– पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया में हम स्वस्थ जल से हो रहे हैं वंचित
‘स्वच्छ पेयजल- चुनौतियां एवं समाधान अतीत से वर्तमान तक’ विषय पर परिचर्चा
गोरखपुर। ‘ पानी का शुद्ध होना ही नहीं बल्कि स्वस्थ होना भी जरूरी है। शुद्धता से आशय यह है कि उसमें जैविक और रसायनिक अशुद्धि न हो। इसी तरह स्वस्थ का आशय है उसमें तमाम तरह के मिनरल्स मौजूद रहें। ये मिनरल्स हमारे शरीर और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। पानी की शुद्धता के लिए बाजार में कई तरह के प्यूरीफायर हैं। आरओ भी उनमें एक है जिसका खासा चलन है।
आरओ के प्रयोग से हम पानी को डिस्टिल्ड वाटर (आसुत जल) के रूप में पी रहे हैं। यानि आरओ से अशुद्धियां छानने की प्रक्रिया में तमाम मिनरल्स भी छन जा रहे हैं। मतलब हम पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया में स्वस्थ जल से ही वंचित हो रहे हैं। यही नहीं इस प्रक्रिया में 70 फीसदी तक पानी भी बर्बाद हो रहा है। ‘
यह बातें व निष्कर्ष शोध एवं विशेषज्ञ विद्वानों की एक परिचर्चा में निकल कर आयीं। बीते 27 फरवरी को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक ) के गोरखपुर चैप्टर द्वारा ‘स्वच्छ पेयजल- चुनौतियां एवं समाधान अतीत से वर्तमान तक’ विषय पर परिचर्चा हुई जिसमें सभी तक स्वच्छ व स्वस्थ पेयजल की पहुंच को लेकर गंभीर और विस्तृत चर्चा हुई।
अपने परिवेशीय अनुकूलन के इतर उसका अतिक्रमण। प्राकृतिक संसाधनों का अप्राकृतिक दोहन। फैक्ट्रियों और औद्योगिक इकाइयों से निकले रसायन व कचरे। सीवर व गंदे नालियों का सीधे जलस्रोतों से संपर्क। अराजक विस्तार लेती रिहायशी बस्तियां व ऊंची इमारतों का निर्माण। ये सब और अन्य आदि तमाम कारकों की वजह से परंपरागत व भूमिगत जलस्रोतों के संरक्षण व संवर्धन में भयानक लापरवाही बरती गई है।
इसी का नतीजा रहा कि न सिर्फ हमारे परंपरागत व भूमिगत जलस्रोत सिकुड़े बल्कि प्रकृति प्रदत्त निर्मल जल मल व मैला ढोने का वाहक बन गए। फिर यही मैला व मलजनित जल तमाम बीमारियों के वाहक बन रहे हैं।
परिचर्चा में शामिल डा. बीके श्रीवास्तव इसी क्रम में कहते हैं कि जल तो निर्मल होता है। उसमें मल कहां, मैल कहां? फिर हम क्यों कहते हैं कि तमाम बीमारियां जलजनित हैं? यह सही नहीं है। जल न सिर्फ़ शुद्ध है, स्वस्थ भी है। इससे कोई बीमारी नहीं होती। अपने प्रकृति में पानी का यही स्वरूप है।
वह बताते हैं कि पानी में दो तरह की अशुद्धियां मिलती हैं- जैविक और रासायनिक। जैविक अशुद्धि ही इस क्षेत्र की बड़ी समस्या है। इस अशुद्धि में मानव मल का बड़ा रोल होता है। एक मिग्रा. मानव मल में 10 लाख तक वायरस/बैक्टीरिया हो सकते हैं। यही बहुत सारी बीमारियों के वाहक होते हैं। उनका कहना है कि जैविक अशुद्धि को रोकने में हमारी धरती या मिट्टी ही सक्षम है।
वह बताते हैं कि गंदगी, जलजमाव व शौचालय के गड्ढों के प्रति सामान्य सावधानी बरतकर एक सुरक्षित गहराई के हैंडपंप से इस अशुद्धि से बचा जा सकता है। इसके लिए 80 से 100 फीट की गहराई सुरक्षित है। इससे आगे की गहराई में वह आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे खतरनाक रसायनिक अशुद्धियों के मिलने की संभावना जताते हैं। वह यह भी बताते हैं कि बाजार के प्यूरीफायर रसायनिक अशुद्धियों को छानने में सक्षम नहीं है।
डा. बीके श्रीवास्तव ने जल अशुद्धि को जांचने का सुलभ एवं सस्ता उपाय भी बताया। बाजार में उपलब्ध एचटूएस बोतल लेकर उसमें पानी को 24 घंटे के लिए रखें। यदि यह पानी काला पड़ जाए तो उसमें फीटेल (मल) अशुद्धि है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पानी का पीला पड़ना कोई अशुद्धि नहीं है। यह पानी में आयरन की अधिकता के कारण है, जिससे कोई नुकसान नहीं होता।
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्याल में असिस्टेंट प्रोफेसर अभिषेक सिंह ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल को लेकर अपने प्रोजेक्ट वर्क के अनुभवों को साझा किया। उन्होंने इन क्षेत्रों में पानी की अशुद्धि व जल संरक्षण के लिए सस्ते और पारंपरिक उपायों पर जोर दिया।
यहीं के शोध छात्र कप्तान सिंह ने गोरखपुर व पूर्वी यूपी जिलों के भूमिगत जल में खतरनाक आर्सेनिक होने की संभावना पर बल दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि इसकी जांच प्रक्रिया बेहद जटिल और खर्चीला होने से निर्णायक रूप में कुछ कहना मुश्किल है।
वाटर रिसर्च पत्रिका में छपे हालिया एक अध्ययन के मुताबिक भी इस बात की तस्दीक होती है। जिसमें कहा गया है कि यूपी के 40 जिलों में करीब ढाई करोड़ ग्रामीण आबादी भूजल के खतरनाक आर्सेनिक प्रभाव की चपेट में हैं। जाहिर है ऐसी किसी भी परिस्थिति के लिए अभी भी पर्याप्त अध्ययन व अनुसंधान की जरूरत है।
बहरहाल परिचर्चा में विशेषज्ञ विद्वानों ने इस बात पर संतोष जाहिर किया कि पूर्वांचल खासकर गोरखपुर का तराई क्षेत्र औसत वर्षा और अपने भूमिगत जलस्रोत के मामले में समृद्ध है। यहां जल शुद्धिकरण के मामले में सामान्य व पारंपरिक सावधानियां बरतते हुए भमिगत जल को सीधे पेय जल के उपयोग में लिया जा सकता है। जल शुद्धिकरण के बाजारू उपकरण न सिर्फ खर्चीले हैं बल्कि स्वास्थ्य व पानी की बर्बादी के लिहाज से नुकसानदायक भी हैं।
परिचर्चा में गोरखपुर इनायरमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डा. शीराज वजीह ने जल शुद्धिकरण में आरओ के चलन को फाइनेंशियल लाबी की एक खास किस्म के मार्केटिंग का हिस्सा बताया। जो कि जल शुद्धि या स्वास्थ्य के बजाए उनके आर्थिक व व्यावसायिक हित के ज्यादा करीब है। उन्होंने कहा कि लोगों में सामान्य सी मनसिकता बन गई है कि आरओ का नहीं लगना पिछड़ापन है, या गंदा पानी पीना है। जबकि इसके फायदे कम नुकसान ज्यादा है।
उन्होंने बताया कि नगरीय क्षेत्र के केंद्रीकृत सप्लाई व्यवस्था में तीन तरीके से पानी में अशुद्धियां होने की संभावना होती हैं। मेन स्रोत के स्तर पर, सप्लाई के स्तर पर और घरों में स्टोरेज के स्तर पर। जिन घरों में अंडरग्राउंड वाटर इस्तेमाल होता है वहां अशुद्धि की संभावना कम होती है। ऐसे में वहां आरओ के औचित्य का कोई मतलब नहीं होता।
जलकल के महाप्रबंधक एसपी श्रीवास्तव ने बताया कि नगरीय क्षेत्र में 90 फीसदी से अधिक कनेक्शन नाली से होकर जाता है, यही अशुद्धि का मुख्य कारण है। इसके अलावा लीकेज भी अशुद्धि का एक कारण है। उन्होंने बताया कि पाइप में बाल समान लीकेज भी नालियों से गंदा पानी खींच सकता है। इससे दो-चार कनेक्शन ही नहीं पूरी सप्लाई में गंदगी पहुंच जाती है। इसके लिए सभी उपभोक्ताओं में इस तरह की जागरूकता हो कि वह पानी के कनेक्शन नाली से ऊपर उठा ले तो इससे बचा जा सकता है।
उन्होंने आरओ के उपयोग में 70 फीसदी तक पानी के बर्बादी को सही बताया। साथ ही कहा कि इसका इस्तेमाल करने ना करने और लोगों को जागरूक करने में काफी मेहनत करना पड़ेगा। लेकिन इससे पानी की बर्बादी को गार्डेनिंग आदि के माध्यम से बचाया जा सकता है। उन्होंन घरों में वाटर हार्वेस्टिंग का सिस्टम होना जरूरी बताया। परिचर्चा में अन्य विशषज्ञों ने भी घरों में पानी की बर्बादी और उसके संरक्षण को लेकर विभिन्न तरीकों पर चर्चा की।
आर्किटेक्ट आशीष श्रीवास्तव ने नगरीय क्षेत्र में ऊंची इमारतो के निर्माण में भूजल दोहन की समस्या और इसके रीचार्ज के तरीकों पर चर्चा की।। इसके लिये उन्होंने बड़ी इमारतों में जल भंडारण की आवश्यकता पर जोर दिया।
परिचर्चा में नगर आयुक्त अंजनी कुमार सिंह और एडीएम फाइनेंस राजेश कुमार सिंह ने भी भागीदारी की. राजेश कुमार सिंह ने घरों में पानी के अत्यधिक इस्तेमाल की चर्चा की और इसे कम करने के उपायों पर अमल करने का आह्वान किया.
परिचर्चा में निवेदिता मणि, के के सिंह, अर्चना, रविन्द्र मोहन, एजाज रिजवी, मनोज कुमार सिंह, सुमन सिन्हा, श्रवण कुमार आदि उपस्थित थे.
इंटेक के संयोजक महावीर कंदोई ने हाल में एनजीटी द्वारा आरओ के प्रयोग के बारे में दिए गए फैसले से अवगत कराया. सह संयोजक अचिन्त्य लाहिड़ी ने परिचर्चा की जरूरत को रेखांकित किया. परिचर्चा का संचालन मुमताज खान ने किया।