गोरखपुर. इस्लामिया कालेज ऑफ कॉमर्स बक्शीपुर के सर सैयद हॉल में रविवार को मशहूर चिकित्सक डॉ. अजीज अहमद की किताब ‘यादों के इंतखाब ने’ का विमोचन प्रो. हुमायूं मुराद, प्रो. असमत मलीहाबादी, डॉ. अख्तर, हाजी शरीफ अहमद, डॉ. कलीम कैसर ने किया। विमोचन के बाद मुशायरा भी हुआ।
640 पेज की यह किताब में उर्दू के 250 कवियों की नज्म, ग़ज़ल संग्रहित हैं. इसमें संग्रहित नज़्म और गजल डॉ अज़ीज़ को आज भी पूरी तरह से याद हैं और गोरखपुर और उसके बाहर की अदबी दुनिया उनसे सुनती रही है. डॉ अज़ीज़ का इन नज्मों , गजलों और अशआर का सुनाने का अंदाजे बयां भी अलग और बेहतरीन है. इस किताब में कुल 1000 नज़्म, ग़ज़ल और अशआर हैं. अधिकतर ग़ज़ल और नज़्म मीर और ग़ालिब के बाद के भारत और पाकिस्तान के शायरों के हैं.
किताब पर गुफ्तगू करते हुए प्रो. हुमायूं ने कहा कि डॉ. अजीज का यह अदबी पहलू उनके समाजी पहलू से कहीं ज्यादा कारगर और लायके एहतराम है. उन्होंने कम अज कम दो सौ साला शायरी तारीख को एक जगह इकट्ठा कर दिया, जो मेरे ख्याल से अपनी नवीयत की अहमतरीन किताबत में शामिल की जा सकती है.
प्रो. असमत ने कहा कि उर्दू दुनिया में यह इंतखाब इसलिए भी काबिलेकदर है कि इस मयार व मिज़ाज़ की दूसरी किताब अब तक सामने नहीं आई. डॉ. अजीज एक चिकित्सक हैं मगर उनकी अदब पर इतनी गहरी निगाह काबिलेतारीफ है. यह किताब न सिर्फ साहिबे जौक के लिए कारामद है बल्कि जो रिसर्च स्कॉलर हैं उनका मार्गदर्शन भी करेगी. खुद मुझे भी कुछ एक ऐसी नज़्मों की तलाश थी, जो आउट ऑफ प्रिंट होने के सबब दस्तयाब नहीं हो पा रही थी. डॉ. अजीज के इस इंतखाब ने मुझ जैसे न जाने कितने तिस्निगाने अदब के लिए एक बड़ा मसला हल कर दिया. यह इंतखाब हर एतबार से लायके कबूल है.
बनारस से तशरीफ लाये दानिश्वर डॉ. मो. अख्तर ने कहा कि डॉ. अजीज का यह कारनामा हैरतअंगेज तरीके से उर्दू अदब में देखा जा रहा है और जब मैंने यह सुना इस इंतखाब से उन्हें 70 फीसदी कलाम याद हैं तो मुझे और भी हैरत हुई. मैंने डॉ. अजीज को पिछले दिनों हैदराबाद के एक अदबी जलसे की सदारत करते हुए देखा और सुना था. मैं उनकी इल्मी और अदबी सलाहियत के बारे में तो जानता था, मगर उन्होंने इतना बड़ा काम कर दिया है जो शायद इस मौजू पर आने वाली तमाम किताबत में नायाब साबित होगी.
इस अदबी बज़्म के संयोजक शायर कलीम कैसर ने कहा कि इतना खूबसूरत इंतखाब मेरी नज़रों से नहीं गुजरा.
उर्दू साहित्यकार डा. दरख्शां ताजवर ने डॉ अज़ीज़ की शख्सियत को बयां करते हुए कहा कि उन्होंने चिकित्सा के जरिये समाज की सेवा तो की है. उनके सामाजिक कार्य भी काबिलेतारीफ है. उनमें अदब की जो सहालियत है वह विश्वविद्यालयों के बड़े -बड़े विद्वानों से कम नहीं , अधिक ही है. उन्हें उर्दू से मोहब्बत नहीं इश्क है. अलीगढ़ की तहजीब उनकी शख्सियत में रची बसी है.
कार्यक्रम में डॉ. अशफाक अहमद उमर, आरिफुल्लाह, में तलत अजीज, उमर, डॉ अशोक प्रसाद, अब्दुल्लाह, कामिल खान, आईएच सिद्दीकी, रोशन एहतेशाम, मनोज कुमार सिंह, नसीम सलेमपुरी, फरुख जमाल, शोएब अहमद सहित तमाम शायर, पत्रकार व साहित्यकार मौजूद रहे।