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प्रशासन ने बिस्मिल भवन जबरन खाली कराया, आगे का हिस्सा ढाहा

वयोवृद्ध पत्रकार श्यामानन्द को कांशीराम आवास भेजा, बिस्मिल भवन से निकलता था बिस्मिल साप्ताहिक, पुस्तकालय व संग्रहालय भी था

गोरखपुर। गोरखपुर जिला प्रशासन ने आज सिविल लाइंस पार्क रोड स्थित बिस्मिल भवन को जबरन खाली करा लिया और विरोध करने पर यहां रह रहे बिस्मिल साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक 80 वर्षीय श्यामानन्द श्रीवास्तव, समाजवादी नेता अश्विनी पांडेय, सामाजिक कार्यकर्ता ह्दयानंद भट्ट सहित पांच लोगों को हिरासत में ले लिया। बाद में प्रशासन ने बिस्मिल भवन का पोर्च ढहा दिया और वहां बैनर टांग दिया कि यह भवन जर्जर है। हिरासत में लिए गए श्यामानन्द को बाद में स्पोर्ट्स कालेज के पास बने कांशीराम आवास के एक क्वार्टर में पहुंचा दिया गया।

प्रशासन के एक्शन से लगता है कि वह बिस्मिल भवन को पूरी तरह ढहा देना चाहता है। यहां पर वाहन दुर्घटना दावा अधिकारण का भवन बनाए जाने की चर्चा है। यह भवन खाली कराने के लिए कुछ दिन पहल ही लोक निर्माण विभाग से इस भवन के जर्जर होने की रिपोर्ट प्राप्त की गई थी। प्रशासन का कहना है कि भवन को पूरी विधिक प्रक्रिया का पालन करते हुए खाली कराया गया है।


डीएम ने समाचार पत्रों को बयान दिया है कि नजूल की भूमि पर अवैध कब्जा था जिसे आज हटा दिया गया।

इस भवन में वरिष्ठ पत्रकार श्यामानन्द श्रीवास्तव 1971 से रह रहे थे। वह यहां से बिस्मिल साप्ताहिक अखबार संचालित करते थे। वह पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के बहुत करीबी रहे हैं।

श्यामानन्द ने यहां पर पुस्तकालय और बिस्मिल स्मारक संग्रहालय स्थापित किया था। इस स्थान पर आयोजित होने वाले बिस्मिल बलिदान दिवस के कार्यक्रम में अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की बहन शास्त्री देवी, भांजे हरिशचन्द्र सहित आजादी के आंदोलन के क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी, रामकृष्ण ख़त्री भाग ले चुके हैं।

वरिष्ठ पत्रकार श्यामानन्द ने प्रशासन की इस कार्यवाही को अवैधानिक बताते हुए कहा कि इस भवन से बेदखली के विरूद्ध उन्हें अदालत से संरक्षण प्राप्त है। अदालत ने आदेश में कहा है कि उन्हें इस भवन से बगैर किसी वैधानिक कार्यवाही के मात्र ताकत के बल पर न निकाला जाय। उन्होंने अदालत के इस आदेश से प्रशासन को अवगत कराया था फिर भी बिना नोटिस दिए उन्हें जबर्दस्ती बेदखल कर दिया और यहां रखे महत्वपूर्ण दस्तावेज, सामान इधर-उधर कर दिया।

श्यामानंद ने बताया कि अराजी नं. 97-98 उनको 31 जुलाई 1971 को आवंटित हुआ था। इस स्थान पर वह 1963 से बिस्मिल बलिदान दिवस का आयोजन करते थे। इन आयोजनों में कई बार अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की बहन शास्त्री देवी, भांजे हरिश्चन्द्र, स्वाधीनता आंदोलन के क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी, रामकृष्ण खत्री शामिल हुए। इस भवन में आने के बाद उन्होंने यहां से बिस्मिल साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया और पुस्तकालय व संग्रहालय स्थापित किया। उनकी मांग पर अमर शहीद बिस्मिल की यादों को संजोने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने बिस्मिल पार्क स्थापित किया।


उन्होंने बताया कि यह भवन नजूल भूमि पर बना है। इसको लेकर गोरखपुर के जिला एवं सेशन जज की अदालत में डिस्टिक्ट मजिस्टेट कम रेंट कन्टोल व इक्वीशन आफिसर व अन्य 1970 वाद दाखिल हुआ था जिसमें 25 अप्रैल 1977 को उनके पक्ष में आदेश मिला जिसमें बगैर किसी वैधानिक कार्यवाही के ताकत के बल पर निकालने पर रोक लगाया था।

श्यामानंद ने बताया कि उन्हें इस भवन को खाली कराये जाने के बारे में पिछले महीने एक अखबार में छपी खबर से पता चला कि प्रशासन ने इस भवन पर अवैध कब्जा बताते हुए इसे खाली करने की बात कही है। इसके बाद वह डीएम और कमिश्नर से मिले और उन्हें बताया कि भवन पर अवैध कब्जा नहीं है। वह विधियुक्त आवंटी हैं और उन्हें न्यायालय से संरक्षण भी प्र्राप्त है। आज सुबह 11 बजे प्रशासनिक अधिकारी और नगर निगम के अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ आए और उन्हें भवन से जबर्दस्ती बाहर कर एक एम्बुलेंस में बिठा दिया और घरा का सारा समान टैक्टर टाली में ले जाने लगे। कार्यवाही का विरोध करने पर उनके साथी समाजवादी नेता अश्विनी पांडेय, ह्दयानंद भट्ट, उनके सहोगी दीपक को हिरासत में लेकर एम्बुलेंस में बिठा दिया गया। उन्हें बाद में स्पोर्ट्स कालेज के पास बने कांशीराम आवासीय भवन के एक कमरे में भेज दिया। उनका कुछ सामान भी यहां भिजवा दिया गया। बिस्मिल भवन में तमाम ऐतिहासिक दस्तावेज थे जिनको पता नहीं कहां रखा गया है।


प्रशासन की इस कार्यवाही पर लोग सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस स्थान पर अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल से जुड़ी यादों को संजोया गया था। प्रशासन व सरकार को सहयोग कर यहां संचालित पुस्तकालय, संग्रहालय को और विकसित करना चाहिए था। उल्टे प्रशासन ने इसे खाली करा लिया और इसे ढहाने जा रहा है। यह भवन 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है। इस दृष्टिकोण से यह हेरिटेज श्रेणी में आता है। इसलिए इसको ढहाना और मूल ढांचे में परिवर्तन करना गैरकानूनी भी है।

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