संदीपन तालुकदार
मानवजनित जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभाव को मापने के महत्वपूर्ण सूचकांकों में से एक विश्व के महासागरों की सेहत है। महासागरों की सेहत का एक महत्वपूर्ण संकेतक महासागर का परिसंचरण है। महासागर का परिसंचरण महासागरों में गति बनाए रखता है जो समुद्री जीवन के लिए बेहतर है और वैश्विक जलवायु को भी संतुलन में रखता है। लेकिन यह देखा गया है कि मानवजनित (मानव-निर्मित) जलवायु परिवर्तन इस परिसंचरण प्रणाली (सर्कुलेशन सिस्टम) में दख़ल दे रहे हैं जो वैश्विक जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) एक ऐसी परिसंचरण (सर्कुलेशन) प्रणाली है जो पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। मानवजनित ग्रीनहाउस वार्मिंग ने एएमओसी और उष्णकटिबंधीय भारतीय महासागर (ट्रॉपिकल इंडियन ओसियन-टीआईओ) को भी प्रभावित किया है। इसने क्षेत्रीय तथा वैश्विक जलवायु दोनों को नुकसान पहुंचाते हुए टीआईओ को बढ़ा दिया है जबकि एएमओसी को धीमा कर दिया है। लेकिन प्रकृति के पास इसकी व्यवस्था करने की अपनी क्षमता है।
नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने भविष्यवाणी किया है कि एएमओसी कम करने में टीआईओ कैसे मदद कर सकता है। पृथ्वी के सबसे बड़े वाटर सर्कुलेशन सिस्टम में से एक एएमओसी पिछले 15 वर्षों में धीमा पड़ गया है। यह तथ्य पिछले 15 वर्षों के डाटा और कंप्यूटर मॉडलिंग अध्ययन के माध्यम से पेश किया गया है।
उदाहरण के लिए, एएमओसी के अस्थिर होने से यूरोप में अधिक कड़ाके सर्दी, अधिक तूफान और शुष्क सहल (उत्तर में सहारा और दक्षिण में सूडान सवाना के बीच अफ़्रीका में पारिस्थितिक और बायोग्राफिकल का संक्रमण क्षेत्र) दक्षिण अफ़्रीका में फैल जाएंगे। एएमओसी एक लिक्विड एस्केलेटर की तरह काम करता है। यह दक्षिण में भूमध्य रेखा की ओर ठंडे पानी को भेजते हुए उत्तरी अटलांटिक को गर्म पानी पहुंचाता है।
ये अध्ययन ज़्यादातर विशिष्ट जलवायु तंत्र और लक्षण पर केंद्रित है जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण बदल सकते हैं। अवलोकन संबंधी डेटा और विवेकी कंप्यूटर मॉडलिंग का एक समुच्च जो उन्होंने अपने अध्ययन में इस्तेमाल किया था वह उन्हें यह आकलन करने में मदद कर सकता है कि भविष्य के वैश्विक जलवायु में परिवर्तनों का क्या प्रभाव होगा। हिंद महासागर के गर्म होने के संबंध में उनके अध्ययन ने उन्हें यह पता लगाने के लिए प्रेरित किया कि एएमओसी की कमी को यह कैसे संतुलित कर सकता है।
इस अध्ययन के पहले लेखक ह्यू ने कहा,“ हिंद महासागर ग्लोबल वार्मिंग के फिंगरप्रिंटों में से एक है। हिंद महासागर के गर्म होने को ग्लोबल वार्मिंग के सबसे ठोस पहलुओं में से एक माना जाता है।”
बौद्धिक रूप से प्रभावशाली इस मॉडलिंग ने हिंद महासागर से अटलांटिक तक के संपूर्ण मार्ग में व्यापक प्रभावों की एक श्रृंखला का खुलासा किया। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग हिंद महासागर को गर्म करता है ऐसे में यह अतिरिक्त वेग उत्पन्न करता है। जिसके चलते यह अटलांटिक सहित दुनिया के अन्य हिस्सों से हिंद महासागर की ओर अधिक हवा खींचेगा।
हिंद महासागर में प्रिसिपिटेशन (वर्षा) की ये वृद्धि अटलांटिक को वर्षा से वंचित कर देगा क्योंकि अटलांटिक से अधिक हवा हिंद महासागर की ओर खींची जाती है। अटलांटिक में कम वर्षा से इसके पानी की लवणता अधिक हो जाएगी, विशेष रूप से इसके उष्णकटिबंधीय भागों में। फिर, पानी जितना खारा हो जाता है, यह उतना ही घना और भारी हो जाता है। इस प्रकार, अटलांटिक का पानी, जैसा कि एएमओसी के माध्यम से उत्तर में आता है, सामान्य से बहुत अधिक ठंडा हो जाएगा और परिणामस्वरूप बर्फ अधिक आसानी से बन जाएगा। बर्फ़ बनने की इस प्रक्रिया से अटलांटिक का जल नीचे की तरफ़ जाएगा और जब ऐसा होगा तब नीचे की तरफ पहुंचा हुआ जल दक्षिण की ओर अपनी गति को बढ़ाएगा।
शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि, अटलांटिक के जल की तेज़ और आसान प्रवाह एएमओसी की कमी की भरपाई कर देगा।
इस अध्ययन के दूसरे लेखक एलेक्सी फ्योडोर कहते हैं, “परिसंचरण (सर्कुलेशन) को तेज़ करते हुए यह एएमओसी के लिए अकस्मात प्रारंभ होने के रूप में कार्य करेगा। दूसरी तरफ़ हम नहीं जानते कि हिंद महासागर के गर्म होने का यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा।”
ये अनुसंधान एक बार फिर से वैश्विक जलवायु की जटिल और परस्पर प्रकृति को दोहराता है। ऐसे समय में जब मानवीय गतिविधियों का वैश्विक जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है, उन कारकों का पता लगाना जो जलवायु को प्रभावित करते हैं और वे किस तरह व्यवहार करते हैं, इसका काफ़ी महत्व हो जाता है।
( न्यूज़ क्लिक से साभार )