‘ बुद्ध की धरती पर कविता ‘ कार्यक्रम में कविता संग्रह ‘ माटी पानी’ और ‘ कविता के दुनिया के अ -नागरिक ‘ का लोकार्पण, कविता पाठ और बातचीत
कुशीनगर। रविवार की शाम 4 बजे स्थानीय होटल रॉयल रेजीडेंसी में ‘बुद्ध की धरती पर कविता’ कार्यक्रम में बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर सदानंद शाही के कविता संग्रह ‘ माटी पानी’ और डॉ भानु प्रताप द्वारा लिखित पुस्तक ‘ कविता के दुनिया के अ-नागरिक ‘ का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर प्रो सदानंद शाही, वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव और कुशीनगर के पत्रकार एवं कवि दिनेश तिवारी ने कविता पाठ भी किया।
दोनों पुस्तकों का लोकार्पण प्रो रोहिणी अग्रवाल, प्रो सुधा सिंह, प्रो राजेश मल्ल, अलोचक कपिल देव , चर्चित युवा कवि अदनान कफील दरवेश, स्वप्निल श्रीवास्तव ने किया।
वक्ताओं ने सदानन्द शाही के कविता संग्रह पर बातचीत भी की। कवि अदनान कफील दरवेश ने संग्रह की कविता ‘ भटनी जंक्शन’ को पढ़ते हुए कहा कि कविता का काम ठहरे हुए पानी में हलचल पैदा करना है। शाही जी की कविताओं में जीवन से छूट रहे संदर्भ बड़ी मानवीयता के साथ आते हैं।
प्रो सुधा सिंह ने कहा कि सदानंद शाही आधुनिक भाव बोध के कवि हैं। उनकी कविताओं में बहुत सारे सवाल शामिल हैं। वह कविता में खुद को खराद पर चढ़ाते हैं। भाषा से जो छूट गया है, वह उस पर भी निगाह रखते हैं। वे कविता में समानता, मित्रता, बंधुत्व की तलाश कर रहे हैं। उनकी कविताओं में पुरुष पक्ष का अतिक्रमण है।
कथा अलोचलक प्रो रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि सदानंद की कविताओं में महीन पर्यवेक्षण है। वे जानी पहचनी चीजों को बहुत गहराई से देखते हैं। प्रो अग्रवाल ने स्त्री विषयक कविताओं को नए ढंग की कविता बताते हुए कहा कि इसमें स्त्री के आनंद को जानने की कोशिश की गई है। स्त्री के आनंद को जानना सचमुच में मनुष्य को जानना है।
अलोचक कपिल देव ने कहा कि जो अनुभूति कविता में व्यक्त हो सकती है वह किसी दूसरी विधा में नहीं व्यक्त हो सकती है। उन्होंने कहा कि कविता वह नहीं जो व्यख्याता को मुश्किल में डाल दें । कविता वह है जो हमको अनुभूति और आनंद में ले जाती है। कपिलदेव ने कहा कि लंबे समय से कविता नैरेटिव पर आधारित रही है। शाही जी की कविता हमें नैरेटिव से बाहर ले जाती है। उन्होंने अपने कवि को स्वाधीन रखा है।
प्रो राजेश मल्ल ने सदानंद शाही की 36 वर्ष पुरानी दो कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में बर्फ की ठंड जैसी ताकत है। उनकी हाल की कविताएं धारदार व्यंग्य की तरफ गयी है।
प्रो सदानन्द शाही ने कहा कि आज की दुनिया को बुद्ध की करुणा की जरूरत है। मैं अपने जीवन और रचनाओं में बुद्ध से प्रेरित होता हूँ। शाही ने कविता संग्रह ‘ माटी पानी ‘ से ‘ राम रावण की नवकी लड़ाई ‘ कविता का पाठ किया।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि सदानंद शाही की कविताओं ने कई अवधारणा को तोड़ा है। वे जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं और नामालूम समझी समझे जाने वाली चीजों को असाधारण तरीके से प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने कहा कि लोकजीवन में जो परिवर्तन हो रहा है वह हमारी कविताओं में दर्ज होना चाहिए । शाही की कविता यह कार्य कर रही हैं। उनकी कविताओं में बौद्धिकता नहीं हैं। ‘ पनडब्बा ‘ कविता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्मृति के बिना जीवन में कुछ नहीं हो सकता है। कविता के केंद्र में जीवन और उसके सुख दुख व संघर्ष है।
कवि केदारनाथ सिंह और देवेंद्र बंगाली को याद करते हुए उन्होंने कहा कि नागर संवेदना बहुत सीमित है। कविता में रवानी ग्रामीण संवेदना से आती है।
कार्यक्रम का संचालन अनूप श्री विजयनी और मनोज कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार संध्या सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी, सूर्यप्रकाश राय, गोपाल गुप्ता, अनिल त्रिपाठी, राकेश पांडेय, आरपी सिंह, राधे गोविंद शाही, बृजेश गोविंद राव, मनीषा शाही, रंजना, विश्वमौलि, अभिषेक, डॉ संदीप, डॉ रामनरेश आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम के आखिर में कवि दिनेश तिवारी ने दो भोजपुरी गीत ‘खिस्सा कहि का बटईले के/गतिये बटा गइल/भाई बटईलें का भईल/ मइये बटा गइल ‘ और
‘ टेढ़का त टेढ़ रही, सोझवा ह हताइल बा/जंगले के अंगूठा ह, दक्षिना में कटाइल बा ‘ सुनाई।