब तक गंगा में न्यूनतम प्रवाह नहीं बना रहेगा तब तक गंगा की निर्मलता नहीं रहेगी। इस प्रवाह को बांध बाधित करते हैं।
संदीप पाण्डेय ने कहा कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की मांग भी यही थी कि गंगा को अविरल एवं निर्मल बहने दिया जाए. वे चाहते थे कि गंगा पर सभी प्रस्तावित व निर्माणाधीन बांधों का काम रोक दिया जाए व गंगा में अवैध खनन रोका जाए. उनके जाने के बाद जब सरकार ने मातृ सदन से पूछा कि उनकी न्यूनतम मांग क्या है तो स्वामी शिवानंद ( जिनके नेतृत्व में साधुओं का अनशन आयोजित किया गया है और जिनका व्यक्तिगत संकल्प है कि मातृ सदन के एक साधू के बलिदान होने पर दूसरा अनशन पर बैठेगा और वे खुद अपने जान की बाजी लगाने को तैयार हैं ) ने कहा कि कम से कम तीन पन बिजली परियोजनाएं, मंदाकिनी पर सिंगौली भटवाड़ी, अलकनंदा पर तपोवन विष्णुगाड व विष्णुगाड पीपलकोटी रद्द की जाएं और गंगा में खनन बंद हो।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब सैनिक शहीद होते हैं तो देश भर के लोगों में आक्रोश देखने को मिलता है. लोग सड़कों पर निकल नारे लगाते हैं, शहीद सैनिकों के परिवारों की आर्थिक मदद करते हैं और उनकी मूर्तियां लगवाते हैं. किंतु साधुओं की जान जाने पर सब चुप हैं. क्यों नहीं नरेन्द्र मोदी की सरकार साधुओं से बात कर रही है ? लोगों में भी साधुओं की उपर्युक्त बलिदानी परम्परा के प्रति कोई चिंता क्यों नहीं ? खासकर ऐसे समय में जब देशभक्ति को धार्मिक भावना से भी जोड़ा जा रहा है.
संदीप पाण्डेय ने कहा कि एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर और दूसरी तरफ केरल के शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के लिए भी लोग सड़कों पर निकल आते हैं, जिसमें देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस शामिल हैं, किंतु गंगा के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले साधुओं के प्रति हमारी कोई सहानुभूति दिखाई नहीं पड़ती ?
उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व के नाम पर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार, जिसके प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार ने वाराणसी से चुनाव लड़ते समय कहा कि ’मां गंगा ने मुझे बुलाया है’ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े तमाम संगठन जो किसी भी धार्मिक मुद्दे को भुनाने में पीछे नहीं रहते, ईमानदारी से गंगा को बचाने के लिए अनशन करने वाले साधुओं के साथ क्यों नहीं खड़े नजर आते? गंगा के साफ होने से देश के करीब 40 प्रतिशत लोगों को तो सीधा लाभ मिलेगा जो गंगा या गंगा की सहायक नदियों के किनारे रहते हैं जबकि अयोध्या में राम मंदिर से किसको लाभ होगा मालूम नहीं, फिर भी संघ परिवार गंगा और उसके लिए अनशनरत साधुओं के प्रति संवेदनहीन है. यह दिखाता है कि हिन्दुत्व के नाम पर राजनीति करने वाले संगठनों का धर्म या धार्मिक मुद्दों से कोई मतलब नहीं जब तक वह उनके लिए मतों का ध्रुवीकरण न कर सके।
गोरखपुर के कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य, समाजवादी नेता फ़तेहबहादुर सिंह, आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह, भाकपा माले के जिला सचिव राजेश साहनी, रंगकर्मी राजाराम चौधरी, अधिवक्ता सुभाष पाल, पत्रकार ओंकार सिंह, विकास द्विवेदी, आकृति विज्ञा अर्पण, विजय यादव आदि उपस्थित थे.