गोरखपुर। इंसेफेलाइटिस के संभावित मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने में छोटी-छोटी सात सावधानियों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है । अगर इन सावधानियों पर ध्यान दिया जाए तो मरीज को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया जा सकता है और वह स्वस्थ भी हो सकता है।
यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी का । उन्होंने बताया कि इस संबंध में 102 और 108 सेवा के 306 एंबुलेंसकर्मियों को स्वास्थ्य विभाग ने स्वयंसेवी संस्था पाथ के सहयोग से प्रशिक्षित किया है। यह प्रशिक्षण वेबिनार के जरिये करवाया गया है। इसमें संभावित इंसेफेलाइटिस मरीज के ट्रांसपोर्टेशन की सावधानियों के बारे में जानकारी दी गयी ।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि एसीएमओ डॉ. अरूण चौधरी और पाथ संस्था के प्रतिनिधि डॉ. राहुल कांबले ने एंबुलेंसकर्मियों को प्रशिक्षित किया है। प्रशिक्षण में उन्हें बताया गया है कि संभावित इंसेफेलाइटिस रोगी को एंबुलेंस में ले जाते समय बायें या दायें करवट लिटा कर ले जाएं। यदि रोगी के मुंह से झाग निकल रहा हो तो साफ कपड़े से उसका मुंह साफ करते रहें। यदि रोगी को झटके आ रहे हैं तो उसके दांतों के बीच साफ कपड़े का गोला बना कर मुंह में रखें जिससे जीभ न कटे। यदि रोगी बेहोशी के हालत में है तो उसे जगाने की कोशिश न करें और ऑक्सीजन लगा कर ले जायें। रोगी की आंखों पर पट्टी लगा कर तथा किसी अन्य ध्वनि यंत्र, म्यूजिक सिस्टम या मोबाइल फोन की रिंग टोन का उपयोग किये बिना ले जाएं। यदि रोगी पूरी तरह से होश में न हो तो डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी चीज मुंह से न दें। रोगी को हमेशा अच्छे रास्ते से ले जाएं ताकि उसे झटके न लगें।
उन्होंने बताया कि वेबिनार के आयोजन में स्वयंसेवी संस्था पाथ के जिला समन्वक राहुल और एंबुलेंस सेवा के जिला समन्वयक अजय उपाध्याय ने भी सहयोग किया। वेबिनार के दौरान ही एक एनीमेशन फिल्म ‘‘सुंदरपुर का कान्हा’’ दिखाई गयी जिसके जरिये एंबुलेंसकर्मियों को सरल भाषा में इंसेफेलाइटिस और इसके मरीजों के प्रति अपनाये जाने वाले बर्ताव के बारे में जानकारी दी गयी। एंबुलेंसकर्मियों को यह भी बताया गया है कि अति आवश्यक परिस्थिति में ही इंसेफेलाइटिस मरीज को ले जाते समय एंबुलेंस का सायरन बजाना है।
प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले एंबुलेंसकर्मी बृजेश कुमार और दीपक शर्मा ने बताया कि प्रशिक्षण में कई अहम जानकारियां दी गयी हैं जिनका इस्तेमाल फील्ड में किया जाएगा। एंबुलेंस में रखी जाने वाली जीवनरक्षक दवाइयों के बारे में खासतौर से जानकारी दी गयी।
दिमागी बुखार के संभावित लक्षण
• तेज बुखार एवं सिरदर्द
• सांस की गति व धड़कन का तेज चलना
• उल्टी होना
• शरीर का ढीलापन
• झटके आना
• बेहोशी की स्थिति या मानसिक अवस्था में बदलाव
बच्चे को तेज बुखार आए तो रखें ध्यान
• यदि बच्चे को तेज बुखार आ रहा है तो उसे पैरासिटामॉल के अलावा बिना चिकित्सक की सलाह के कोई दवा न दें।
• यदि तेज बुखार बना रहे तो सादे पानी से शरीर को पोछते रहें जब तक बुखार कम न हो। बच्चे को बायें या दायें करवट में ही लिटायें।
• यदि किसी बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आ रहे हों तो तुरंत गांव की आशा से संपर्क करना चाहिए ताकि वह तुरंत 108 या 102 एंबुलेंस को बुलाये और नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी को पूर्व सूचना दे सके।
दिमागी बुखार यानी इंसेफेलाइटिस को जानिये
यह ज्यादातर एक से 15 साल तक के बच्चों में होता है। यह बरसात के मौसम में खासतौर से होता है और प्रदेश में इसका प्रकोप जुलाई से नवम्बर के महीनों में ज्यादा होता है। यह धान के खेत में पैदा होने वाले मच्छर के काटने, जल पक्षी व सुअर के माध्यम से फैलने वाले विषाणुओं, संक्रमित एवं प्रदूषित पानी और गंदगी से तथा चूहों और घुन के काटने से होता है। इसका प्रसार छछूंदर के माध्यम से भी होता है। इस बीमारी के मरीज को समय से अस्पताल न पहुंचाया जाए तो वह दिव्यांग हो सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।