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राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थानों में पदोन्नति पर उठे सवाल

लखनऊ। उत्तर प्रदेश प्राविधिक शिक्षा एप्लाइड साइंस एंड ह्यूमैनिटी सेवा संघ ने राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थानों में विभागध्यक्ष के पदों पर पदोन्नति की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना तथा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बताया है। संघ ने पदोन्नति को तत्काल रोकते हुए इसकी गहन जांच करवाने की मांग की है।

उत्तर प्रदेश प्राविधिक शिक्षा एप्लाइड साइंस एंड ह्यूमैनिटी के संघ के महामंत्री भोलेनाथ ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री आशीष पटेल को पत्र लिखा कहा है विद्यमान नियमों और न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध अनर्ह व्यक्तियों को पदोन्नत करना एक घोर वित्तीय अनियमितता है।  इसमें AICTE के नियमों की गलत व्याख्या अपने पक्ष में करते हुए पुराने नियमों से पदोन्नति करके नए नियमों से वेतनमान देने का काम किया जा रहा है, जिसके कारण प्रति व्यक्ति सवा लाख तक की वेतन बढ़ोत्तरी संभव है।  इससे सरकार को सालाना 50 करोड़ तक का वित्तीय बोझ उठाना पड़ सकता है।

श्री भोलेनाथ ने कहा कि 24.05.2024 को पदोन्नति होने वाली है, जिसमें 400 शिक्षकों को पदोन्नत किया जाएगा। यह पदोन्नति विभाग की पुरानी नियमावली 1990 के अनुसार की जा रही है, जबकि इस नियमावली को उच्च न्यायालय द्वारा अपने आदेश 11.04.2001 में निरस्त किया जा चुका है। इसे निरस्त करते हुए न्यायालय ने विभाग में AICTE के मानकों को लागू करने का आदेश दिया। सरकार ने इसके विरुद्ध डबल बेंच और सुप्रीम कोर्ट में अपील की, दोनों ही ख़ारिज हो गयीं। आदेश का अनुपालन न होने के कारण अवमानना याचिका इस समय भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है।

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा नियमावली 1990 के स्थान पर नियमावली 2021 बनाई जा चुकी है, फिर भी अपने ही नियमों और AICTE के नियमों के उल्टे उसी निरस्त को चुकी नियमावली से पदोन्नति की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गयी। व्याख्याताओं द्वारा पुराने नियमों से अपनी पदोन्नति करवाने की मांग के साथ भी एक याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की थी। इसमें पदोन्नति करने का आदेश तो प्राप्त हुआ, लेकिन सरकार ने डबल बेंच में अपील कर इसपर स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया, जो अभी भी प्रभावी है।
आदर्श आचार संहिता के प्रचलन में होने के मध्य पदोन्नति करना आदर्श आचार संहिता का भी उल्लंघन है।