साहित्य - संस्कृति

‘ प्रेमचंद का लेखन विषमता, साम्प्रदायिकता, तानाशाही, अंधराष्ट्रवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की प्रेरणा देता है ’

बलिया। जन संस्कृति मंच की बलिया इकाई ने 11 अगस्त को पीडब्ल्यूडी के कर्मचारी हॉल में ‘ प्रेमचंद और आज का समय ’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी में सतीश चंद्र महाविद्यालय के शिक्षक एवं युवा इतिहासकार डाॅ शुभनीत कौशिक ने कहा कि प्रेमचंद बचपन में तिलस्मी और रोमांच के उपन्यास पढ़ते हुए लेखक के रूप में हमारे समय, समाज और देश के यथार्थ की ओर बढ़ते हैं। प्रेमचंद ने दो विश्वयुद्धों के बीच अपना रचनाकर्म किया। रामविलास शर्मा ने उनके बारे में एकदम ठीक कहा है कि वे राष्ट्रीय जनवादी धारा के प्रतिनिधि साहित्यकार और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सैनिक साहित्यकार हैं। उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से आंदोलन में भाग नहीं लिया लेकिन अपनी रचनाओं और लेखनी से आजादी की लड़ाई में अप्रितम योगदान दिया। उनकी पत्नी शिवरानी देवी स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेती हैं, जेल जाती हैं। इससे प्रेमचंद गौरवान्वित महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का समूचा रचनाकर्म आम लोगों के लिए था। वे आम लोगों को अपनी रचनाओं का पाठक बनाने में भी कामयाब रहे। उनके उपन्यास व कहानियां पढ़कर हजारों-लाखों लोगों का जीवन बदला। गोर्की की तरह प्रेमचंद का विश्वविद्यालय जीवन का विश्वविद्यालय है। जीवन के इस विश्वविद्यालय में होरी, धनिया, गोबर, सूरदास जेसे पात्र थे। उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानी खुद उनका अपना जीवन था। वे देश की स्वाधीनता के साथ-साथ ऐसे समाज का सपना रच रहे थे जिसमें शोषण, विषमता, दमन न हो। यही स्वप्न उनकी रचनाओं में दिखता है।
 ‘ साहित्य का उद्देश्य ’, ‘ महाजनी सभ्यता ’, ‘ साम्प्रदायिक और संस्कृति ’ लेख की चर्चा करते हुए डाॅ शुभनीत कौशिक ने कहा कि प्रेमचंद हमारे समय के लिए भी एक जरूरी लेखक हैं। उन्होंने ‘ महाजनी सभ्यता ’ लेख में आज के समय के पूंजीवाद की निशानदेही की थी। उन्होंने लिखा था कि दो तरह का समाज बन रहा है। एक समाज वह है जो दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। दूसरी तरह वे लोग है जो धन की सत्ता से करोड़ों लोगों के जीवन पर प्रभुत्व बनाए हुए हैं। ये देश के लोगों को उनकी अमीरी व विलासिता का साधन जुटाने के लिए मर खप जाने को विवश किए हुए है। देश की आजादी के बाद हम इस स्थिति को और वीभत्स रूप में देख सकते हैं। थामस पिकेटी और अन्य अर्थशास्त्रियों ने भारत की असमानता के चित्र खींचते हुए कहा है कि यहां अरबपति राज चल रहा है। पिछले दस वर्षों में देश में जिस रफतार से अरबपति बढ़े हैं उतना तो अमेरिका में भी नहीं बढ़े हैं। सबसे ज्यादा अरब पति कोरोना महामारी और लाॅकडाउन संकट के दौरान बढ़े हैं। भारत में बढ़ती विषमता दुनिया के तमाम देशों के मुकबले सर्वाधिक है। अपने देश में राज्य गरीबों का शोषण कर पूंजीपति बन रहे लोगों का प्रश्रयदाता बन गया है।
उन्होंने कहा कि पूंजीवाद ही तानाशाही प्रवृत्ति को प्रश्रय देता है। इसकी शिनाख्त भी प्रेमचंद ने अपने लेख ‘ हिटलर और तानाशाही ’ में की थी। प्रेमचंद ने अपने समय में साम्राज्यवाद के खतरे से भी आगाह किया था। उनका लेखन विषमता, साम्प्रदायिकता, तानाशाही, अंधराष्टवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की प्रेरणा देता है।
संगोष्ठी में बोलते हुए जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने सृजनात्मक और वैचारिक लेखन से धार्मिक पाखंड, जाति व्यवस्था और साम्प्रदायिकता पर बहुत तीखे प्रहार किए। इसके खिलाफ उनका लेखन उसी तरह का है जैसे कबीर ने अपने समय में किया था। वे लिखते हैं कि सबसे बड़ी अनीति धार्मिक पाखंड और धूर्तता है। उन्होंने वर्णाश्रम को असामाजिक, अराष्ट्रीय , अमानुषिक बताया था और कहा था कि इसके खिलाफ जितनी भी घृणा फैलायी जाए कम है। वे पाखंड को समाज के प्रति अपराध मानते हैं। उन्होंने राष्ट्रीयता के मार्ग में जाति व्यवस्था, साम्प्रदायिकता, पाखंड को बड़ी बाधा के रूप में शिनाख्त की और कहा कि हम जिस राष्ट्रीयता का सपना देख रहे हैं उसमें कोई जाति नहीं होगी। ऐसी राष्ट्रीयता किसानों, मजदूरों के राज में बनेगी।
श्री सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने जैसा लिखा, उसी तरह का जीवन भी जिया। उन्होंने साहित्य की ताकत को स्थापित करते हुए कि सभी धर्म समानता को समाज में स्थापित करने में विफल रहे हैं लेकिन साहित्य इस काम को कर सकता है। साहित्य की शक्ति पर इस भरोसे को कायम रखते हुए हमें अपने लेखन को साधारण जन के जीवन से जोड़ना होगा। प्रेमचंद ने कहा था कि किसी भी देश में सुशासन की पहचान साधारण जनता की दशा है। थोड़े से जमींदार और महाजन या राज पदाधिकारियों की सुदशा से राष्ट की सुदशा नहीं समझी जा सकती। आज जब देश में कुछ अमीरों की सुदशा से पूरे देश की प्रगति का ढिंढोरा पीटा जा रहा है तब हमंे प्रेमचंद की तरह शोषितों व साधारण जन का वकील बनना होगा जिसकी नींव में सच की शक्ति होगी।
गोष्ठी में कुँवर सिंह महाविद्यालय में हिन्दी के शिक्षक डॉ. मंजीत सिंह ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को प्रेमचंद और उनके साहित्य से जोड़ने की जरूरत है। प्रेमचंद जनवादी धारा के प्रतिनिधि साहित्यकार थे।
कार्यक्रम में अजय पांडेय, परमात्मा राय, फतेह चंद बेचैन, डी. पी. सोनी, गोवर्धन भोजपुरी, डॉ. अनुज कुमार पांडे, राकेश प्रसाद दुबे, मो. यूसुफ आदि लोग शामिल रहे। अध्यक्षता सुदेश्वर अनाम एवं संचालन लक्ष्मण यादव ने किया। जन संस्कृति मंच की बलिया इकाई के सचिव विनोद सिंह ने आभार ज्ञापन किया।

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