बहरइच मामले में भी डा. कफील को सस्पेंड किया गया, विभागीय कार्यवाही शुरू की गई
गोरखपुर। उत्तर प्रदेश सरकार ने आक्सीजन कांड में बीआरडी मेडिकल कालेज के निलम्बित प्रवक्ता डा. कफील अहमद खान को विभागीय जांच में दो आरोपों में दोषमुक्त किए जाने की फिर से जांच कराने का निर्णय लिया है.
प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दूबे ने तीन अक्टूबर को लखनऊ में पत्रकार वार्ता कर कहा कि विभागीय जांच में जांच अधिकारी ने दो आरोप सिद्ध नहीं पाए थे जिसके बारे में शासन के संज्ञान में कतिपय नए अभिलेख आए हैं जिसकी जांच की जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि अगस्त 2018 के जिला अस्पताल बहराइच प्रकरण में डा. कफील के विरूद्ध तीन आरोप लगाए गए हैं जिसकी जांच प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण देवेश चतुर्वेदी को सौंपा गया है.
प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे कहा कि ने शासन ने डा. कफील खान को क्लीन चिट नहीं दी है और उनके खिलाफ अनुशासन हीनता, भ्रष्टाचार, कर्तव्य पालन में घोर लापरवाही के कुल सात आरोप हैं जिनकी जांच की कार्यवाही चल रही है.
श्री दुबे ने डा. कफील पर विभागीय जांच आख्या की गलत व्याख्या करने और मीडिया में असत्य एवं भ्रामक खबरें प्रसारित एवं प्रकािशत करने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा कि बीआरडी मेडिकल कालेज के आक्सीजन कांड में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर डा. कफील के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई थी जिसमें कुल चार आरोप लगाए गए थे. इसमें आरोप संख्या एक और दो सरकारी सेवा में सीनियर रेजीडेंट व नियमित प्रवक्ता रहते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस करने व निजी नर्सिंग होम संचालित करने का था जो गंभीर भ्रष्टाचार तथा नियमों के घोर उल्लंघन का मामला है. इन दोनों आरोपों को जांच अधिकारी द्वसरा पूर्णतया सिद्ध पाया गया है जिस पर निर्णय लिए जाने की कार्यवाही चल रही है.
उन्होंने कहा कि जिन दो आरोपों (आरोप संख्या 3 व 4 ) को जांच अधिकारी ने सिद्ध नहीं पाया है उसके बारे में शासन के संज्ञान में कतिपय नए अभिलेख लाए गए हैं. उन्होंने कहा कि आरोप संख्या तीन और चार डा. कफील के मेडिकल कालेज गोरखपुर के बाल रोग विभाग में 100 बेड वार्ड के प्रभारी होने के दौरान अपने दायित्वों का समुचित निर्वहन न किए जाने, आक्सीजन की कमी जैसी महत्वपूर्ण घटना को उच्चाधिकारियों के संज्ञान में न लाने तथा वार्ड में दी जाने वाली चिकित्सकीय सुविधाओं का समुचित प्रबंधन न करने व अधीनस्थों पर समुचित नियंत्रण न रखने का है. इन आरोपों के बारे में डा. कफील ने जांच अधिकारी को अभिलेख उपलब्ध कराया था कि घटना के समय 100 बेड के प्रभारी वह नहीं डा. भूपेन्द्र शर्मा थे। इस अभिलेख के आधार पर जांच अधिकाीर ने डा. कफील पर आरोप सिद्ध नहीं पाया. लेकिन शासन ने इन आरापों पर डा. कफील को क्लीन चिट नहीं दिया। शासन के संज्ञान में कतिपय अभिलेख आए हैं जिनके अवलोकन से प्रथम दृष्टया यह परिलक्षित होता है कि वर्ष 2016 एवं 2017 में डा. कफील अहमद खान 100 वेड एईएस वार्ड के नोडल आफिसर थे और उनके द्वारा नोडल आफिसर के रूप में पत्राचार किए गए हैं. उन्हें नोडल आफिसर के रूप में क्रय समिति में सदस्य भी बनाया गया था. इस तथ्य को देखते हुए आरोप संख्या 3 और 4 में आगे की जांच की जा रही है.
प्रमुख सचिव ने यह भी कहा कि डा. कफील द्वारा 22 सितम्बर 2018 को 3-4 लोगों के साथ जिला अस्पताल बहराइच जाकर बाल रोग विभाग में जबरन मरीजों का उपचार करने का प्रयास किया गया. इस घटना के बारे में जिला अस्पताल बहराइच के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने 17 जुलाई 2019 को शासन को अवगत कराया और कहा कि डा. कफील के इस कृत्य से चिकित्सालय में अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हुआ तथा पीआईसीयू में भर्ती गंभीर बाल रोगियों के जीवन पर संकट उत्पन्न हुआ. इस घटना के सम्बन्ध में डा. कफील के खिलाफ बहराइच के कोतवाली नगर में एफआईआर भी दर्ज करायी गई थी.
प्रमुख सचिव ने कहा कि ‘ निलम्बन अवधि के दौरान डा. कफील सम्बद्धता स्थल (महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण) में योगदान न देकर सोशल मीडिया पर सरकारी विरोधी राजनैतिक टिप्पणियां की गई. सरकारी सेवक के रूप में उनका यह कार्य अत्यन्त गंभीर कदाचार की श्रेणी में आता है. इस बारे में 31 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील नियमावली 1999 के अनुसार डा. कफील को निलम्बित किया गया है. इस मामले में डा. कफील के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है जिसमें कुल तीन आरोप लगाए गए हैं. इन आरोपों की जांच 18 सितम्बर 2019 को प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण देवेश चतुर्वेदी को सौंपी गई है. ‘
प्रमुख सचिव ने कहा कि आक्सीजन कांड और बहराइच की घटना को लेकर डा. कफील के उपर कुल सात आरोपों में विभागीय कार्यवाही चल रही है और जांच की कार्यवाही में अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.