गोरखपुर। दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो प्रो. विनोद सिंह ने शिक्षकों को पत्र लिखकर आपसी मतभेद भुलकाकर एकजुट होने की अपील की है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि विश्वविद्यालय विषाक्त माहौल में गुजर रहा है। शिक्षकों की मर्यादा और गरिमा बचाना कठिन हो रहा है। ऐसे में जरूरी है कि हम एकजुट हों।
प्रो सिंह ने यह पत्र शुक्रवार को लिखा और शिक्षकों के व्हाट्सएप्प ग्रुप में शेयर किया। जल्द ही यह पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो गया। प्रो सिंह ने गोरखपुर न्यूज लाइन से बातचीत करते हुए पत्र लिखने की पुष्टि की।
इस पत्र प्रो सिंह ने कुलपति प्रो राजेश सिंह की एक समाचार पत्र में छपी टिप्पणी ‘ शिक्षक संघ का अस्तित्व नहीं है ‘ पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
पत्र में प्रो सिंह ने लिखा है कि कुलपति द्वारा समाचार पत्रों में दिए गए बयान कि शिक्षक संघ का अस्तित्व नहीं है,अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण एवं क्षुब्धकारी है। विश्वविद्यालय के अस्तित्व के साथ ही शिक्षक संघ भी अस्तित्व में आया। शिक्षक संघ की व्यवस्था विश्वविद्यालय परिनियम में है और अब तक शिक्षक संघ पंजीकृत भी हो चुका है। नई कार्यकारिणी का गठन होने तक शिक्षक संघ का अस्तित्व बना रहता है। कार्यकारिणी के भंग होने की अवस्था में शिक्षकों की आम सभा ही शिक्षक संघ के रूप में कार्य करती है। शिक्षकों की आम सभा में यह शक्ति निहित होती है कि वह अपना चुनाव अधिकारी नियुक्त कर नई कार्यकारिणी का गठन कर ले या एडहाॅक कार्यकारिणी का गठन कर ले। इस प्रकार शिक्षक संघ का अस्तित्व सदैव बना रहता है।
प्रो सिंह ने लिखा है कि विश्वविद्यालय के कुलपति शिक्षक संघ के संरक्षक होते हैं। नियमतः शिक्षक संघ के चुनाव हेतु चुनाव अधिकारी को कुलपति ही नामित करते हैं किंतु आम सभा भी चुनाव अधिकारी नामित कर कर अपना चुनाव करा सकती है।
उन्होंने पत्र में लिखा है कि मेरा चयन शिक्षकों की आम सभा द्वारा किया गया है। अतः मै शिक्षकों की आम सभा के प्रति ही जिम्मेदार हूं। कुलपति द्वारा समाचार पत्रांे में दिए गए बयान के मैं और समूचा शिक्षक समुदाय आहत है। कुलपति जी का उक्त बयान शिक्षक संघ की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है।
पत्र में प्रो सिंह ने लिखा है कि विश्विद्यालय विषाक्त माहौल से गुजर रहा है। शिक्षकों की मर्यादा एवं गरिमा बचाना कठिन हो गया है। विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का गौरवशाली, संघर्षशील एवं कल्याणकारी इतिहास रहा है। ऐसे मामले मेे मेरा यह भी अनुरोध है कि आपसी मुद्दों एवं मनमुटावों को स्थगित करते हुए शिक्षक हित एवं गरिमा पर ध्यान केन्द्रित किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षकों की गरिमा एवं मर्यादा बचाने हेतु मेरी जहां भी आवश्यकता होेगी, मैं रहूंगा। विश्वविद्यालय हमारा है, हमें अपने शिक्षक साथियों के हितों के संरक्षण, संवर्धन के साथ-साथ विश्वविद्यालय के उन्नयन के बारे में क्रियाशील रहना है। हम लोग आपसी विवाद फिर कभी सुलझा लेंगे, फिर कभी झगड़ लेंगे लेकिन आज आवश्यकता है एकजुट होने की। मै न सही कोई और सही, शिक्षक गरिमा की रक्षा हर हाल में करना है।