स्वास्थ्य

नसबंदी असफल होने पर मिलने वाली क्षतिपूर्ति राशि हुई दोगुनी

दम्पति योजना के तहत नसबंदी असफल होने पर मिलेंगे 60,000 रूपये

देवरिया। शासन ने परिवार नियोजन इंडेमिनिटी योजना (एफपीआईएस) के तहत नसबंदी के कारण उत्पन्न हुई जटिलता, असफलता या मृत्यु के प्रकरणों में प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि को दोगुना कर दिया है। अप्रैल 2019 के बाद से नसबंदी के असफल मामलों को इसमें शामिल किया जाएगा। नये साल में यह योजना जिले में पूरी तरह से लागू कर दी जाएगी।
डिस्ट्रिक्ट कम्यूनिटी प्रोसेस मैनेजर (डीसीपीएम) राजेश गुप्ता ने बताया परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग की ओर से आशा और एएनएम झुग्गी झोपड़ी सहित तमाम क्षेत्रों में जाकर पुरुषों और महिलाओं को जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए नसबंदी का स्थायी साधन अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। नसबंदी अपनाने वाले पुरुषों को 3000 रुपए प्रति पूर्ति राशि और महिलाओं को 2000 रूपये प्रोत्साहन राशि के तौर पर दिए जाते हैं जबकि नसबंदी फेल होने पर दंपत्ति को योजना के तहत अब तक 30,000 रूपये का मुआवजा दिया जाता था। उन्होंने बताया शासन द्वारा जारी किए गए नए दिशा निर्देश के अनुसार अब इस राशि को बढ़ाकर 60,000 रूपये कर दिया गया है। इस राशि का 60 प्रतिशत अंश केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत अंश राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। स्वास्थ्य इकाइयों पर दीवार पर पेंटिंग करवाकर योजना के बारे में लाभार्थियों को जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने बताया नसबंदी के बाद अस्पताल या घर में सात दिन के अंदर लाभार्थी की मृत्यु होने पर आश्रित को दो लाख रुपए दिए जाते थे, अब इसे बढ़ाकर चार लाख कर दिया गया है। 8 से 30 दिन के भीतर मृत्यु हो जाने पर 50,000 के स्थान पर एक लाख रूपये क्षतिपूर्ति राशि दी जाएगी। उन्होंने बताया कि बढ़ती हुई आबादी को नियोजित करने और समुदाय के प्रजनन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य आंकड़ों को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसी क्रम में परिवार नियोजन इंडेमिनिटी योजना (एफपीआईएस) के तहत शासन द्वारा यह नियम लागू किया गया है।
सात माह में 20 पुरुष और 852 महिलाओं ने अपनाई नसबंदी

जिला परिवार नियोजन विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह ने बताया पुरुष नसबंदी की अपेक्षा महिला नसबंदी की संख्या कई गुना अधिक है। इसको देखते हुए स्वास्थ्य विभाग भी महिलाओं को ही प्रोत्साहित कर परिवार नियोजन अभियान संचालित कर रहा है। पिछले सात माह में 20 पुरुषों ने नसबंदी कराई जबकि इस दरम्यान 852 महिलाओं ने नसबंदी कराई। वहीँ 2217 पीपीआईसीडी, 6743 आईयूसीडी लगाया गया है।

_____________________________________________________________________

परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी अब भी निराशाजनक

देवरिया। छोटा-परिवार, सुखी-परिवार की अवधारणा अब शहर से निकल कर गांवों तक पहुंच गई है। घर संभालने वाली महिलाएं ही परिवार नियोजन की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। पुरुष इस मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग भी अब महिलाओं के भरोसे ही परिवार नियोजन चला रहा है। पिछले सात माह में 20 पुरुषों ने नसबंदी कराई जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा 852 रहा ।
जिला परिवार नियोजन विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह बताया पुरुष नसबंदी की अपेक्षा महिला नसबंदी की संख्या कई गुना अधिक है। इसको देखते हुए स्वास्थ्य विभाग भी महिलाओं को ही प्रोत्साहित कर परिवार नियोजन अभियान संचालित कर रहा है। हर नवविवाहिता को परिवार नियोजन की जानकारी दी जा रही है। आशा कार्यकर्ता इनका पंजीकरण करती हैं। विवाह के बाद पहली संतान, दूसरी संतान और नसबंदी के उपायों की जानकारी देती हैं। उन्होंने बताया पुरुषों में नसबंदी को लेकर जागरुकता नहीं है। परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी एक फीसदी भी नहीं है। पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि भी अधिक दी जाती है लेकिन उसके बावजूद पुरुष इस मामले में उदासीन हैं। पिछले सात माह में 20 पुरुषों ने नसबंदी कराई जबकि इस दरम्यान 852 महिलाओं ने नसबंदी कराई। वहीँ 2217 पीपीआईसीडी, 6743 आईयूसीडी लगाया गया है।

अस्थायी उपायों में भी महिलाएं आगे

परिवार नियोजन के तरीकों को इस्तेमाल करने में भी पुरुष महिलाओं से बहुत पीछे हैं। महिला अस्पताल के आंकड़े बताते हैं अस्पताल आने वाली हर 10 में से दो महिलाएं परिवार नियोजन के तरीके अपनाती हैं लेकिन उनके पति ऐसा नहीं करते।

मिलती है प्रोत्साहन राशि

डीसीपीएम राजेश गुप्ता ने बताया परिवार नियोजन के लिए महिला नसबंदी पर 2000 तो पुरुष नसबंदी पर शासन की ओर से 3000 रुपये की प्रोत्साहन राशि भी मिलती है। वहीँ पुरुषों को नसबंदी के लिए समझा बुझाकर अस्पताल लेकर आने वाली आशा कार्यकर्ता को स्वास्थ्य विभाग की ओर से 400 की धनराशि दी जाती है।

Related posts