गोरखपुर। 10 और 11 अगस्त 2017 को लिक्विड आक्सीजन खत्म होने से 48 घंटे में 34 बच्चों और 18 वयस्कों की मौत की घटना के आज दो वर्ष पूरे हो रहे हैं लेकिन पूरे देश को हिला देने वाली इस घटना से जुड़े सवालों के जवाब आज तक नहीं मिल पाए हैं। सरकार की प्रशासनिक व पुलिस जांच में आरोपित किए गए 9 आरोपी सात महीने से एक वर्ष तक जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आ गए हैं और गोरखपुर की अदालत में इस केस की सुनवाई भी चल रही है लेकिन लोगों के जेहन में एक सवाल अभी भी गूंज रहा है कि इस घटना के लिए वाकई यही लोग जिम्मेदार हैं या असली दोषी बच गए और उन तक जांच की आंच भी न पहुंच सकी।
आक्सीजन कांड की पुलिस जांच पूरी हो गई है और इस मामले में गिरफ्तार सभी नौ आरोपियों के विरूद्ध चार्जशीट अदालत में दाखिल हो चुकी है। अदालत में अब आरोपियों पर आरोप तय करने की प्रक्रिया चल रही है।
आक्सीजन हादसे की जांच करने वाले विवेचना अधिकारी अभिषेक सिंह ने सभी नौ में से सात अभियुक्तों-डा, पूूर्णिमा शुक्ल, गजानन्द जायसवाल, डा, सतीश कुमार, सुधीर कुमार पांडेय, संजय कुमार त्रिपाटी, उदय प्रताप शर्मा और मनीष भंडारी के खिलाफ 26 अक्तूबर 2017 को, डा. राजीव मिश्रा और डा. कफील खान के खिलाफ 22 नवम्बर 2017 को अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी।
चार्जशीट में 93 लोगों की परिस्थिति जन्य साक्ष्य की गवाही है जिसमें बीआरडी मेडिकल कालेज के चिकित्सक, कर्मचारी, कालेज कैम्पस के दुकानदार, 10 और 11 अगस्त की तारीख मंे मरे बच्चों के अभिभावकों के नाम हैं।
एफआईआर दर्ज होने के बाद तीन महीने में ही पुलिस ने सभी नौ आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया था लेकिन पुष्पा सेल्स को लिक्विड मेडिकल आक्सीजन सप्लाई का टेंडर देने में ‘ अनियमितता ’ की जांच आगे चार महीने और चलती रही और बाद में इसमें कुछ भी गलत नहीं पाए जाने के साथ अनुपूरक चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई।
इन दो वर्षों में सात आरोपी जो बीआरडी मेडिकल कालेज के डाक्टर या कर्मचारी हैं, के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। ये सभी निलम्बित हैं। पता चला है कि कुछ दिन पहले बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के निलम्बित असिस्टेंट प्रोफेसर डा. कफील खान, एनस्थीसिया विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा.सतीश कुमार और बीआरडी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य डा.राजीव मिश्र के खिलाफ आरोपों की विभागीय जांच पूरी हो चुकी है और जांच रिपोर्ट सरकार को भेजी जा चुकी है। फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल के खिलाफ भी विभागीय जांच पूरी हो चुकी है। उनके खिलाफ जांच एडी हेल्थ पुष्कर आंनद ने की थी। वह 31 जुलाई को रिटायर भी हो गए।
विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण की अदालत में सभी नौ अभियुक्तों के खिलाफ दायर चार्ज शीट और खोजबीन के दौरान मिले कुछ अन्य कागजातों के लगभग एक हजार पन्ने पढ़ने के बाद पता चलता है कि पुलिस जांच में इस घटना के कारणों और जिम्मेदारों को सामने लाने के बजाय प्रशासकीय जांच में आरोपी बना दिए गए लोगों का अपराध साबित करने में ही पूरा समय व श्रम खर्च किया गया है।
पुलिस की चार्जशीट अंतविर्रोधों का पुलिंदा है और वह अपनी ही कही बातों से कई बार वह पलटते नजर आई है।
गवाहों के बयान एक जैसे हैं, जैसा लगता है कि सबने एक लिखित स्क्रिप्ट के तहत अपने बयान दिए हों। आरोपों को साबित करने के लिए सुबूत न के बराबर हैं और गवाहों द्वारा ‘ देखी और सुनी गई ’ बातों से आरोप को साबित करने की कोशिश की गई है।
चार्जशीट में सबसे हैरान करने वाला जिक्र यह है कि 10 और 11 अगस्त को बीआरडी मेडिकल कालेज में मरे बच्चों के अभिभावकों ने विवेचना अधिकारी से कहा कि उनके बच्चों की मृत्यु आक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। बच्चों के परिजनों से जांच अधिकारी सवाल करते हैं-क्या आपके बच्चे की मृत्यु आक्सीजन खत्म होने से हुई थी ? सभी अभिभावकों का एक ही तरह का जवाब है-नहीं साहब। हमारे बच्चे की मौत आक्सीजन की कमी से नहीं हुई। जब आक्सीजन की कमी हुई तो सिलेण्डर लगा दिया गया, अम्बू बैग दिया गया। बच्चे की मौत गंभीर बीमारी से हुई। ‘
बच्चों के अभिभावकों में मैनेजर राजभर का भी यही बयान दर्ज है जबकि उन्होंने इस घटना के लिए आक्सीजन की कमी के जिम्मेदार ठहराते हुए गुलरिहा थाने में एफआईआर दर्ज करने के लिए तहरीर दिया था। पुलिस ने उनकी एफआईआर दर्ज नहीं की। इन परिजनों में से कई के कई प्रमुख समाचार पत्रों में इंटरव्यू छपे हैं जिनमें इन्होंने आक्सीजन की कमी होने और बच्चों की मौत के लिए इसको जिम्मेदार बताया है। चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद मैने आक्सीजन हादसे में अपने बच्चे खोने वाले विपिन सिंह, ब्रम्हदेव यादव, धर्मेन्द्र गुप्ता, मो.जाहिद से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि उन्हें जांच अधिकारी के समक्ष कभी यह नहीं कहा कि उनके बच्चों की मौत आक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई। हमने जांच अधिकारी से यही कहा कि बच्चों की मौत का कारण आक्सीजन समाप्त हो जाना था।
अनुत्तरित सवाल
1. 10 और 11 अगस्त को 34 बच्चों की और मेडिसिन विभाग के वार्ड नम्बर 14 में 18 वयस्क मरीजों की ही मौत की सूचना है। इन वयस्क मरीजों की मौत का सम्बन्ध आक्सीजन की कमी से है या नहीं, इसकी न तो पुलिस ने जांच की न प्रदेश व केन्द्र सरकार द्वारा बनायी गयी कमेटियों ने।
2. 10 और 11 अगस्त को सर्जरी, गायनी, ट्रामा सेंटर आदि वार्डों में कितने मरीज भर्ती थे और उनमें से किसकी मृत्यु हुई इसकी कोई जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं है जबकि लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से ये सभी वार्ड प्रभावित हुए थे।
3. जब आक्सीजन से मौत होने का सवाल सामने आया तो मृत मरीजों का पोस्टमार्टम या डेथ आडिट क्यों नहीं हुआ और इसके हुए बिना आक्सीजन की कमी से मृत्यु होने से इंकार का आधार क्या है ?
4. जब लिक्विड आक्सीजन खत्म होने की जानकारी एक दिन पहले से थी तो जम्बो सिलेण्डर का इंतजाम क्राइसिस होने के वक्त से क्यों शुरू किया और तो वह कौन शख्स था जिसने जम्बो सिलेण्डर के इंतजाम के प्रयास किए ? यदि यह शख्स डा. कफील अहमद थे तो उन्हें शाबाशी देने के बजाय अभियुक्त क्यों बनाया गया ?
5. जब प्रिसिंपल, आक्सीजन मेंटीनेंस के प्रभारी अवकाश पर थे तो उनके स्थान पर कार्य रहे लोगों ने क्या भूमिका निभायी ? उनकी भूमिका जांच के दायरे में क्यों नहीं रखी गई ?
6. लिक्विड आक्सीजन के भुगतान के सम्बन्ध में पुष्पा सेल्स द्वारा जनवरी से अगस्त 2017 तक लिखे पत्रों, लीगल नोटिस का यदि प्रिसिपल ने संज्ञान नहीं लिया और कोई कार्यवाही नहीं की तो गोरखपुर से लखनउ तक अन्य अफसरों-गोरखपुर के डीएम, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य मंत्री, चिकित्सा शिक्षा मंत्री आदि ने क्या किया ?
7. आरोप है कि डा राजीव मिश्र और लेखा विभाग के तीन कर्मचारियों ने जानबूझ कर मार्च में धन लैप्स करा दिया और उसके बाद अप्रैल माह से तमाम फर्मो का भुगतान कमीशन की लालसा में रोका रखा तो उन पर तभी कार्यवाही क्यों नहीं हुई ? आक्सीजन कांड के बाद इस मामले में कार्रवाई क्यों शुरू की गई ?
8. गोरखपुर के डीएम, चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं लेकिन उनके विरूद्ध जांच तो दूर ये सभी लोग इस घटना की जांच कमेटियों में रहे या जांच कमेटी गठित की। डीएम राजीव रौतेला ने जांच कमेटी गठित की जिसने डा. राजीव मिश्र, डा सतीश मिश्र, पुष्पा सेल्स के निदेशक मनीष भंडारी आदि को आक्सीजन की की कमी और उससे उत्पन्न परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार बताया गया। डीजीएमई केके गुप्ता ने सरकार के आदेश पर नौ दिन रहकर घटना के बारे में रिपोर्ट तैयार की और उसे सरकार को सौंपा। फिर सरकार के आदेश पर एफआईआर दर्ज करायी।
आईएमए की गोरखपुर इकाई ने नौ अप्रैल 2018 को गोरखपुर में किए गए प्रेस कांफ्रेस और डा. कफील ने जमानत मिलने के पहले 17 अप्रैल को जेल से लिखे पत्र में भी यही सवाल उठाए हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की गोरखपुर इकाई ने कहा है कि इस मामले की गंभीर जांच कर तथ्यों को सामने लाने की कोशिश नहीं की गई है।
डा. कफील ने इस घटना को उच्च स्तर पर प्रशासनिक फेल्योर बताया है। उन्होंने इस हादसे के लिए गोरखपुर के डीएम, चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक, प्रिसिंपल सेक्रेटरी हेल्थ, प्रिंसिपल सेक्रेटरी मेडिकल एजुकेशन को जिम्मेदार बताते हुए आरोप लगाया था कि मेडिकल कालेज के चिकित्सकों को बलि का बकरा बनाया गया ताकि सच हमेशा के लिए दफन हो जाए।
डा सतीश कुमार ने भी आईएमए गोरखपुर के अध्यक्ष को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि असली मुजरिमों को बचाने के लिए उन्हें जेल में डाला गया। इस घटना के लिए लिए पूरी तरह से चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक, प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य मंत्री जिम्मेदार हैं जिन्होंने समय रहते बीआरडी मेडिकल कालेज को बजट रिलीज नहीं किया। असली दोषियों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने छोटी मछलियों निर्दोषों को आकरण जेल में बंद रखा ताकि उनके कारनामों को जनता न जान सके।
सबसे अहम सवाल यह है कि आक्सीजन सप्लायर को समय से उसके बकाया का भुगतान क्यों नहीं हुआ जिसके कारण आक्सीजन की कमी हुई ? अब तक की सभी प्रशासकीय, तकनीकी जांच और पुलिस जांच भी इस बारे मंे स्पष्ट रूप से कुछ भी खुलासा नहीं कर पाती हैं और न इसके असल जिम्मेदारों की खोज की कोशिश करती है तो क्या वाकई ‘ असली दोषियों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने छोटी मछलियों को फंसा दिया और सच हमेशा के लिए दफन कर दिया गया ?