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गमगीन माहौल में शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह सुपुर्द-ए-खाक, सैकड़ों ने जनाजे को कंधा दिया

गोरखपुर। सर्व धर्म सद्भाव एवं सामाजिक सौहार्द के पैरोकार शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह के पार्थिव शरीर को शुक्रवार को नार्मल स्थित हज़रत मुबारक खां शहीद‌ कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। इस मौके पर नगर के सैकड़ों लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।

शहर काजी का निधन गुरुवार की शाम को हो गया था। उनका जनाजा शुक्रवार को उनके निवास स्थान तुर्कमानपुर से निकल कर जामा मस्जिद उर्दू बाजार पहुंचा। यहाँ उनके जनाजे की नमाज अदा की गई। उसके बाद वहां से फिर जनाजा नार्मल स्थित हज़रत मुबारक खां शहीद‌ कब्रिस्तान ले जाया गया। काफी संख्या में लोग जनाजे को कंधा देते हुए कब्रिस्तान पहुंचे, फिर शहर काजी को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। बारी बारी सभी ने मिट्टी दी।

उनके निधन पर मेयर डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव, पूर्व मेयर डॉ. सत्या पांडेय, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्व विजय सिंह, नगीना साहनी, शब्बीर कुरैशी, जियाउल इस्लाम, ज़फ़र अमीन डक्कू, निर्मला पासवान, चौधरी कैफुलवरा, आदिल अमीन, मोहसिन खान, सरदार जसपाल सिंह, ख्वाजा शमसुद्दीन, विजय श्रीवास्तव, सहित विभिन्न लोगों व समाजसेवी संगठनों इमामबाड़ा मुतवल्लियान कमेटी, इमाम चौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी आदि ने गहरा शोक जताया है।

गुरुवार की शाम करीब 7 बजे शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। वह अपने पीछे चार पुत्र व चार पुत्री छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी का अभी हाल ही में निधन हुआ था।

मुफ्ती वलीउल्लाह का जन्म टांडा अम्बेडकर नगर में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा टांडा में हासिल की। मजहबी शिक्षा सन् 1950 में दारूल उलूम देवबंद सहारनपुर से हासिल की। मुफ़्ती वलीउल्लाह 1968 में गोरखपुर आए और अपने परिवार के साथ महानगर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में स्थित अंजुमन के भवन में किराए पर रहने लगे। मुफ्ती वलीउल्लाह ने 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए किया। वह कई भाषाओं के जानकार थे। देश के कई क्षेत्रों में विभिन्न मदरसों व विश्वविद्यालयों में उन्होंने तालीम दी। बाद में मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर के बुलावे पर वह यहां हदीस, तफसीर, अरबी अदब व तिब आदि पढ़ाने लगे। वहां से वह  2000 में सेवानिवृत्त हो गए।

उसके बाद भी इन विषयों का शिक्षक न मिलने से वह काफी समय तक मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर में रोज पढ़ाने जाते थे। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में काफी समय तक छात्रों को फारसी की तालीम दी। शहर काजी वलीउल्लाह ने पूरा जीवन बेहद ही शालीनता और सादगी के साथ गुजारा। बुजुर्ग होने के बावजूद भी साइकिल से ही चलते रहे। मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर में 1990 से दारूल कजा के ओहदे पर भी कायम रहे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वजूद में आने के बाद आप शहर काजी बने।