कुशीनगर। दीपदान महोत्सव आयोजन समिति (DMASK) कुशीनगर द्वारा बुद्ध पूर्णिमा पर हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित बुद्धघाट, रामाभार स्तूप (मल्ल मुकुट बंधन चैत्य) पर तृतीय खीरदान महोत्सव आयोजित किया गया। चश्मा भंते द्वारा आम जनों में खीर आदि वितरित कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई। कार्यक्रम में 2000 लोगों को खीर पूड़ी सब्जी /भोजनदान किया गया।
खीरदान महोत्सव में दोपहर 12 बजे से संबोधन कार्यक्रम की शुरूआत हुई। इस कार्यक्रम में बुद्ध के विचार, इतिहास, दर्शन आदि सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत सेवानिवृत्त अध्यापक राम सिंह के बीज वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा कि कल्याणकारी राज्य की स्थापना का सपना तभी संभव है जब देश से ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म कर समता आधारित समाज का निर्माण हो, शांति एवं युद्ध की विभीषिका से बचाव हो। यह मूल्य बुद्ध मार्ग अपनाने से ही संभव है। बुद्ध का मार्ग ही दुनिया का सर्वोत्तम मार्ग है।
लेखक एवं विचारक डॉ. रमाकांत कुशवाहा ने बुद्ध स्थलों के खोज में अंग्रेजी विद्वानों एवं विदेशी लेखकों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि यदि विदेशी यात्री और अंग्रेजी पुरातत्वविद न आए होते तो बुद्ध स्थल एवं उनकी विरासत अब तक विरूपित हो चुकी होती। बुद्ध दुनिया में भले रहते लेकिन भारत से गायब हो चुके होते।
डॉ कुशवाहा ने दीपदान एवं खीरदान महोत्सव की तरह ही पावा महोत्सव का भी आयोजन करने का सुझाव देते हुए कहा कि पावा गणराज्य भी मल्लों का ही समृद्ध गणराज्य था। उसे चिन्हित किया जा चुका है। पावा महोत्सव का आयोजन कर उसे देश स्तर पर चर्चित कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए।
बनवारी सिंह आजाद ने बुद्ध को विरुपित करने वाली संस्कृति की भर्त्सना करते हुए कहा कि बुद्ध केवल एशिया के प्रकाश स्तंभ ही नहीं हैं, वे विश्वगुरु थे। वे लाइट ऑफ अर्थ हैं।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राम नरेश राम ने बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर को बुद्ध दर्शन को पल्लवित करने वाला बताते हुए उनके बुद्ध दर्शन संबंधी योगदानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बुद्ध संस्कृति ही भारत की वास्तविक संस्कृति है परंतु वर्चस्वशाली संस्कृति द्वारा केवल बुद्ध विचार पर ही नहीं बल्कि यहां के लोगों के दिमाग पर औपनिवेशिक कब्जा कर लिया गया। लोगों के दिमाग में यह स्थापित करने का सायास प्रयास किया गया कि मनुष्य द्वारा कुछ भी परिवर्तनशील नहीं है। सब कुछ ईश्वर द्वारा स्थापित है और स्थाई है जिससे कि लोगों में यह विश्वास पनपे कि मानव द्वारा कोई भी बदलाव संभव नहीं है। जबकि बुद्ध, कबीर, अंबेडकर और मार्क्स जैसे विचारकों ने अपनी मेधा, विचार और तर्क से असंभव चीजों को संभव कर दिखाया और दुनिया को बदलने और बेहतर करने में अमूल्य योगदान दिया।
छात्र नेता एवं असुर छात्र संगठन के अध्यक्ष आकाश पासवान ने कार्यक्रम के आयोजन को सराहा और खत्तीय समाज को अपने इतिहास एवं संस्कृति से अवगत कराने के लिए दीपदान महोत्सव आयोजन समिति का आभार व्यक्त किया।
महराजगंज से आए असिस्टेंट प्रोफेसर एवं इतिहासविद डॉ. धर्मेंद्र पटेल ने कहा कि यहां के मूल निवासियों और बुद्ध का डीएनए एक है। भारत में गप्प को इतिहास बता कर उलू जलूल चीजों को स्थापित कर लोगों के दिमाग को कुंद किया गया। इतिहास वही है जिसकी गवाही पुरातात्विक साक्ष्यों से हों। बिना पुरातात्विक साक्ष्य के काल्पनिक उड़ान इतिहास नहीं है, वह कल्पना की उड़ान है। वह साहित्य हो सकता है, इतिहास नहीं। कुछ लोग कल्पना की उड़ान को ही इतिहास बनाने पर तुले हैं, कमोबेश वे इसमें सफल भी होते रहे हैं।
बुद्धाचार्य डॉ. एस. एस. पटेल ने बुद्ध की सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला। कई सारे पर्वों-त्योहारों को बुद्ध कालीन या बुद्ध से जुड़े उत्सव के रूप में चिन्हित करते हुए उन्होंने कहा कि बुद्धकालीन मूल निवासी उत्सवों में कर्मकांड के लिए किसी पंडे या पुजारी की आवश्यकता नहीं होती है। बाद में मूल निवासियों के उत्सवों में घाल-मेल किया गया। अभी भी कई ऐसे पर्व हैं जिसमें कर्मकांड करने वालों कि आवश्यकता नहीं होती है। जिस पर्व में कर्मकांड कराने वालों की आवश्यकता न हो वह स्पष्ट रूप से यहां के मूल निवासियों कृषकों श्रमणों का पर्व है।
पाली साहित्य एवं चाइनीज भाषा में डिप्लोमा शिवांग सिंह सैंथवार ने बुद्ध संबंधी पुरातात्विक स्थलों के आस पास हो रहे अवैध निर्माण और बुद्ध अवशेषों को विरुपित होने पर चिंता व्यक्त की। ऐसे लोगों के ऊपर कार्यवाही न करने पर सरकार की उदासीनता पर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में बुद्ध समादृत हैं और उनके विचार प्रासंगिक हैं, और भारत देश में उनके विचारों को फैलाने में उदासीनता बरती जा रही है। उन्हें कभी विष्णु का दसवां अवतार बता कर उनके तेज को नष्ट करने का प्रयास किया गया। जब बात उससे नहीं बनी तो उन्हें जाति विशेष का देवता घोषित कर उनके विचारों को कुचलने का कुत्सित प्रयास किया गया और अभी भी किया जा रहा है। जिस दिन समाज जागरूक, शिक्षित और समझदार हो जाएगा उसे बुद्ध मार्ग पर स्वत: आना पड़ेगा।
समिति के अध्यक्ष देवेंद्र प्रताप सिंह ने बुद्ध इतिहास, पावानारा और कुशीनारा गणराज्य की शासन प्रणाली पर प्रकाश डाला। उन्होंने उन गणराज्यों की लोकतांत्रिक पद्धतियों से अवगत कराते हुए कहा कि बुद्ध कालीन गणराज्य बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय की नीति पर चलते थे। उन्होंने बुद्ध के घर त्याग की घटना और उसके कारणों पर प्रकाश डाला। रोहिणी नदी जल विवाद में शाक्यों एवं कोलियों के मध्य युद्ध की स्थिति में वे युद्ध एवं रक्तपात न होने के पक्ष में करने पर अडिग रहे। गणराज्य का बहुमत युद्ध के साथ रहा। अन्तत: गणराज के नियमों के अनुसार गणराज्य के नियमों को तोड़ने पर संथागार से सबंधित सदस्य की भूमि जब्त की जा सकती थी, उनके परिवार को समाज से निकल दिया जा सकता था, या ऐसे सदस्य को देश निकाला दिया जा सकता था। बुद्ध ने गणराज्य के तीसरे नियम के अनुसार गणराज्य छोड़ देना चुना और वे मल्ल महाजनपद से दूर बिहार को निकल गए।
उन्होंने कहा कि भारत के सोलह महाजनपदों में से एक मल्ल महाजनपद था जिसमें छोटे-छोटे नौ गणराज्य थें, जिन्हें नवमल्लकी भी कहा गया है। जिसमें शाक्य, कोलिय, पावा कुशीनारा के मल्ल, मोरिय, वज्जी और लिच्छवी जैसे गणराज्य थें। विश्वगुरु कोई और नहीं वह तथागत बुद्ध ही थे और अभी भी उनके विचार ही विदेशों में ग्राह्य हो सके हैं।
नर्सिंग पटेल अज्ञानी ने खीरदान महोत्सव में शामिल होने को आए सभी आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।
इस कार्यक्रम में खत्तीय समाज के पाँच व्यक्तियों- सेवानिवृत्त अध्यापक रामसिंह (जगदीशपुर, पिपराइच), पूजा सिंह (हाटा, कुशीनगर), डॉ. रवींद्र पीएस (सोनौरा बुजुर्ग, गोरखपुर), डॉ. एस.एस. पटेल (महराजगंज) तथा डॉ. अरुण सिंह सैंथवार को शिक्षा, सामाजिक कार्य, साहित्य, मीडिया , चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए सम्मानित किया गया। सभी को बुद्ध प्रतिमा, अशोक लाट, पंचशील का झंडा और वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र प्रताप सिंह लिखित पुस्तक ‘जाति का चक्रव्यूह एवं आरक्षण’ भेंट किया गया।
इस कार्यक्रम में D-MASK महासचिव एसपी सिंह उर्फ भगवान सिंह, समाजसेवी ई. अशोक कुमार सिंह, विश्वेस सिंह, रविप्रताप सिंह, ब्यास सिंह, अभय प्रताप सिंह, समाजसेवी जनार्दन सिंह फौजी, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छोटे सिंह, विश्वजीत सिंह, कृष्णभान सिंह उर्फ किसान सिंह, अजय प्रताप सिंह “पिन्टू”, धीरेन्द्र सिंह एडोवोकेट, चंद्रपाल सिंह सैंथवार रमेश सिंह, मनोज सिंह, संजय सिंह, राजू निषाद, कवयित्री सुनीता अबाबील, उमेश यादव, धर्मेंद्र पटेल, अजीत कुशवाहा, रामकेश कुशवाहा, इंद्रजीत, परमहंस कुमार, द्वारा और फोटोग्राफी आदि मैनेजमेंट मारकंडे सिंह मिंटू, रणविजय सिंह, महेंद्र प्रताप मल्ल, अवधेश सिंह आदि उपस्थित थे।
कार्यकम का संचालन डॉ. रवींद्र पीएस ने किया।