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‘ फ़िराक़ गोरखपुरी सही मायनों में हिन्दी-उर्दू के मुकम्मल दोआब थे ’

गोरखपुर। ‘ फ़िराक़ गोरखपुरी की रचनाओं विशेषकर नज्मों में हिन्दी-उर्दू इस तरह घुलमिल गई है कि उन्हें अलगा नहीं सकते। उन्होंने नए नए शब्द गढे। देशज भाषा खासकर भोजपुरी के शब्दों का विलक्षण प्रयोग किया।  भाषा में उन्होंने जिस तरह तोड़-फोड़ की वैसा हिन्दी में नागार्जुन में ही मिलता है। उन्होंने हिन्दू-उर्दू के विभाजन को नकार दिया। सही मायनों में वे उर्दू-हिन्दी के मुकम्मल दोआब थे। ’
यह बातें आज गोरखपुर जर्नलिस्टस् प्रेस क्लब में रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी की जयंती पर जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित ‘यादे फ़िराक़ ’ कार्यक्रम में समकालीन जनमत के प्रधान संपादक व ‘ यादगारे फ़िराक़ ’ के लेखक रामजी राय ने कही। उन्होंने इलाहाबाद में फ़िराक़ गोरखपुरी से मुलाकतों व गुफ़्तगू के हवाले से फ़िराक़ गोरखपुरी की देश-समाज, भाषा की चिंताओं को विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब इतिहास से स्मृति को भुलाने की कोशिश की जा रही है, बहुत घना अंधेरा छाता जा रहा है तब हमें फ़िराक़ गोरखपुरी के अहद को ठीक से समझने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी ने हिंदी में तत्सम के अत्यधिक प्रयोग की आलोचना की जिसे हिंदी विरोध के रूप में प्रचारित किया गया। दरअसल वे कविता और शायरी में ऐसी भाषा के प्रयोग के पक्षधर थे जिसे साधारण जन से लेकर विद्वान भी समझ सकें। उन्होंने प्रेमचंद के उपन्यास और कहानी की जितने बेहतरीन तरीके से समझा वह दुर्लभ है।
रामजी राय ने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी को रोमांटिक शायर कहा गया। रोमांटिक होना बुरा नहीं है। उनमें निष्क्रिय नहीं सक्रिय रोमांटिसिज्म था जो मनुष्य को आगे बढ़ाता है, जीवन के सरोकार को समाज से जोड़ता है। ‘ आधी रात ’ नज्म में  फ़िराक़ फासिज्म के पराजय का स्वप्न देखते हैं।
उन्होंने कहा कि’ फ़िराक़ के भीतर एक बच्चा जिंदा रहता था। वे बच्चों की आंख से दुनिया को देखते थे। इसके लिए ‘ हिंडोला ’ नज्म को पढने पर बल देते हुए कहा कि बच्चों के तालीम के प्रति उनकी सवंदेना व चिंता बहुत गहरी है। वे बच्चों को कौम की सबसे बड़ी अमानत बताते हुए उनके लिए इन्किलाब का खतरा उठाने की भी बात करते हैं।
शायर मोहम्मद फर्रुख़ जमाल ने फ़िराक़ गोरखपुरी के नजमों, गज़लों व रुबाइयों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि फ़िराक़ आज अपने ही शहर में कहीं खो से गए हैं। वो लक्ष्मी भवन जहां फ़िराक़ का बचपन गुज़रा था उसे उसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे  प्रसिद्ध चिकित्सक एवं शहर की अदबी शख्सियत डॉ अजीज अहमद ने गोरखपुर में अदबी महफिलों की नई सरगर्मी का स्वागत करते हुए कहा कि हम आज सोचने, समझने के साथ-साथ संवाद का नया सिलसिला बना रहे हैं जो बहुत जरूरी है।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि गोरखपुर को यह गौरव हासिल है कि यहां प्रेमचंद, फिराक गोरखपुरी और अमृता शेरगिल ने अपने जीवन दिया। तीनों ने साधारण जन के जीवन को न सिर्फ साहित्य व कला के केंद्र में लाए बल्कि साहित्य व कला को साधारण जन तक पहुंचाने में भी सफल रहे। उन्होंने फिराक के गोरखपुर में आजादी के आंदोलन में भागीदारी, साप्ताहिक पत्रिका ‘ स्वदेश ‘ में बतौर सहायक सम्पादक की भूमिका को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में चार कवियों-पवन श्रीवास्तव, ओंकार सिंह, सलीम मजहर और मोहम्मद शामून ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
कार्यक्रम में फिराक गोरखपुरी के गोरखपुर स्थित आवास को उनकी याद में संग्रहालय व पुस्तकालय बनाने का प्रस्ताव पारित करते हुए इसके लिए मुहिम चलाने का संकल्प लिया गया।
इस मौके पर वरिष्ठ समाजवादी नेता फतेहबहादुर सिंह, पूर्व सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही, वरिष्ठ अलोचक अरविंद त्रिपाठी, समाजिक कार्यकर्ता व शिक्षाविद राजेश सिंह, राजेश मणि, पत्रकार कामिल खान, वरिष्ठ कवि प्रमोद कुमार, जाने माने शायर सरवत जमाल, इतिहासकार डॉ दरख्शा ताजवर, कवयित्री डाॅ रंजना जायसवाल, कहानीकार लाल बहादुर, वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चौधरी, शिवनन्दन, मांधाता सिंह, राजेश साहनी, राकेश सिंह सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
 जन संस्कृति मंच की गोरखपुर इकाई के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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