गोरखपुर। माह-ए-रमजान में चंद दिन बचे हुए हैं। लॉकडाउन जारी है जो 3 मई तक चलेगा। रमजान व ईद में चाव से खायी जाने वाली सेवई का उत्पादन ठप है। कारखाने व दुकानें बंद है। रमजान के लिए सेवई का नया माल तैयार नहीं हो सका है। कारखानों व दुकानदारों के पास रखा हुआ सेवई की स्टाक मांग के अनुरुप कम है।
लॉकडाउन तक सेवई कारखाना खुलने की उम्मीद कम है। लॉकडाउन के बाद अगर कारखाना खुला तो मांग के हिसाब से सेवई का उत्पादन होना बहुत मुश्किल है जिस वजह से रमजान व ईद में सेवई की किल्लत रहेगी। जिसका असर आस-पास के जिलो पर भी होगा। यहां से कई जिलों में सेवई की सप्लाई होती है। किल्लत की वजह से रेट भी बढ़ेगा। वहीं अगर लॉकडाउन और आगे खिसकता है तो रमजान व ईद में सेवई की मिठास के लिए शहर वाले तरस जायेंगे।
शहर में मौजूद कारखानों पर तो बारह महीने उत्पादन होता है लेकिन छोटे दुकानदार शब-ए-बरात से ही सेवई तैयार करने में जुट जाते हैं। इस बार कारोबार 3 मई तक चालू होने के आसार कम है।
सेवई की डिमांड अमूमन रमजान, ईद व बकरीद में ज्यादा रहती है। सेवई कारोबारी रमजान, ईद व बकरीद का पूरे साल इंतजार करते हैं। सेवई मशीन चलाने वाले मजदूरों की कमायी भी हो जाती है। अबकी तो मजदूर मिलना भी मुश्किल है। शब-ए-बरात के बाद दिन रात सेवई का उत्पादन होता है। जो अबकी बंद है।
रमजान व ईद में एक अनुमान के मुताबिक 100 टन से अधिक सेवई बनती है। यहीं से सेवई बन कर गोरखपुर-बस्ती मंडल के कई जिलों में सप्लाई होती है। कारोबार ठप होने से आसपास के जिले वाले सेवई का स्वाद मिल नहीं पायेगा।
शहर में माधोपुर, लालडिग्गी, मिर्जापुर, जटेपुर, गोरखनाथ, इलाहीबाग, तुर्कमानपुर, मियां बाजार आदि जगहों पर छोटे व बड़े कारखाने हैं जबकि सेवई की फुटकर दुकान करीब 30 हैं। जो जामा मस्जिद उर्दू बाजार, नखास, गोरखनाथ, रसूलपुर, जाफरा बाजार क्षेत्रों में है। शहर में सेवई के 25-30 बड़े कारोबारी है जिसमें पप्पू, मुन्ना, बादशाह, फैयाज अहमद, बब्लू, असलम, ताज मोहम्मद उर्फ मो. कैश, गोलू, शेरु, मोनी आदि प्रमुख हैं।
कई वेरायटी की सेवईयां मिलती हैं
मुगल शासन में ईद पर सेवई बनाने का रिवाज था। यह रिवाज आज भी जारी है। ईद पर सेवई मुख्य मिठाई मानी जाती है। ईद सेवई के बगैर अधूरी मानी जाती है। तोहफे के रूप में भी रिश्तेदारों व पास-पड़ोस में भी सेवई भेजी जाती है। गरीबों में भी सेवई बांटी जाती है ताकि वह भी ईद की खुशी में शामिल हो सकें। ईद में सेवई का अपना महत्व होता है। रमजान में पूरे एक माह सेवईयों की बिक्री होती है।
हिन्दुस्तान में तो ईद सेवईयों वाली या मीठी ईद के नाम से मशहूर है। माह-ए-रमजान के मौके पर सेवईयों की दुकानें बाजार में गुलजार नज़र आती हैं। सहरी व इफ्तार के वक्त भी सेवईयां चाव से खायी जाती हैं। रोजे में खजूर की जहां मांग हो रहती है। वहीं सेवईयां भी इफ्तार व सहरी के वक्त रोजेदार इस्तेमाल करते हैं। जब सेवईयों का बाजार गुलजार रहता है तब मोटी, बारीक, लच्छेदार के साथ कई वेरायटी की सेवईयां मिलती हैं, जो क्वालिटी और अपने नाम के मुताबिक डिमांड में रहती हैं। ईद में बनारसी किमामी सेवई की काफी डिमांड रहती है। जो अबकी पहुंच से दूर रह सकती है। शरबती, किमामी, लच्छेदार, दूध वाली, फेनी, भुनी किमामी, भुनी शर्बती, देशी घी की फेनी, बनारसी लच्छा और बनारसी किमामी सेवई बाजार में खूब बिकती है।
-सेवई कारोबार का हब बनता जा रहा गोरखपुर
उर्दू बाजार स्थित ताज सेवई सेंटर के ताज मोहम्मद उर्फ मो. कैश ने बताया कि बताते हैं कि गोरखपुर धीरे-धीरे सेवई कारोबार का हब बनता जा रहा है। महानगर में सेवई का कारोबार कुटीर उद्योग का रुप ले चुका है। वजह साफ है कि इस रोजागार में घर की महिलाएं व बच्चो के सहयोग मिल जाता है। ईद के मौके भी लोगों को वक्ती रोजगार मिल जाता है। जिससे ठीक-ठाक आमदनी हो जाती है। महानगर में माधोपुर, तुर्कमानपुर, गोरखनाथ, रसूलपुर, मिर्जापुर, हुमायूंपुर आदि क्षेत्रों में सेवईयों का कारोबार जोर-शोर से होता है।
ईद में सबसे ज्यादा डिमांड में बनारसी किमामी सेवई रहती है, जोकि हाथों-हाथ बिक जाती है। मो. आरिफ कहते हैं कि पूरे रमजान में दूध के साथ खायी जाने वाली सेवई की भी डिमांड रहती है। ईद और बकरीद के मौके पर सेवईयों के विक्रेता लोगों की सुविधा के लिए जगह-जगह दुकान लगाते हैं।
-कभी ऐसे तैयार हुआ करती थी सेवई अब ऐसे बनती है
ताज मोहम्मद उर्फ मो. कैश बताते हैं कि सेवई बनाना एक कला है। सेवई बनाने में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है। मैदा इसका कच्चा माल है। पहले मैदे को बारिक चलनी से छाना लिया जाता है। कूड़ा निकाल लिया जाता है। उसके बाद मैदे में पानी मिलाया जाता है और ऑटोमैटिक मशीन के जरिये सेवई तैयार की जाती है। सेवई को धूप में सुखाया जाता है। धूप में सूखने के बाद बाजार में बिक्रती के लिए भेजा जाता है। सेवई तैयार करने में मैदा, डाई मोटा, रिफाइंड आयल, डालडा आदि का इस्तेमाल होता है। अबकी बार सेवई के बनाने व आपूर्ति में दिक्कत आयेगी। सेवई की किल्लत रहेगी। जिस वजह से रेट बढ़ जायेगा।
मो. कैश बताते हैं कि सेवई कई जमाने से शहर में बन रही है। जमाने के हिसाब से तरीका भले ही बदल गया हो लेकिन जायका उसी तरह आज भी बरकरार है। सेवई पहले हाथों से बनाई जाती थी। सेवई मैदे से तैयार होती थीं। जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया मशीनों के जरिये सेवई तैयार की जाने लगी। पहले सेवई को तैयार करने में दिक्कत होती थी। मशक्कत उठानी पड़ती थी। मैदा भी कोटे पर मिलता था। इतने आसानी से मैदा नहीं मिलता था। एक मशीन को चलाने के लिए कोल्हू बैल की तरह चार-चार आदमी बल्ली के सहारे घूम कर सेवई तैयार करते थे। मैदे को गर्म पानी के साथ मिक्स किया जाता था। उसके बाद मशीन के अन्दर डाला जाता है। मशीन में जो डाई होती थी वह भी लोहे के बड़े चादर की बनी होती थी। टाट बिछा कर धूप में सुखाया जाता था। तब जाकर सेवई तैयार होती थी।