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बाले मियां मेला : अकीदत का नज़राना पेश, दुआ व मन्नत मांगने उमड़े लोग

गोरखपुर। कोरोना महामारी के दो साल बाद बहरामपुर के बाले मियां के ऐतिहासिक मैदान में भारी भीड़ उमड़ी। सैकड़ों सालों से यहां मेला लगने की परंपरा है। यह वही मैदान है जहां गांधी जी ने हिंदुस्तान की आजादी के लिए बिगुल फूंका था। बाले मियां मेला सुबह से पूरी रात तक अकीदतमंदों से गुलज़ार रहा।

हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हज़रत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह ‘बाले मियां’ के लगन की रस्म सुबह से बहरामपुर स्थित आस्ताने पर पारम्परिक तरीके से शुरु हुई। आस्ताने पर गुस्ल-संदल व परंपरागत चादरपोशी की गई। कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी हुई। अकीदतमंदों द्वारा चादर-गागर पेश किया गया। हज़ारों लोगों ने मेले में शिरकत की।

एक माह तक चलने वाले मेले के मुख्य दिन रविवार को अकीदतमंदों द्वारा लहबर व कनूरी भी पेश की गई। पलंग पीढ़ी देर रात उठी। जिसमें अकीदतमंद नाचते गाते आस्ताने पर पहुंचे और लगन की रस्म पूर्ण की। जिन लोगों की मन्नत पूरी हो गई उन्होंने मन्नत उतारी। चांदी की आंख व चांदी का पंजा पेश किया। निशान (झंडा) उठाए भी अकीदतमंद नज़र आए।

अकीदतमंदों ने चने की दाल, मुर्गा, चावल आदि पका कर फातिहा दिलाई और अकीदतमंदों में बांटा। आस्ताने पर लोगों की लम्बी लाइन सुबह से ही लग गई। देर रात तक लोग आस्ताने पर आकर मन्नत मांगते रहे। आस्ताने पर देश में शांति, भाईचारा, खुशहाली व तरक्की की दुआ मांगी गई।

मेले में अकीदतमंदों ने खाने-पीने, घरेलू सामनों, खिलौनों आदि की दुकानों के साथ ही छोटे-बड़े झूले, हलुआ-पराठा‌ व अन्य व्यंजनों का मजा उठाया। महिलाएं सौन्दर्य प्रसाधन व गृहस्थी का सामना खरीदने में मशगूल नज़र आईं। वहीं पुरुषों ने भी अपनी जरुरत का सामान खरीदा। चारों तरफ कव्वालियों की मधुर धुनें लोगों को गाजी मियां के रंग में रंग रही थीं। जात-पात, अमीर-गरीब, मजहब के सारे बंधन टूटते नज़र आए। सभी की ख्वाहिश थी पहले जियारत फिर मनोरंजन। आने वाले रविवार पर भी इसी तरह रौनक बनी रहेगी।

बताते चलें कि बहरामपुर में हर साल ज्येष्ठ (जेठ) के महीने में बाले मियां मेला लगता है। लगन की रस्म पलंग पीढ़ी के रूप में मनाई जाती है। जहां पर आसपास के क्षेत्रों के अलावा दूरदराज से भारी संख्या में अकीदतमंद यहां आते है। मेला 22 जून तक चलेगा। गाज़ी मियां की वास्तविक मजार बहराइच जिले में है।

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