देवरिया। भाकपा (माले) जिला कमेटी के सदस्य हरिशंकर मल्ल का 11 दिसम्बर की सुबह पैतृक गांव डुमरी में हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे।
वे आजीवन कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम करते रहे। युवावस्था में सिंचाई विभाग में ठेकेदार थे। उनके साथ देवरिया जिले के पूर्व विधायक स्वर्गीय योगेंद्र सिंह सेंगर व पूर्व मंत्री कामेश्वर उपाध्याय भी ठेकेदार थे। एक बार कामेस्वर उपाध्याय ने उनसे कहा कि मल्ल जी आप कैसे काम करवा लेते हैं। हमारे मजदूर तो एक दो दिन बाद भाग जाते हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि हम काम करवाते हैं जबकि आप लोग गुलामी करवाते हैं।
पूर्व मंत्री दुर्गा मिश्र उनके बहुत ही घनिष्ठ मित्रों में से थे। उनके इन सहयोगियों ने राजनीतिक रूप से पूंजीवादी दिशा अपनाई जबकि हरिशंकर मल्ल ने वामपंथी राजनीति की ओर अपना रुख किया। वैचारिक तालमेल ना बैठ पाने की वजह से वह एक दौर के बाद ठेकेदारी के कार्य से विमुक्त हो गए। उस दौर में उत्तर प्रदेश के अंदर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राजनीति के मुख्यधारा में थी। वह सीपीआई के लिए काम करने लगे। देवरिया जिले में अन्याय व सामंतवाद विरोधी संघर्षों में हरिशंकर मल्ल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने महसूस कर लिया कि सीपीआई समझौता परस्त राजनीति की दिशा में मुड़ गई। वह निष्क्रिय हो गए और घर-गृहस्थी के काम में समय देने लगे। वर्ष 1995 के बाद वे देवरिया जिले के भाटपार रानी विधानसभा क्षेत्र में भाकपा (माले) के जुझारू सामंतवाद विरोधी संघर्षों से प्रेरित हुए। उनके अंदर भाकपा माले के प्रति जबरदस्त आकर्षण पैदा हुआ। उन्होंने माले के साथ राजनीतिक संबंध कायम किया और वे पुनः सक्रिय हो गए।
वह कहते थे कि हम तो निराश होकर बैठ गए थे लेकिन (माले) की राजनीति ने हमारे अंदर एक नया जोश पैदा किया। वे पार्टी के भीतर एक अच्छे आलोचक थे और हमेशा पार्टी के विकास के बारे में सोचते थे।
वे अभयानंद इंटरमीडिएट कॉलेज ग्राम सिधारिया के लंबे समय से शिक्षक अभिभावक संघ के अध्यक्ष थे। कॉलेज के अंदर हमेशा प्रबंधक से मानदेय कर्मचारियों व अध्यापकों की तनख्वाह बढ़ाने के लिए प्रबंधक के ऊपर दबाव बनाते थे। अध्यापक अपनी बातें प्रबंधक तक पहुंचाने के लिए अक्सर उनसे कहते थे। वे प्रबंधक की भी आलोचना करने मे पीछे नहीं रहते थे। वह अक्सर कह देते थे कि अभिभावक अच्छी खासी रकम प्रतिवर्ष विद्यालय को देते हैं, तो अध्यापकों को उचित न्यूनतम जीविकोपार्जन हेतु मानदेय मिलना चाहिए। वह बच्चों के सुविधाओं के लिए भी प्रबंधक पर दबाव बनाते थे। एक बार उन्होंने गर्मी के महीने में कहा की इतनी भयंकर गर्मी में बच्चों को बिना पंखे के क्लास रूम में बैठना पड़ता है। उनके इस दबाव से प्रबंधक ने एक सप्ताह के अंदर एक हैवी जनरेटर विद्यालय के लिए उपलब्ध करवाया।
वे कई बार मुझसे स्वयं यह कहते थे कि विद्यालय के प्रबंधक व पूर्व प्रधानाचार्य रमेश सिंह जी पता नहीं क्या सोच कर मुझे शिक्षक अभिभावक संघ के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे रखी है। मैं सचमुच इसके लायक नहीं हूं। अध्यक्ष उसे होना चाहिए जो अध्यापकों छात्रों को संबोधित कर सके और उनके ज्ञान विवेक को तार्किक रूप से उन्नत कर सकें। मैं इतना पढ़ा लिखा व्यक्ति नहीं हूं कि यह काम कर सकूं। इसके जवाब में मैंने उनसे कहा कि आप एक ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ कम्युनिस्ट नेता है, इसीलिए आपको उन्होंने अध्यक्ष बना रखा है। वह अपने अंतिम समय तक विद्यालय के अध्यक्ष बने रहे। उन्होंने कभी भी विद्यालय से किसी भी किस्म की कोई निजी लाभ की ख्वाहिश नहीं रखी।
विद्यालय को संचालित करने के लिए प्रबंधक तमाम राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध रखते हैं। इसके बावजूद विद्यालय प्रबंधन के साथ उनके अच्छे रिश्ते बने रहे। उनकी श्रद्धांजलि सभा में विद्यालय प्रबंधक रमेश सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारे विद्यालय के एक गार्जियन नहीं रहे। मैं कई दिनों से यह सोच रहा हूं कि आखिरकार मैं अब किसे अध्यापक अभिभावक संघ का अध्यक्ष बनाऊ।
उनकी बड़ी ख्वाहिश रहती थी कि बरहज विधानसभा क्षेत्र के अंदर भी भाकपा (माले) एक मजबूत राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरकर खड़ी हो। इसके लिए वह कभी भी अपना तन मन लगाने में पीछे नहीं रहते थे। वह क्षेत्र के अंदर भाकपा (माले) के प्रत्याशी को चुनाव में क्षेत्र से चंदा इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। इतना ही नहीं प्रत्येक चुनाव में वह अपने घर का अनाज बेचकर काफी पैसा चुनाव में खर्च करते थे। इसे लेकर उनके परिवार में एक बार दबाव पड़ा कि आप घर का पैसा राजनीति में खर्च करते हैं। उन्होंने इसका बड़ी ही बेवाकी से जवाब दिया था कि पूरे जीवन जो मैंने कमाया है वह परिवार की खुशी के लिए खर्च किया है और मैं अपनी खुशी के लिए दस, पचास हजार रुपया खर्च करता हूं तो तुम्हें क्यों कष्ट होता है। घर का दबाव मानने से उन्होंने इनकार कर दिया था। उन्हें जो समझ में आया वही किया ?
पिछले वर्ष जिला पंचायत के चुनाव में भाकपा माले के प्रत्याशी को जब सत्ताधारी राजनीतिक दल ने जबरन काउंटिंग में हराने की कोशिश की तो वह बड़ी मजबूती के साथ खड़े हुए। उनकी अगुवाई में पूरे दिन सिधअरिया इंटर कॉलेज के मतगणना स्थल को हजारों लोगों ने घेर रखा। मौके पर मुझे, व प्रेमलता पांडे के थोड़ा ही विलंब से पहुंचने पर वह बहुत ही नाराज हुए और अथक प्रयास से जिला पंचायत की सीटे जीती।
वह प्रतिदिन भलुअनी बाजार में अवश्य जाते थे और क्षेत्र के तमाम राजनीतिक गणमान्य व्यक्तियों से मिलना उनसे चाय पीना, पिलाना और राजनीतिक बहस करना उनकी दिनचर्या थी।
कहते थे कि जब तक कुछ टेबलटाक नहीं हो जाता है दिमाग को शांति नहीं मिलती।
उनके निधन के एक दिन पूर्व शाम को उनसे मिलने मैं गया था और मेरे साथ माले राज्य स्थाई समिति के सदस्य राजेश साहनी जी थे। देर रात तक वे पार्टी के विकास के बारे में, देश दुनिया की राजनीति के बारे में चर्चाएं करते रहे। वे कह रहे थे कि अब हमारा गांव भलुअनी नगर पंचायत घोषित हो गया है। जिला पंचायत चुनाव में धक्का लगा है उससे उबरने का एक हमारे पास बेहतर मौका है।
नगर पंचायत के चुनाव में अपनी दावेदारी (माले) को पेश करनी चाहिए। इसी चर्चा परिचर्चा के बीच काफी रात हो गई। हम लोग सो गए। रात लगभग 1:00 बजे उन्हें खांसी आई और उनकी पत्नी ने उन्हें उठाया। उस वक्त मैं भी जग गया और उनको थूकने के लिए उनकी पत्नी बाहर ले गई। मैंने कहा एक बर्तन में राख भर कर रख दीजिए उसी में थूकेंगे बाहर मत ले जाइए। मल्ल जी ने कहा कि कोई बात नहीं है। सीने में कुछ बलगम जम गया है। अब ठीक हो गया है। रात में उन्होंने अपने छोटे बेटे राजेश कुमार उर्फ गुड्डू को बुलाया और उनसे कहा कि देखो तुम कम्युनिस्ट पार्टी में ही रहना। सुबह हुई फिर उन्होंने राजनीतिक चर्चाएं शुरू कर दी।
गांव के ही अमीन जो पार्टी के सदस्य हैं और उनके बहुत ही करीबी मित्रों में से थे। वह भी आ गए और चर्चा होने लगी। मैंने भी हामी भरी और कहा कि ठीक है नगर निकाय चुनाव में अपनी मजबूत दावेदारी पेश किया जाए। इसके बाद वह बाथरूम में गए और वहीं पर गिर पड़े। हम लोगों ने तमाम कोशिश की उन्हें बचाने की लेकिन हम उन्हें बचा नहीं सके। बमुश्किल 20 से 25 मिनट के ही समय में उन्होंने हमारा साथ छोड़ दिया। उनके परिवार में उनके दो पुत्र पत्नी है।
हरिशंकर मल्ल अपने दोनों बेटों को कयुनिस्ट बनाने में हमेशा महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका बड़ा बेटा पेशे से एमबीए है और छात्र जीवन से उन्होंने उसको पार्टी के साथ जोड़ रखा। वह पार्टी के साथ है और उनका छोटा बेटा भी अपने पिता के अंतिम वचनों के अनुसार माले के साथ खड़े रहने का वादा किया है। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो अपने परिवार के सदस्यों को अपने बेटों को कम्युनिस्ट पार्टी का नेता, कार्यकर्ता बनाएं और उनकी दिली ख्वाहिश हो कि बेटे कम्युनिस्ट पार्टियों में ही रहे।
हालांकि यह हर व्यक्ति का अपना निजी मत है लेकिन, फिर भी उन्होंने अपने बच्चों को कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ खड़े होने के लिए हमेशा प्रेरित करते रहे। वह कहते थे कि देखो कम्युनिस्ट आंदोलन में वजूद है एक नया जीवन जीने की एक नई दृष्टि देता है समाज के साथ चलने और जीने की दृष्टि देता है। इसलिए आप हमेशा कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ खड़े रहिए। गांव और क्षेत्र के तमाम लोग उनसे घटनाओं पर सलाह मशविरा करने के लिए आते थे। वे बातचीत व कूटनीति के जरिए तमाम मसलों को गांव में बैठकर हल करवा देते थे। उनके निधन के दिन गांव की कई गरीब महिलाएं आई और बड़े दुख के साथ कहने लगी कि अब हम लोगों को बुद्धि कौन देगा?