खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है टिड्डियों का हमला

आनंद राय 

 

भारत मे मानसून से पहले लगभग हर वर्ष टिड्डी दल अफ्रीका-खाड़ी के देशों-ईरान-पाकिस्तान की तरफ से राजस्थान और गुजरात मे प्रवेश करते हैं.

टिड्डियाँ अनेक प्रकार की होती हैं लेकिन उनमें सबसे विनाशकारी रेगिस्तानी टिड्डी होती है जिसका नर गुलाबी रंग का और मादा पीले रंग की होती है.

भारत मे सबसे बड़ा टिड्डी हमला 1993 में हुआ था लेकिन इस वर्ष हुआ हमला अब तक का सबसे बड़ा और सबसे व्यापक हमला है.

आसमान में उड़ते इन टिड्डियों की संख्या करोड़ों में हो सकती है.

मध्यप्रदेश के उज्जैन और आगर मालवा जिलों के बीच एक टिड्डी दल लगभग 10 किमी लम्बा और 2 किमी चौड़ा दिखा था जो कि अगले दिन कई छोटे छोटे झुंडों में बंट कर यूपी और मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों की तरफ मुड़ गया था. ये झुंड एक दिन 13 किमी/घण्टा की रफ्तार से उड़ते हुए 150 से 200 किमी तक की दूरी नाप सकते हैं.

एक टिड्डी का औसत वजन 2 ग्राम के आसपास होता है और ये अपने वजन के बराबर भोजन करने की क्षमता रखती हैं.

इनका एक दल एक दिन में 35 हजार लोगों के द्वारा खाये जा सकने वाले भोजन के बराबर फसल चट कर सकता है.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरी दुनिया के मौसम में आये बदलाव के कारण इन टिड्डियों को अपने अनुकूल वातावरण मिलता जा रहा है और इनका फैलाव,संख्या व प्रसार बढ़ता ही जा रहा है.

एक मादा टिड्डी का जीवन चक्र 3 से 5 महीने का होता है और अपने जीवन काल मे ये कम से कम 3 बार अंडे देती है और एक बार मे 100 से 150 तक अंडे दे सकती है. अंडा देने के लिए मादा अपनी पूँछ को जमीन में घुसा देती है जिससे एक सुराख बन जाता है और उस सुराख में लगभग 6 इंच नीचे वो अंडे देकर निकलती है जिससे सुराख के मुंह पर सफेद पाउडर की तरह कुछ दिखने लगता है. अंडा देने के पश्चात ये 3 से 4 दिन उसी स्थान पर रुकती हैं. ऐसे सुराखों को देखते ही ट्रैक्टर, रोटावेटर या कल्टीवेटर से गहरी जुताई करके इनके अंडों को खत्म किया जा सकता है.

30 दिन में ये अंडे वयस्क हो जाते हैं और इनके शिशु भी अपने वजन के बराबर भोजन चट कर लेते हैं ,ये इतना दूरी उड़ कर इसलिए कवर कर लेते हैं क्योंकि ये अपने खाये हुए भोजन को लिक्विड रूप में बदल कर अपने शरीर मे स्टोर कर लेते हैं.

इनका दल शाम होते ही रुक जाता है और रातभर आराम करने के बाद सुबह होते ही ये पुनः उड़ान भरने लगते हैं और रास्ते मे आने वाली हर हरी चीज को ये सफाचट कर जाते हैं.

जनवरी 2019 में टिड्डियों का दल यमन और अरब से ईरान तक पहुंचा था जहां भारी बारिश हुई थी और पिछले साल लगभग हर महीने हुई बारिश इनको बढ़ाने में सहायक हुई.

सोमालिया, इथोपिया, केन्या(जहां इनका झुंड 20-25 वर्ग किमी तक देखा गया ) में कहर मचाने के बाद ,जून से दिसम्बर के बीच ये दल ईरान से पाकिस्तान होते हुए भारत मे प्रवेश किया और अनुकूल नम वातावरण और हरियाली की तलाश में ये दल भारत मे काफी अंदर तक घुसता चला जा रहा है और तबाही भी मचाता चला जा रहा है.एक अनुमान के मुताबिक अब तक ये दल 8 हजार करोड़ रुपये से भी ऊपर के फसलों का नुकसान कर चुका है.

ताजा जानकारी के अनुसार अगले दो तीन महीनों के भीतर इसके दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक छा जाने की पूरी पूरी संभावना है.

इसके रोकथाम के लिए तेज आवाज की ध्वनि और रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव ही अब तक खोजा जा सका है.  ये दोनों ही उपाय किसानों से अपनाने को कहा जा रहा है जो कि इनके बृहद झुंड को देखते हुए सामान्य किसान के सीमित संसाधनों से सम्भव ही नही है.

तेज ध्वनि करने से ये मरेंगे नही सिर्फ एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान चले जायेंगे. चूंकि इनका झुंड इतना बड़ा है कि तेजध्वनि भी इनके उपर बहुत ही सीमित असर डाल सकेगी.

अभी फिलहाल रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव ही एक मात्र कारगर उपाय नजर आता है जिससे इसको नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इनके झुंड को देखते हुए और किसानों के पास मौजूद स्प्रेयरों की सीमित क्षमता की वजह से केवल किसानों के भरोसे इसको नियंत्रित नही किया जा सकता.

इसके लिए तुंरन्त ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयरों और फायर बिग्रेड गाड़ियों की सहायता से जमीन पर और हेलीकॉप्टरों और ड्रोन से आसमान से इनके झुंड को लोकेट करके राज्यों और जिलों को आपस मे टीम भावना से तालमेल बैठाकर “वार लाइक सिचुएशन”समझते हुए युद्धस्तर पर पूरे उत्तर भारत मे दिन रात लगना होगा ,छिड़काव करना होगा. तभी इनके प्रकोप को कुछ कम किया जा सकेगा अन्यथा अब ये भारत की स्थायी समस्या बनने की ओर बढ़ चले हैं.

अगर अभी तुंरन्त युद्धस्तर पर इनको न रोका गया तो इनकी वजह से भारत की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ने की पूरी पूरी संभावना सुनिश्चित है.

(लेखक आनंद राय युवा किसान हैं. खेती-किसानी के अलावा सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखते हैं)