ग़ालिब की जयंती पर आकाशवाणी गोरखपुर में मुशायरा
गोरखपुर. मिर्जा असद उल्लाह खां ग़ालिब की जयंती के अवसर पर आज आकाशवाणी गोरखपुर के स्टूडियो में मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें उर्दू अदब के नामचीन शायरों ने अपना अपना कलाम पेश किया।
मुशायरे के आरंभ में आकाशवाणी गोरखपुर की कार्यक्रम प्रमुख डॉ अनामिका श्रीवास्तव का संदेश मोहम्मद फर्रूख़ जमाल ने पढ़कर सुनाया। कार्यक्रम अधिकारी विनय कुमार , कार्यक्रम निष्पादक आलोक कुमार , मनोज कुमार यादव और मनीष आदि ने आए हुए शायरों का स्वागत किया ।
अंतर्राष्ट्रीय शायर डॉ कलीम कै़सर की उपस्थिति ने मुशायरे को चार चांद लगाया। मुशायरे की सदारत वरिष्ठ शायर जालिब नोमानी ने किया जबकि संचालन का दायित्व काज़ी अब्दुर्रहमान ने निभाया ।
कार्यक्रम में अब्दुल्लाह अंसारी ने कहा –
जो देखने में फरिश्ता दिखाई देता है
गली-गली वह भटकता दिखाई देता है
डॉक्टर जावेद कमाल-
हर तरफ चर्चे थे तेरे नाम के
सुन रहे थे लोग सब दिल थाम के
सैयद आसिम रऊफ-
ना परिंदों की चहक हो, ना बच्चों का गुल
शहर में अम्न व अमां हो तो ग़ज़ल होती है
अब्दुस सलाम, सलाम फैज़ी-
पांव जब थक के बैठ जाते हैं
तब वहां से दिमाग चलता है
मोहम्मद अनवर ज़्या –
नित नई ईजाद से दुनिया में रौनक़ है मगर
एक वहशत सी भी इंसान पर है तारी इन दिनों
जालिब नोमानी-
गिर ना जाए हवा से ख़ेमा ए गुल
पास हर दम रहा करे कोई
मैकश आज़मी-
अपने किरदार पर जो लोग यकी़न रखते हैं
टूटी दस्तार के पीछे भी नहीं भागा करते
डॉ कलीम क़ैसर-
तुझ में जो कुछ भी है रंगों की इनायत ही तो है
खु़द को तू दूधिया धानी से अलग करके देख
डॉ ज़ैद कैमूरी-
अगर हम बहरे सितमगर से गुजर जायेंगे
प्यार बनके हर इक दिल में उतर जाएंगे
क़ाज़ी अब्दुर्रहमान-
छत जब हमारी एक दूसरे से मिलती है
तो पनप रही है दरमियां अदावतें कैसी
मोहम्मद फर्रुख़ जमाल –
जैसे दीवार हो एक दूसरी दीवार के साथ
ऐसा ही एक ताल्लुक़ है मेरा यार के साथ
उसने देखा था मुझे इतनी अक़ीदत से कि मैं
चल पड़ा उठके मोहब्बत से ख़रीदार के साथ
मुशायरा सुनने के लिए वरिष्ठ पत्रकार कामिल ख़ान , ऐहतेशाम अहमद, शायर दिलशाद गोरखपुरी समेत काफी लोग उपस्थित रहे ।