प्रेमचंद पार्क में जन संस्कृति मंच की काव्य गोष्ठी व परिचर्चा का आयोजन
गोरखपुर, 20 नवंबर। प्रेमचंद पार्क में जन संस्कृति मंच ने रविवार को काव्य गोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन किया। इस आयोजन में शायर सरवत जमाल और कवि ओंकार सिंह ने गजलों और कविताओं का पाठ किया। इसके बाद परिचर्चा में शामिल नगर के साहित्यकारों और श्रोताओं ने अपने विचार रखे।
वक्ताओं ने कहा कि दोनों रचनाकार अपने समय की चुनौतियों से जूझते रचनाकार है। उनके सरोकार आमजन के हैं। उनकी रचनायें व्यवस्था से विक्षोभ व दुख की अभिव्यक्ति हैं। ये पाठक व श्रोता को बेचैन करती है और बदलाव के लिये प्रेरित करती हैं।
परिचर्चा के पूर्व कवि और पत्रकार ओंकार सिंह ने अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ किया। छोटी किंतु मारक रचना ‘ ला एंड आर्डर ‘ , ‘ बीमार शब्दों का बहुमत ‘ शीर्षक कविताओं को श्रोताओं ने काफी पसंद किया। इसके बाद वरिष्ठ शायर सरवत जमाल ने शुरू किया- ‘ हमारे दौर में बच्चों ने सबकुछ देख डाला है/ मदारी को तमाशा पर कोई ताली नहीं मिलती। ‘ उन्होंने आधा दर्जन गजलें सुनाई। सत्ता और समय पर चुटीली टिप्पणियों वाली उनकी गजलों पर खूब तालियां बजीं।
परिचर्चा शुरू करते हुये वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने कहा कि ओंकार ने गजलियत को साधने की कोशिश की है। उनकी दृष्टि एकदम साफ है। कवि छवि के लिये वे बहुत उदास लगते हैं। वे अपनी कविता में यथार्थ को महीन तरीके से पकड़ते हैं। सरवत जमाल पुराने शायर हैं उनकी शायरी मुकम्मल है। आज उन्होंने कुछ नयी जमीन के शेर कहें हैं। उनकी शायरी में यथार्थ का इतना दबाव है कि रुमानियत दब गयी है। प्रलेस से जुड़े कवि वीरेन्द्र मिश्र दीपक ने सरवत को उस्ताद शायर व ओंकार को संभावनाओं का कवि बताया।
कवि श्रीधर मिश्र ने कहा कि ओंकार चमत्कृत करने वाले कवि हैं। उनकी रचना प्रक्रिया देखकर दुष्यंत कुमार की याद आती है। दुष्यंत कुमार भी मुक्त छंद की कविता से गजलों में आये। ये यथार्थ से जद्दोजेहद करते कवि हैं। सरवत की गजलें दिल में उतर जाती हैं। इसलिये कि ये बतकही के अंदाज मे जो गजल की मूल शैली है व्यक्त की जाती हैं। सरवत को गजल का स्कूल कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी प्रतिद्वंदिता खुद से ही है। वे अपने ही गढ़े प्रतिमानों को नित तोड़ते हैं।
कथाकार लालबहादुर ने कहा कि दोनों रचनाकार व्यवस्था से विक्षोभ के रचनाकार हैं। जन से कटते जा रहे समय में ये ऐसा हिन्दी समाज रचते हैं जो अपने समाज के दुख से जुड़ा हुआ है। ऐसे रचनाकारों से हिन्दी सम्मानित होती है।
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश लाल श्रीवास्तव ने कहा ओंकार की रचनाओं की गर्माहट का श्रोत अपने दुखों से लड़ती जनता है। इनकी कविताओं में किसान आंदोलन की धमक दीखती है। ये नाउम्मीदी की दौर में आम जन की उम्मीद हैं। सरवत के भीतर हमेशा जंग चलती है। इस जंग में वे निरंतर संघर्षरत हैं और इस प्रलय जैसे समय में हम जैसों की उम्मीदें बचा रहे हैं।
सहायक आचार्य आनंद पांडे ने कहा कि ओंकार को तो ऐसा ही कवि होना था। वह एक सचेत पत्रकार के रूप में लंबे समय से सक्रिय हैं। वे लगातार आम जन को पीड़ा कैसे सामने आये इसकी कोशिश में लगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि सरवत जमाल के पहले से मुरीद हैं। वे लगातार अपने कलाम रिफाइंड करते रहते हैं।
समाज विज्ञान के अध्येता डा संदीप राय ने कहा कि दोनों रचनाकारों की चिंता एक है। ओंकार में प्रतिरोध की महक दिखाई देती है। प्राध्यापक श्रवण कुमार ने कहा कि दोनों रचनाकार यथार्थ से सीधे मुठभेड़ करते हैं। ऐसे समय में यह दुर्लभ है। यह वह समय है जब लोग सच कहने से बच रहे हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चौधरी ने कहा कि इस समय प्रिंट और इलेक्ट्रानिक्स दोनों माध्यमों पर सरमायेदारों का कब्जा है। ऐसे में सोशल मीडिया में ही अपनी बात कहने का स्पेस बचा है। कविता अभिव्यक्ति का सबसे प्राचीन माध्यम है। उन्होनें कहा कि अभिव्यक्ति पर पड़े सभी जाल भेदनें पड़ेंगे।
गोष्ठी का संचालन सहायक आचार्य डा रामनरेश राम ने किया। आभार प्रदर्शन जसम के संयोजक अशोक चौधरी ने किया। गोष्ठी में डा जैद कैमूरी, डा सुनीता, शोध छात्र अरूण चौरसिया, अनंत कीर्ति आनंद ने भी अपने विचार व्यक्त किये। गोष्ठी में कवि जय प्रकाश नायक, मनोज मिश्र, प्राध्यापक अजय सिंह, महेन्द्र कुमार, फर्रुख जमाल, अमजद अली अंजुम, फरीद कमर, संतोष कुमार, बैजनाथ मिश्र, सती्श चंद्र सिंघम, अरस्तू समेत नगर के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।