अभी कुछ दिन पहले ही हमने देखा कि एक देश के राजतंत्रवादी सुल्तान की मौत पर देशभर में राजकीय शोक घोषित कर दिया गया किंतु आज जब प्रदेश भर में किसानों- मजदूरों, छात्रों -नौजवानों, छोटे व्यापारियों एवं ठेका कर्मचारियों, प्राइवेट शिक्षकों की आहें कराहें हर तरफ सुनाई दे रही हैं, सभी नगर पंचायतों एवं जिला मुख्यालयों पर उनकी बर्बादी का महोत्सव मनाया जा रहा है।
परजीवी अमीरजादों के लिए जनता के खर्चे पर चलने वाले इन महोत्सव का क्या औचित्य है ? ओमान के खानदानी सुल्तान के लिए देश का झंडा झुकाने वाली यह सरकार अपनी ही जनता की बर्बादी पर इतना उत्साहित होकर जश्न क्यों मना रही है ?
जो बड़बोली सरकार समान एवं मुफ्त शिक्षा चिकित्सा और समान काम का समान वेतन देने एवं सबको सुरक्षित रोजगार तथा न्यूनतम आय सुनिश्चित करने के प्राथमिक जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पाने में भी अक्षम है। जो लगातार धारा 144 का दुरुपयोग करते हुए पांच नागरिकों को एक साथ सार्वजनिक स्थलों पर मिलने- जुलने पर भी प्रतिबंध लगाए रह रही है। उसे कुछ एजेंसियों को सरकारी धन से लाभ पहुंचाने एवं भारी कमीशन खोरी के इतने बड़े आयोजन का अधिकार नहीं दिया जा सकता।
जब देवरिया की चीनी मिलों को बंद कर दिया गया है। खेती किसानी एवं फैक्ट्रियों की बर्बादी का जश्न देवरिया चीनी मिल के मैदान में ही मनाया जा रहा है। बैतालपुर, गौरीबाजार, भटनी, देवरिया किसी भी मिल को अब तक चालू नहीं किया गया और यह सरकार अपने वादाखिलाफी की जमीन पर लूट और कमीशन खोरी मुनाफाखोरी का जश्न मना रही है जो सर्वथा निंदनीय है।
किसान नेता शिवाजी राय इस महोत्सव के बारे में सवाल उठाते हुए कहते हैं कि यहां बड़े पैमाने पर जनता के पैसे की लूट और बर्बादी के अलावा बड़ी वसूली का तंत्र भी विकसित हुआ है। उन्होंने कहा कि यह वही लोग हैं जो सैफई महोत्सव का मजाक उड़ाया करते थे। वास्तविकता यह है कि गोरखपुर सहित सभी महोत्सव पूरी तरह असफल रहे हैं इनमें आम लोगों की भागीदारी नहीं के बराबर है।
आज जबकि पूरी जनता सरकार द्वारा प्रायोजित तनाव में जी रही है। गरीबी के सापेक्ष अमीरी बेतहाशा बढ़ती जा रही है।जब खुशहाली का स्तर लगातार गिरता गया है और विलुप्त होने के कगार पर है। भारत खुशहाली के वैश्विक मानदंड” हैपिनेश इंडेक्स “में लगातार नीचे गिरते हुए 140 वें पायदान पर है। लोकतंत्र और न्याय की स्थिति यह है कि न्याय पंचायतों को योगी सरकार द्वारा खत्म किया जा चुका है, पंचायतें पूरी तरह अधिकार विहीन और पंगु हो चुकी हैं ।
दरोगा राज और कलेक्टर राज कायम है। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं और परंपराओं की अनदेखी की गई है और बुद्धिजीवियों को खलनायक बना दिया गया है। ऐसे में यह सरकारी महोत्सव दानवी अट्ठहास के सिवा और क्या है?
आज जब 6 से 23 महीने के बच्चों में से 90 फ़ीसदी को “न्यूनतम स्वीकार्य आहार” यानी कम से कम उतना खान-पान भी नहीं मिलता, जितना उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए निहायत जरूरी है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 के आंकड़ों से जाहिर है कि इन नवजात बच्चों में से 90 फ़ीसदी के अभिभावकों की माली हालत इतनी खराब है कि वे अपने बच्चों को ढंग से खिला पिला भी नहीं सकते। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आर्थिक समृद्धि के दायरे से देश के 90 फ़ीसदी परिवार बाहर हैं।
आज जब 63% युवा बेरोजगारी की चपेट में हैं तब यह महोत्सव दरअसल “नीरोवादी राजसत्ता” के उत्सव ही हैं। ऐसे में इन आयोजनों के प्रति लोगों की वितृष्णा लाजमी है जो खाली पड़े पांडाल और कुर्सियों की शक्ल में दिखाई देता रह रहा है।
यह विडंबना ही है कि देवरिया महोत्सव का उद्घाटन जिले के ही निवासी और प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने किया जिनके प्रताप से अब तक देवरिया की एक भी चीनी मिल नहीं चल सकी है। जिनकी असीम अनुकंपा से बाबा राघव दास कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय की 45 एकड़ जमीन को लूटने का प्रयास किया गया और उसे बंद करने की साजिश रची रची गई जिसे देवरिया के छात्रों नौजवानों नागरिकों एवं संघर्षशील सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समय पर प्रभावी आंदोलन करके नाकाम कर दिया। शर्मनाक है कि उन्होंने बंद पड़े चीनी मिल देवरिया की जमीन पर महोत्सव के माध्यम से अपना बड़ा व्यवसायिक निवेश करते हुए उसका उद्घाटन किया है।
मेले के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने अपने शीर्ष नेताओं के तर्ज पर अनेक प्रकार के झूठ को स्थापित किया। उन्होंने लघु उद्यमिता के विकास के झूठ के साथ ही मंडल स्तर पर( जिले स्तर पर भी नहीं) ‘अटल आवासीय विद्यालय योजना’ जिसमें 1000 बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है का आश्वासन दिया। जबकि उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकार के रूप में सबको समान, पूरी तरह मुफ्त एवं मातृभाषा में और पड़ोसी स्कूल की व्यवस्था पर आधारित सभी बच्चों को शिक्षा देने का इंतजाम करने की व्यवस्था करनी चाहिए।
उन्होंने अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं की तरह ही झूठ का वितान फैलाते हुए उत्तर प्रदेश को सभी सरकारी योजनाओं को लागू करने में पहले या दूसरे नंबर पर बताया ,जबकि विदित है कि उत्तर प्रदेश शिक्षा ,चिकित्सा, पंचायती व्यवस्था, मानवाधिकार ,रोजगार ,सुरक्षा सभी स्तरों पर देश के दूसरे प्रदेशों में सबसे निचले पायदान पर है । यहां तक कि संविधान की मूल भावना और स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियादी अपील “आजादी” का नारा लगाने को भी अपराध घोषित करने की घोषणा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा की जा चुकी है।
सरकारी महोत्सव आज सभी नगरों में हो रहे हैं और परंपरा से लगने वाले आमजन के मेले ठेले उसके रोजी रोजगार के तरह ही खत्म होने के कगार पर हैं। ऐसे में सवाल उठता है की यह कैसी सरकार है जो ओमान के सुल्तान की मौत पर दुखी होकर अपने झंडे झुका लेती है और महोत्सव स्थगित कर देती है किन अपने देश की जनता की बदहाली का महोत्सव मनाने लगती है।